धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से (ज्योतिष ज्ञान) मेष राशि एवं लग्न…..
मेष विलग्ने जातः प्रचण्ड रोषो विदेश गमनरतः।
लुब्ध: कृशोल्प सौख्य: स्खलिताभिधायी च।।
शीघ्रगति अल्पसुतो विविधार्थयुत: सुशीलश्च।।
मेष राशि चक्र की प्रथम राशि है।मेष राशि का प्रतीक मेढ़ा(भेड) है।
भेड़ जितनी सीढ़ी और अनुशासन प्रिय होती है,उसका नर उतना ही उग्र एवं स्वछंदता प्रिय होता है।भचक्र में इस राशि का विस्तार 0 से 30 अंश तक है।वासंत सम्पात,सायन मेषारम्भ (२१ मार्च) यहीं से माना जाता है।
मेष राशि के अन्य पर्यायवाची नाम भी है,जैसे अज, मेढ़, विश्व, आद्य, वृष्णि, तुम्बुर, छाग आदि।
मेष राशि का स्वामी मंगल है।इस राशि के अंतर्गत अश्विनी, भरणी, एवं कृतिका के प्रथम चरण का समावेश रहता है। काल पुरुष के शरीर में इसका स्थान सिर, मस्तक एवं मुख है। #देवशर्मा
यह राशि अग्नितत्त्व,चर संज्ञक,पुरुष जाती,क्षत्रिय एवं लाल वर्ण,हृस्व पृष्ठोदयि, युवा रजोगुणी, रात्रिबलि, उग्र प्रकृति,पित्तकारक, एवं पूर्व दिशा की स्वामिनी है। सूर्य इस राशि के 10 अंश तक उच्चस्थ होता है।तथा शनि इस राशि के 20 अंश पर नीच होता है।
मेष राशि या लग्न की मूलभूत विशेषताए
इस राशि या लग्न का जातक अत्यंत साहसी,उत्साही, निडर, अग्नि तत्त्व राशि होने के कारण शीघ्र उत्तेजित होने वाला,स्पष्टवादी, उच्चाभिलाषी, नेतृत्व करने में कुशल, स्वतंत्र विचार वाला, अस्थिर एवं परिवर्तनशील प्रकृति, जल्दबाजी में कई बार हानि उठाने वाला,जोखिम भरे कार्य करने वाला होता है।इसके अतिरिक्त इसका सम्बन्ध लाल वर्ण की धान्य, गेंहू, वस्त्र, सोना, मसूर, एवं भूजन्य औषधियों से भी होता है।
यदि जातक की जन्म राशि एवं लग्न समान हों तो उपरोक्त गुण विशेषताए अधिक मात्रा में होती है।
मेष राशि एवं लग्न में शुभाशुभ एवं योग कारक ग्रह
मेष लग्न में गुरु,सूर्य एवं मंगल शुभ फल देने वाले होते है।
बुध और शुक्र इस लग्न में प्रायः अशुभ फल प्रदान करते है।
इस लग्न में गुरु और शनि के योग होने मात्र से भी शुभ फल नहीं मिलता है।
शुक्र मारक स्थानो का अधिपति होने पर भी अकेला घातक नहीं होता
चंद्र, राहु, केतु व् शनि अन्य ग्रहो के योग से शुभाशुभ फल प्रदान करते है।
शुभाशुभ योग
सूर्य – मंगल योग 1, 3, 5, 7, 10 और 12 वें भाव में यह योग शुभ फल प्रदान करता है अन्य में अशुभ फल देता है।
सूर्य – चंद्र योग 2, 4, 5, 9 एवं 10 वें भाव में शुभ फल एवं अन्य भावो में अशुभ फल देते है।
सूर्य – शुक्र तथा सूर्य – शनि के योग सदैव निष्फलि होते है।
चंद्र – गुरु योग मेष लग्न के पंचम एवं नवम स्थानों में यह योग विशेष शुभ होता है।
मंगल – गुरु योग लग्नेश तथा भाग्येश का योग होने से 1, 5, 9 एवं 10 वें भाव में होने से विशेष प्रशस्त माना गया है।
गुरु – शनि योग 3, और 10 वें भाव में शुभ फल देता है एवं अन्य भावो में अल्प फली होता है।
गुरु – शुक्र योग मेष लग्न में गुरु भाग्येश एवं व्ययेश भी है,तथा शुक्र दोनों मारक (2-7) स्थानों का स्वामी है। यह योग 7 वें तथा 9 वें भाव में शुभ एवं अन्य भावो में अशुभ होता है।
मंगल – शुक्र योग केवल भाग्य स्थान में शुभ फली माना जाता है। अन्य स्थानों में निष्फलि माना जाता है।
इसके अतिरिक्त बुध-मंगल का योग,बुध-गुरु का योग,चंद्र-मंगल,शुक-शनि,मंगल-शनि,तथा बुध-शनि के योग अशुभ फल प्रदायक माने जाते है।
मेष राशि एवं लग्न की प्रमुख विशेषताएं
मेष राशि या लग्न के जातक का सामान्यतः माध्यम कद,इकहरा परंतु सुगठित शरीर होता है।इनका चेहरा चतुष्कोण,गर्दन कुछ लंबाई लिए हुए,लालिमा लिए हुए रक्तिम गौर वर्ण,या कभी गेंहुआ रंग भी होता है,सर एवं मस्तक ऊपर से चौड़ा,आँखे गोल-रक्त वर्ण परंतु इनकी दृष्टि तेज होती है। #देवशर्मा इस राशि या लग्न की स्त्रियों के दांत सुन्दर,बाल घने, काले एवं प्रायः लंबे होते है।
मेष (राशि-लग्न) की सामान्य विशेषताएं
मेष लग्न में उत्पन्न जातक स्वतंत्र विचारो वाला,साहसी, स्वाभिमानी, उद्यमी, चंचल किन्तु प्रखर बुद्धि, तीव्र स्मरण शक्ति वाला,उच्चाभिलाषी,मिलनसार तथा नए-नए मैत्री सम्बन्ध बनाने में कुशल होता है।
मेष लग्न अग्नि तत्व प्रधान एवं चर राशि होने के कारण जातक दृढ निश्चयी,स्फूर्तिवान,व्यवहार कुशल, आत्मविश्वासी तथा स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम होता है।
इनमे नेतृत्व की भावना शक्ति प्रबल होती है।मेष जातक वैज्ञानिक चिंतन पसंद करते है।ऐसे लोग किसी दुसरे की आधीनता या मार्गदर्शन पसंद नहीं करते है। नविन एवं मौलिक विचार उत्पन्न करने में इनकी बुद्धि विशेष कुशल होती है।ये जीवन में नई-नई योजना बनाते रहते है।इनके भीतर एवं बाहरी भाव प्रायः एक जैसे रहते है।इनमे दूसरे व्यक्ति के मनोभावों को समझलेने की अपूर्व शक्ति जन्मजात होती है।एवं संघर्ष की भावना प्रबल होती है।ये जीवन में निजी पुरुषार्थ एवं उद्धम के द्वारा लाभ एवं उन्नति प्राप्त कर लेते है।
यदि इन जातको की कुंडली में चंद्र/मंगल/सूर्य अशुभ हों तो अस्थिर प्रकृति, परिवर्तनशील स्वाभाव, तथा शीघ्र ही उत्तेजित होकर प्रचंड रूप धारण करलेने का स्वाभाव हो जाता है।
चंद्र/मंगल यदि नीच राशिस्थ अथवा शत्रु क्षेत्री या शत्रु ग्रहो से युत हों तो अत्यधिक क्रोधावेश में कई बार अपनी बहुत भारी हानि भी करवा बैठते है।
कुंडली में बुध/मंगल यदि अशुभ हो तो भाई बहनो का सुख बहुत कम मिलता है।
मेष राशि एवं लग्न के जातको की शिक्षा व्यवसाय-कैरियर,आर्थिक स्तिथि एवं
स्वास्थ्य – रोग।
मेष राशि अथवा लग्न के जातक क्रियात्मक (प्रैक्टिकल) अधिक होते है।अतः ये ऐसे व्यवसाय में अधिक सफल हो पाते है जिसमे उद्यम एवं शारीरिक श्रम की विशेष आवश्यकता हो। ये जातक खेल-कूद, दन्त चिकित्सा, कैमिस्ट, फ़ौज, सेनाध्यक्ष, पुलिस, बिजली एवं इलेक्ट्रॉनिक कार्य,ज्यूलर्स, बैकरी, मिठाई, आदि। यदि मंगल/गुरु आदि ग्रहो का शुभ सम्बन्ध हो तो वैद्य, चिकित्सा क्षेत्र, सिनेमा, संगीत, कम्प्यूटर, मशीनरी (इंजीनिरिंग), भूमि-जायदाद, क्रय-विक्रय, विदेशी सम्बन्ध, कम्पनी प्रतिनिधित्त्व, सरकारी क्षेत्रो से सम्बंधित कार्यो में सफलता मिलती है। सूर्य, चंद्र, गुरु, एवं शनि शुभ होने की स्तिथि में राजनीति, प्रशासनिक आर्थिक कार्यो में भी विशेष सफलता मिलती है।
आर्थिक स्तिथि
उच्चाकांक्षी एवं दृढ ऊर्जा-शक्ति होने की कारण मेष लग्न के जातको के पास व्यापक स्तर पर धन कमाने की क्षमता होती है। यदि जन्म पत्री में शनि/शुक्र/मंगल एवं चंद्र आदि ग्रहो की शुभ स्तिथि हो अथवा उनपर शुभ ग्रहो की द्रष्टि हो तो निजी व्यवसाय द्वारा इनमें विपुल धन सम्पदा अर्जित करने की संभावनाएं होती है।
नौकरी की अपेक्षा निजी व्यापार में लाभ एवं उन्नति के विशेष योग रहते है।
सामान्यतः इन्हें जीवन के आरंभिक वर्षो में (आर्थिक क्षेत्र)में विशेष उतार चढाव एवं संघर्ष का सामना कारण पड़ता है।
परंतु जीवन के उत्तरार्ध में अपने परिश्रम एवं कार्य निष्ठां द्वारा आर्थिक क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त कर लेते है।
स्वास्थ्य एवं रोग
राशि स्वामी मंगल के कारण मेष लग्न के जातको का स्वास्थ्य प्रायः अच्छा ही रहता है।यदि किसी कारणवश कोई रोग हो जाए तो जल्दी ठीक हो जाते है।लग्नेश मंगल नीच राशिस्थ हो या अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो छोटी-मोटी दुर्घटनाये होती रहती है।
विशेषकर सिर पर चोट, सिर दर्द,तीव्र ज्वर,मुँहासे मस्तिष्क विकृति, चेचक एवं त्वचा आदि और नेत्र सम्बन्धी एवं पेट विकार आदि रोगों की सम्भावना अधिक रहती है।
सावधानी उच्चाभिलाषी प्रकृति होने के कारण मेष लग्न के जातक कभी-कभी अपने सामर्थ से अधिक कार्य कर जाते है।जिस कारण मानसिक तनाव,पाचन विकृति,उत्तेजना, अनिद्रा आदि मनोविकारों से ग्रस्त होते है। इन्हें हरी सब्जियों फल एवं पौस्टिक भोजन का सेवन अधिक करना चाहिए।तम्बाकू आदि मादक द्रव्य एवं मासाहार आदि तामसी भोजन से परहेज करना चाहिए एव पर्याप्त आराम और नींद भी लेनी चाहिए।
मेष राशि या लग्न के जातको को बिजली कार्य,वर्कशॉप,आदि में कार्य करते समय कार, ट्रक, स्कूटर, आदि वाहन चलाते समय भी विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
क्रमश: अगले लेख में हम मेष लग्न राशि जातिकाओ के विषय मे चर्चा करेंगे।
मेष राशि एवं लग्न की स्त्रियां
मेष राशि या लग्न की स्त्री की शरीर आकृति एवं संरचना प्रायः मध्यम कद संतुलित एवं आकर्षक होती है।
इनकी कुंडली में यदि मंगल-राहु एवं चंद्र शुभ हों तो ऐसी जातिका के दांत सुन्दर,घने एवं लंबे काले बाल होते है।यदि पंचमेश सूर्य भी शुभस्थ या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो, तो जातिका बुद्धिमान,चतुर,एवं स्वतंत्र विचारो वाली,स्वाभिमानी परन्तु सत्यप्रिया, उत्साहशील, फुर्तीली, मिलनसार, उच्चाकांक्षी, एवं आदर्शवादी प्रकृति की होती है।
पुरुष जातको की भाँती ही इनमे भी उत्साह, गर्मजोशी, स्फूर्ति, व्यवहार कुशलता, स्पष्टवादी एवं नेतृत्व की भावना अधिक होती है।
इनमे दूसरे के मनोभाव को समझने की विशेष शक्ति होती है।ये जिस व्यक्ति को पसंद करे उसे पूरी निष्ठा एवं मनोयोग से चाहती है।
इनकी कुंडली में मंगल-शुक्र यदि अशुभ हो तो निरंकुश एवं स्वछंद खर्चीला स्वाभाव होता है।आवेश, क्रोध एवं भावुकता में कई बार अपना ही नुक्सान कर बैठती है।
मेष राशि/लग्न की जातिका की इच्छा शक्ति अत्यंत तीव्र होती है।फिर भी ये अपने मनोभाव एवं क्रोध को संयम करके व्यवहार करें तो गृहस्थ जीवन में अत्यंत सफल होती है।ये वैवाहिक जीवन में अपने परिवार एवं पति के प्रति पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी रखती है।
पार्टनर का कठोर एवं आक्रमक व्यवहार इनके लिए असहनीय हो जाता है।ये अपनी प्रतिष्ठा का विशेष ध्यान रखती है।इनकी आय चाहे सीमित हो फिर भी अपना,अपने परिवार एवं गृह के रहन-सहन के स्तर का भी विशेष ध्यान रखती है।
मेष राशि /लग्न की जातिकाये प्रायः अपने भाई-बंधुओ एवं स्वजनों से प्रेम रखने वाली संवेदनशील और आशावादी दृष्टिकोण रखने वाली होती है।
अनूकूल साथी का चुनाव
मेष राशि/लग्न के जातक-जातिका को उपयुक्त जीवन साथी या पार्टनर के लिए सिंह/तुला व् धनु राशि के जातक अधिक उपयुक्त हो सकते है।
मेष,मिथुन,वृश्चिक एवं कुम्भ राशि/लग्न वाले जातक के साथ मध्यम फल मिलता है।
मेष राशि एवं लग्न जातको का प्रेम एवं वैवाहिक सुख एवं दशा-अंतर्दशा का फल एवं शुभा-शुभ फल विचार
मेष राशि एवं लग्न के जातको का प्रेम एवं वैवाहिक सुख
मेष राशि अथवा लग्न के जातकों का प्रेम एवं विवाहेत्तर स्त्री सुख जन्म कुंडली में शुक्र एवं चंद्र की स्तिथि पर निर्भर करता है।यदि कुंडली में चंद्र-शुक्र के साथ मंगल भी शुभस्त हो तो जातक में विशेष सौन्द्रयाभूति होती है।वह स्त्री या विपरीत सेक्स को शीघ्र प्रभावित कर लेते है।इन्हें विवाह के बाद विशेष धन का लाभ एवं सुख के साधन प्राप्त होते है।जातक की स्त्री सुन्दर एवं गुण संपन्न होती है।
कुंडली में यदि चंद्र/शुक्र एवं भौम पाप युक्त या पाप दृष्ट हों,तो स्त्री के सम्बन्ध से तनाव और कष्ट मिलता है तथा पारिवारिक उलझनों का सामना करना पड़ता है।इसी तरह का योग यदि लड़की की कुंडली में हो तो पति के साथ तनाव एवं कलह क्लेश रहता है।
दशा-अंतर्दशा का फल एवं शुभा-शुभ फल विचार
मेष राशि/लग्न के जातक-जातिका को सूर्य,मंगल एवं चंद्र ग्रहों की दशा-अंतर्दशा प्रायः अच्छा फल देने वाली होती है।
यदि सूर्य-चंद्र शुभ भावस्थ या शुभ दृष्ट हों तो उत्तम फल के कारक होंगे।जैसे विद्या एवं प्रतिस्पर्धा में सफलता एवं भूमि ,भवन सवारी आदि सुखों की प्राप्ति होती है।बुध की दशा-अंतर्दशा अशुभ फल देगी।इनको गुरु,शुक्र,एवं शनि की दशा-अंतर्दशा मिश्रित फल देती है।
गुरु की दशा-अंतर्दशा का पहला भाग शुभ एवं शेष भाग व्ययशील रहता है।शनि की प्रारंभिक दशा में कार्य विलम्ब से एवं शेष दशा में सफलता प्राप्त होगी।
राहु-केतु अपने भाव/राशि एवं ग्रह के साहचर्य अनुसार ही अपनी दशा में शुभाशुभ फल प्रदान करते है।
शुभ रत्न मेष राशि/लग्न के जातक को सवा आठ रत्ती का मूँगा या सवा पांच रत्ती का माणिक्य सोने की अंगूठी में तर्जनी उंगली में धारण करना शुभ एवं लाभदायक रहता है।
शुभ रंग लाल,पीला,श्वेत,संतरी, हल्का नीला एवं भूरा आदि।
शुभ दिन सोमवार,मंगलवार,गुरुवार,शुक्रवार,एवं रविवार के दिन सामान्यतः शुभ एवं अनूकूल रहते है।
भाग्यांक मेष राशि/लग्न का भाग्यांक 9 है।यह मूलांक विशेष उथल-पुथल एवं संघर्ष का प्रतीक है।इस अंक वाला व्यक्ति अत्यंत कठिनाइयों के बाद अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।इसके अतिरिक्त 1 एवं 5 अंक भी इन जातकों के लिए शुभ रहते है।
उपासना इन जातकों को गायत्री मंत्र का जप एवं श्री हनुमान उपासना करना शुभ एवं कल्याणप्रद रहती है।
भाग्योदयकारक वर्ष 28, 30, 32, 36, 37 एवं 41 वां वर्ष भाग्योदय कारक सिद्ध होता है।