जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से प्रदोष काल का आध्यात्मिक महत्त्व…..

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से प्रदोष काल का आध्यात्मिक महत्त्व…..



प्रदोष काल का अर्थ है सूर्यास्त के समय का एक पवित्र पर्व काल जो भगवान शिव की साधना के लिये अत्यंत अनुकुल होता है।

प्रदोष काल निर्धारित करने की तीन प्रचलित मान्यताये है। आप अपने क्षेत्र और रिती रिवाज से या अपने विवेक से इनमे से किसी एक का अनुसरण करे।

एक मान्यता के अनुसार प्रदोष काल सूर्यास्त के समय से आगे चार घटी अर्थात लगभग 96 मिनिटो का होता है।

दुसरी मान्यता के अनुसार सूर्यास्त के समय से दुसरे दिन के सूर्योदय तक का काल लेकर उसके पांच भाग करे .. सूर्यास्त के समय से आगे पहला भाग प्रदोष काल माना जायेगा .. यह समय सूर्यास्त से आगे 144 मिनिटो का रहेगा।

तिसरी मान्यता नुसार सूर्यास्त से पहले देड घंटा और सूर्यास्त के बाद देड घंटे तक प्रदोष काल माना जायेगा।

प्रत्येक क्षेत्र की मान्यता अनुसार यह अलग अलग है लेकिन तिनो मान्यताओ मे एक बात समान है वह ये की सूर्यास्त के बाद देड घंटा प्रदोष काल होगा ही। तो आप यही सही मानकर सूर्यास्त के समय से आगे देड घंटा मानकर चले। आपके क्षेत्र का सूर्यास्त का समय पता कर इसे निर्धारित करे।

प्रदोष काल और प्रदोष तिथी मे अंतर

प्रदोष काल जैसे हमने उपर बताया की रोज सूर्यास्त के बाद देड घंटे तक होता है।
और प्रदोष तिथी का अर्थ है हर महिने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की तेरहवी तिथी यानि त्रयोदशी तिथी जो उस दिन के सूर्यास्त के समय हो। जिस दिन सूर्यास्त समय पर त्रयोदशी तिथी हो वह प्रदोष दिन माना जायेगा। कभी कभी द्वादशी सूर्यास्त से पहले खत्म होती है और सूर्यास्त के समय त्रयोदशी तिथी होती है तो वही प्रदोष तिथी होती है। इसमे सूर्योदय की त्रयोदशी से ज्यादा सूर्यास्त की त्रयोदशी का महत्त्व है। हर कॅलेंडर या पंचांग मे हर महिने की दो प्रदोष तिथीया अंकित की जाती है। इस प्रदोष तिथी पर सूर्यास्त के समय से जो देड घंटे का प्रदोष काल होगा वही प्रदोष पर्व काल है।

इस पर्व काल मे सुषुम्ना नाडी कुछ खुल जाती है। इस पर्व काल मे साधना ध्यान कर सुषुम्ना मे प्राण प्रवाहित करना आसान होता है।

प्रदोष का शिव से संबंध

पुराण की मान्यता नुसार देव दानव के समुद्र मंथन मे जो विष उत्पन्न हुवा था वह भगवान महादेव ने इसी प्रदोष काल मे प्राशन किया था। भगवती पार्वती ने अपने सामर्थ्य से उस विष को शिवजी के कंठ तक ही रोक दिया इसलिये भोलेनाथ ” नीलकंठ ” नाम से जाने गये। भगवान शिव जी ने समस्त सृष्टी को इस भयंकर विष के प्रभाव से बचाया इस पवित्र प्रदोष काल मे इसीलिए इसे शिव उपासना के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसि काल मे भगवान महादेव ने अपना तांडव नृत्य किया था। भगवान महादेव ने विष का प्राशन कर समस्त सृष्टी को उस भयंकर विष के प्रभाव से मुक्त किया इसलिए जब सभी देव दानव महादेव के पास गये और उनकी स्तुती की जिससे भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुये वह दिन प्रदोष तिथी ही थी।

इसीलिए प्रदोष के दिन सूर्यास्त के समय प्रदोष काल मे भगवान शिव की उपासना कर उन्हे प्रसन्न किया जा सकता है। यह अत्यंत पुण्यदायी पर्व काल होता है।
प्रदोष यानी सभी दोषो से मुक्ती प्रदान करने वाला पुण्यकाल। मनुष्य के जीवन मे रोग , कर्जे , शत्रू , ग्रहबाधा , संकट , पूर्वजन्म के पाप आदि यह सब एक प्रकार का विष ही है और प्रदोष काल के शिव पूजन से भगवान भोलेनाथ की कृपा से हम इस विष के प्रभाव से मुक्त हो सकते है।

इसलिए कहा गया है की

” त्रयोदशी व्रत करे जो हमेशा
तन नाहि राखे रहे कलेशा “

प्रदोष के दिन आप अगर संभव हो तो दिन भर उपवास रखे और शाम को प्रदोष काल मे शिवपूजन, रुद्राभिषेक, शिवस्तोत्रों का पाठ, शिव मंत्र का जाप, 108 बेल के पत्तो से बिल्वार्चन, ध्यान आदि प्रकार से साधना कर सकते है।

वार अनुसार प्रदोष के फल

सोमवार को अगर प्रदोष हो तो उसे सोम प्रदोष कहते है। यह सर्व प्रकारके पापो का शमन करनेवाला होता है।

मंगलवार को अगर प्रदोष हो तो उसे भौम प्रदोष कहते है। यह दरिद्रता दूर करनेवाला , ऋणमुक्ती के लिये और आर्थिक उन्नती के लिये लाभदायी है।

बुधवार को अगर प्रदोष हो तो उसे बुध प्रदोष या सौम्य प्रदोष कहते है .. संतान सुख प्राप्ति और विद्याप्राप्ती के लिये लाभदायी।

गुरुवार को अगर प्रदोष हो तो यह आध्यात्मिक उन्नती एवं पितृ दोष निवारण के लिये लाभदायी।

शुक्रवार को अगर प्रदोष हो तो उसे भृगु प्रदोष कहते है। शत्रु बाधा निवारण के लिये लाभदायी।

शनिवार को प्रदोष हो तो उसे शनि प्रदोष कहते है। यह अत्यंत दुर्लभ और लाभदायी होता है। शनि बाधा , साडेसाती , धनप्राप्ति , ऋणमुक्ति , राज्यपद आदि के लिये लाभदायी।

रविवार को अगर प्रदोष हो तो उसे भानुप्रदोष कहते है। यह आरोग्य प्राप्ति के लिये लाभदायी और परम कल्याण कारी होता है।

इनमे से सोमप्रदोष ( सोमवार के दिन आने वाला प्रदोष ),

भौम प्रदोष ( मंगलवार के दिन आनेवाला प्रदोष ) और

शनि प्रदोष ( शनिवार के दिन आने वाला प्रदोष ) यह तीन प्रदोष आध्यात्मिक दृष्टीकोण से महत्त्वपूर्ण है। और इन तीनो मे शनि प्रदोष अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

स्कंद पुराण मे प्रदोष स्तोत्र

इसका पाठ प्रदोष काल मे करना चाहिये। प्रदोष काल के शिवपूजन से दरिद्रता दूर होती और आर्थिक उन्नती प्राप्त होती है।

” ये वै प्रदोष समये परमेश्वरस्य
कुर्वंति अनन्य मनसोsन्गि सरोजपूजाम
नित्यं प्रबद्ध धन धान्य कलत्र पुत्र
सौभाग्य संपद अधिकारस्त इहैव लोके “

अर्थ जो लोग प्रदोष काल मे अनन्य भक्ति से महादेव के चरण कमलों का पूजन करते है उन्हे इस लोक मे धन धान्य कलत्र पुत्र सौभाग्य एवं संपत्ती की प्राप्ति होती है।

” अत: प्रदोषे शिव एक एव पूज्योsथ नान्ये हरिपद्मजाद्या:
तस्मिन महेशे विधिज्यमाने सर्वे प्रसीदंति सुराधिनाथा: “

अर्थ प्रदोष काल मे विष्णु एवं ब्रम्हा का पूजन न करे और केवल एक शिवजी का पूजन करे। प्रदोष काल मे महादेव के पूजन से ईतर सभी देवता प्रसन्न हो जाते है।

हर महिने मे दो बार प्रदोष आता है। एक शुक्ल पक्ष मे और एक कृष्ण पक्ष मे।
परंतु माघ महिने मे कृष्ण पक्ष मे जो प्रदोष आता है उसे महाप्रदोष कहते है। यह महाशिवरात्री के वक्त आता है। माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथी को जब मध्यरात्री मे चतुर्दशी तिथी हो तब वह रात्री महाशिवरात्री कहलाती है और माघ मास की कृष्ण त्रयोदशी तिथी को सूर्यास्त को त्रयोदशी होने से महाप्रदोष तिथी होती है। तो हमेशा महाशिवरात्र की एक दिन पूर्व प्रदोष होता है।

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