जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से वृष राशि एवं लग्न……

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से वृष राशि एवं लग्न……



वृषलग्ने शूरः क्लेशसहिष्णुः सुखिरिपुनिहंता।
गुणाग्रणी: स्याद् द्रविणेन पूर्णो भक्तो विपरगुरुणां हि रणप्रियशच।
धीरशच शूरः प्रिय वाक् प्रशान्तः स्यात्पुरुषो यस्य वृषो विलग्ने।।

वृष राशि भ चक्र की दूसरी राशि है भचक्र में इसका विस्तार 30 से 60 अंश तक है।इसराशि का स्वामी शुक्र है।इस राशि के अंतर्गत कृतिका नक्षत्र के अंतिम ३ चरण,रोहिणी सम्पूर्ण ४ चरण एवं मृगशिरा के प्रथम २ चरण का समावेश रहता है।कृतिका का स्वामी सूर्य,रोहिणी का स्वामी चंद्र एवं मृगशिरा का मंगल ग्रह माना गया है।
वृष राशि के अन्य पर्याय भी है जैसे वृषभ,गोप,भद्र,पुंगव,गोपति,ताबुर,ऋषभ आदि। नभ् में इसकी आकृति वृषभ अर्थात बैल जैसी होती है।इसी कारण भारतीय विद्वानों के मतानुसार इस राशि का प्रतीकात्मक चिन्ह बैल ही माना गया है।

काल पुरुष में इस राशि का स्थान मुख है।वृषभ की भांति ही इस राशि या लग्न के जातको में दृढ़ता,पुष्टता,सहिष्णुता,धैर्य एवं सबलता आदि गुणों का बाहुल्य होता है।
यह राशि सेवा एवं आज्ञाकारिता की भी प्रतिक है।वृष राशि स्त्री संज्ञक, लघुकाय, सौम्य श्वेत वर्ण,स्थिर संज्ञक,पृथ्वी तत्त्व प्रधान,रात्रिबलि, पृष्ठोदयि, वात-प्रकृति, वैश्य जाती, रजोगुणी (मतान्तर-तमोगुणी), शांत एवं युवावस्था,दक्षिण दिशा की स्वामिनी होती है।

यह राशि मुख गला,जीभ,कृषि भूमि, काव्य-गीत, क्रय-विक्रय,एवं धन-सम्पदा आदि पर अधिकार रखती है।

वृष राशि का स्वामी शुक्र है।चन्द्रमा इस राशि के 3 अंश पर परमोच्च होता है।गोचरवश निरयण सूर्य इस राशि पर लगभग 14 मई से 14 जून के मध्य संचार करता है।जबकि सायन सूर्य इस राशि पर लगभग 20 अप्रैल से 20 मई तक रहता है।

प्रमुख विशेषताये वृष राशि के जातक सामान्यतः स्थिर प्रकृति,दृढ़ निश्चयी, धैर्यवान,परिश्रमी, धार्मिक, उच्चाकांशी, साहसी,सांसारिक कार्यो में आसक्त,कुछ स्वार्थी प्रकृति,सहनशील, उद्दमी, आत्मविश्वाशी, क्षमाशील, संगीत एवं सौंदर्य प्रेमी होते है।

वृषभ लग्न की प्रमुख विशेषतायें

शरीर संरचना वृष लग्न में उत्पन्न जातक प्रायः सुगठित, सुन्दर वर्ण, एवं पुष्ट शरीर के होते है। वर्गाकार चेहरा, चमकदार एवं बड़ी आँखे,मध्यम कद, चौड़ा ऊँचा मस्तक, सुगठित कंधे व् उन्नत छाती,पुष्ट गर्दन, जातक सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्त्व का स्वामी होता है।परंतु नासिक एवं होंठ प्रायः कुछ मोटे होते है।

व्यक्तिगत विशेषतायें वृष लग्न स्थिर राशि होने के कारण जातक परिश्रमी, स्थिर विचारो वाला, बुद्विमान, धैर्यवान, स्वाभिमानी, दृढ़ निश्चयी, सहनशील, आत्म विश्वाशी, स्वतंत्र विचारो वाला, उच्चाकांशी, परोपकारी,उदार ह्रदय एवं धार्मिक कृत्यों में निष्ठावान होता है। मधुर भाषी सौन्दर्यप्रेमी, संगीत-कला,साहित्य एवं लेखनादि कार्यो में विशेष अभिरुचि रखने वाला होता है।
यदि शुक्र एवं शनि दोनों शुभ हों तो जातक दूर देशो की यात्रा करने वाला होता है।
जातक व्यक्तिगत स्वार्थ एवं सुविधाओ के लिए कठिन से कठिन परिश्रम करने से भी पीछे नहीं हटता।

अपने परिवार के लिए हर प्रकरण से सहायक तथा नीति के अनुसार आचरण करने वाला एवं अपनी मर्जी के अनुसार ही कार्य करने का स्वाभाव होता है।इन्हें एक ही स्थान पर बैठा कर काम में जूट रहना अच्छा लगता है।यदि कुंडली में शुक्र,बुध एवं शनि शुभ हों तो ऐसा जातक कृषि उद्योग अथवा अन्य उच्चस्तरीय कार्यो में सफल होता है।

जातक सुख एवं ऐश्वर्य के साधनो में निरंतर वृद्धि करता है।घर दफ्तर आदि स्थानों में विशेष सजावट रखने का प्रयास करता है।अतिथियों के प्रति भी विशेष सेवाभाव रखता है। वृष राशि या लग्न के जातक स्वयं किसी से दुर्व्यवहार नहीं करते परंतु जब कोई इन्हें अनुचित रूप से अत्यधिक परेशान करता है,तो ऐसा जातक सांड की भांति शत्रु पर टूट पड़ता है।जातक विपरीत योनियो के प्रति विशेष आकर्षण रखता है।
जातक व्यवहार कुशल एवं विपरीत परिस्तिथियों में भी अपना काम बनाने में सफल होता है तथा भूमि, सवारी, आवास आदि सुखो से संपन्न होता है। वृषभ लग्न के जातको में सहनशीलता का गुण विशेष होता है।ये खाने पीने के शौक़ीन तथा इन्हें घर का आराम छोड़ना पसंद नहीं होता।
यदि कुंडली में बुध-शुक्र, शनि-गुरु, आदि ग्रह अशुभ हो तो जातक को पारिवारिक एवं आर्थिक उलझने हठी प्रकृति,अहंकारी, पूर्वाग्रह से ग्रस्त,मानसिक क्लेश, क्रोधी, लोभी, स्वार्थी, एवं संकुचित वृति आदि दुर्गुणों का बाहुल्य होने से दुखी रहते है।
इन जातको के जीवन का प्रारंभिक भाग प्रायः संघर्षपूर्ण तथा उत्तरार्ध भाग उन्नतिशील एवं सौभाग्यशाली होता है।

भाग्योदय वर्ष 28, 36, 42 वां वर्ष भाग्योदय कारक होता है।

आरोग्य वृष लग्न/राशि के जातक प्रायः गठीले एवं पुष्ट शरीर के होते है,ये छोटी-छोटी पीड़ा की परवाह नहीं करते।कई बार अत्यधिक व्यस्तता के कारण अपने गिरते स्वास्थ्य की उपेक्षा भी कर देते है,फलस्वरूप ये लोग अगर रोगी हो जाए तो बड़ी कठिनाई से स्वस्थ होते है।
सामान्यतः इन्हें गले, आँखों एवं उदर सम्बंधित रोगों की संभावना होती है।इन जातको को अत्यधिक उत्तेजक एवं मादक वस्तुओ के सेवन से परहेज रखना चाहिए।
अन्य सम्बंधित रोगों की आशंका जैसे जुखाम, सर दर्द, टॉन्सिल, पाररिया, राक्तचाप, कब्ज, पथरी, ह्रदय की जलन गुप्त रोग आदि की भी सम्भावना रहती है।
वृष लग्न या राशि के जातक को अपने भोजन में संतुलित आहार और नियमित व्यायाम व् आराम का विशेष ख्याल रखना चाहिये।

शिक्षा एवं कैरियर वृषभ लगन कुंडली में बुध,शुक्र, सूर्य एवं चंद्र ग्रह शुभ भावो में हो अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट या युत हों तो जातक उच्चव्यवसायिक शिक्षा पाने में सफल होता है।ऐसा जातक कम्प्यूटर, कॉमर्स, इंजीनियरिंग, एवं प्रबंधात्मक एवं व्यापार आदि में सफल होते है।

वृष लग्न में शुभ एवं योगकारक ग्रह एवं भावानुसार ग्रहो का फल

सूर्य,बुध,शुक्र,शनि वृष लग्न में भावानुसार प्रायः शुभ फल करते है।

चंद्र,मंगल,एवं गुरु इस लग्न में प्रायः अशुभ कारक माने जाते है।
राहु इस लग्न या राशि में उच्चस्थ माना जाता है।

भावानुसार ग्रहो के फल

सूर्य चतुर्थेश होने से 2, 4, 5, 10, 11 भावो में शुभ 3, 6, 8, वे स्थानों में अशुभ तथा 1, 7, 9 एवं 12 भावो में मिश्रित फल देता है।

चंद्र

1, 3, 5, 7, 9 एवं 11 वे भाव में शुभ तथा अन्य भावो में अशुभकारक होता है।

मंगल 6, 9, एवं 11 वे भाव में शुभ एवं अन्य भावो में अशुभ फल देता है।

बुध 3, 6, 8, 1, एवं 12 वे भाव में अशुभ और अन्य भावो में शुभ फल देता है।

गुरु 3, 7, 10 एवं 1 भाव में शुभ 1, 3, 6 वे भाव में अशुभ तथा 4, 5, 8, 9 और 12 वे भाव में मिश्रित फल देता है।

शुक्र 1, 2, 5, 6, 9 एवं 10 वें भाव में शुभ फलदायी तथा शेष भावो में अशुभ कारक है।

शनि 1, 2, 5, 6, 9, 10, 11 वें भावो में शुभ योग कारक होता है। 3, 4, 8 वे भाव में मिश्रित फलदायी तथा 7 एवं 12 वे भाव में अशुभ फल देता है।इस लग्न में शनि राजयोग कारक भी होता है।

राहु 1, 3, 5, 9, 10, व् 12 वें भाव में शुभ तथा अन्य भावो में अशुभ फली होता है।

केतु 4, 6, 7, 8, 11 वे भाव में शुभ शेष में अशुभ फल देता है।

वृष लग्न में शुभाशुभ योग

  1. शुक्र-शनि का योग 2, 3, 5, 9, 10, एवं ११ वे भावो में शुभ फल देता है।अन्य स्थानों में अशुभ फल होता है।इस योग के प्रभाव से जातक बुद्धिमान,उच्चप्रतिष्ठित, भाग्यवान, एवं जातक की 36 वर्ष के बाद भाग्योन्नति होती है।
  2. मंगल-शनि योग 7 एवं 9 वें भाव में शुभ फल देता है,अन्य स्थानों में अशुभ फल होता है। इस योग के फलस्वरूप जातक अत्यंत संघर्ष के बाद विलम्ब से जीवन में सफलता पाने वाला, एवं स्त्री से मतान्तर और अशांतोषि रहता है।
  3. सूर्य-बुध का योग वृष लग्न में 2, 6, 8 एवं व्यय स्थानों में अशुभ अन्य सभी स्थानों में शुभ फल प्रदान करता है।इस योग से जातक उच्च शिक्षित,धनवान, भूमि,वाहन आदि सुखो से संपन्न होता है।
  4. सूर्य-मंगल का योग 4, 9भावो में शुभ शेष भावो में अशुभ फल देता है।इस योग के प्रभाव से जातक विशेषकर विवाह के बाद भाग्यवान होता है तथा देश-विदेश की यात्राये एवं खर्च अधिक करता है।
  5. सूर्य-शनि का योग 5, 7, 10, 11 एवं 12 वें भाव में शुभ अन्य भावो में अशुभ फल प्रदान करता है,इस योग के प्रभाव से जातक को संघर्ष एवं काफी उलझनों के बाद पैतृक सम्पति प्राप्त होती है।वाहन का सुख श्रेष्ठ रहता है।
  6. बुध शनि का योग 2, 4, 5, 9, 10, एवं 11 वें भाव में शुभ अन्य भावो में अशुभ फल प्रदान करता है।इस योग के कारण जातक के आय के साधन एक से अधिक होते है।क्रय-विक्रय के कार्यो से लाभ होता है।
  7. मंगल-बुध का योग वृष लग्न में 2, 5, 7, 9 वें भाव में शुभ तथा अन्य भावो में अशुभ होता है।इस योग के प्रभाव स्वरूप जातक को देशी-विदेशी सम्पर्को से धन के मार्ग प्रशस्त होते है।विदेश यात्रा के प्रबल योग बनते है।
  8. बुध-शुक्र का योग 2 व् 5 वे भाव में शुभ माना जाता है,अन्यत्र मिश्रित फलदायी होता है।इस योग के प्रभाव स्वरूप जातक विभिन्न साधनो द्वारा धन अर्जित करता है,वस्त्र, कागज़, कम्प्यूटर, एवं सौंदर्य प्रसाधनो में धनार्जन की सम्भावनाये अधिक होती है।

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित ग्रह योग अन्य किसी भी भाव में प्रायः विशेष फल नही करते अर्थात निष्प्रभावी रहते है।

बुध-गुरु, मंगल-गुरु एवं गुरु- शनि।

वृषभ लग्न के जातको के लिए उचित व्यवसाय एवं आर्थिक स्तिथि

वृष लग्न के जातक क्रियात्मक के साथ-साथ सृजनात्मक प्रकृति के भी होते है।अतः वृष लग्न में जन्मे व्यक्ति की कुंडली में यदि बुध, शुक्र, एवं शनि यदि शुभ भावस्त हों तो जातक कंप्यूटर, इंजीनियरिंग,कामर्स-वाणिज्य, शेयर, विज्ञापन, शिक्षा, अध्यापन, प्रकाशन, वकालात, बौद्धिक कार्य, अभिनय, सिनेमा-संगीत, टेलीविजन, सौंदर्य-प्रसाधन, फ़िल्म निर्माण, वस्त्र-उद्योग, फैशन-डिजाईनिंग,सर्विस प्रतिनिधि, अर्थ,संस्थान, बेकरी, मिठाई, पेय प्रदार्थ, एवं प्रबंधात्मक कार्य, सीमेंट,लौह, कल पुर्जे,सेना, सचिव, भवन-निर्माण, पेट्रोलियम पदार्थो से सम्बंधित व्यवसाय वृष लग्न के जातको को विशेष अनूकूल एवं लाभदायक सिद्ध होते है,इन्हें महिलाओ के सहयोग से चलने वाले कार्यो में विशेष सफलता मिलती है।

आर्थिक स्तिथि वृष लग्न के जातको की आर्थिक स्तिथि कार्येश एवं भाग्येश शनि तथा बुध, चंद्र, शुक्र, ग्रहो की स्तिथि पर निर्भर करती है।

इन ग्रहो की दशा-अंतर्दशाओं में जातक विशेष धन-लाभ प्राप्त करता है।
उच्चाभिलाषी होने के कारण इस लग्न के जातक अत्यधिक परिश्रम से भी नहीं डरते।इनकी आय के साधन एक से अधिक होते है। ये छोटी-छोटी बचतों से निर्वाह योग धन जुटा ही लेते है। आकस्मिक खर्चो को छोड़ कर भावावेश में वृथा अपव्यय नहीं करते है।

रोमांस एवं वैवाहिक सुख वृष लग्न के जातक-जातिका पृथ्वी तत्त्व राशि के होने के कारण भावावेश में आकर अपना ह्रदय प्रेमी या प्रेमिका को शीघ्र अर्पित नहीं करते।ये काफी फच समझ कर अपने प्रेमी/प्रेमिका या जीवन साथी के बारे में निर्णय लेते है,परंतु एक बार निर्णय लेने पर अपने निर्णय पर पूरी तरह सुदृढ़ रहते है,तथा प्रेम में पूरी ईमानदारी से एक दूसरे पर समर्पित रहते है। विवाह एवं प्रेम में वृष लग्न के जातक या जातिका परस्पर वफादारी,समर्पण, एवं आंतरिक निष्ठां को विशेष स्थान देते है। इसी कारण वृष लग्न के जातको में तलाक बहुत कम होते है।
यदि वृष लग्न के जातक के किसी पति या पत्नी से उसका साथी विश्वशघात करता है,तो वह उसे जीवनभर क्षमा नहीं करपाते है।

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