वाशिंगटन।कोरोना वायरस के संकट से जूझ रही दुनिया के लिये अब बच्चों पर अटैक कर रही रहस्यमयी बीमारी ने मुश्किलें खड़ी कर दी है। फिलहाल अमेरिका इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। बताया जा रहा है कि ये बीमारी बच्चों में फैल रही है और अकेले न्यूयॉर्क में 73 से ज्यादा बच्चे इसकी चपेट में हैं, जबकि 3 की मौत भी हो गयी है।
वहीं अमेरिका में इस रहस्यमय बीमारी के 100 से अधिक केस सामने आए हैं। अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और स्विट्जरलैंड में भी इस बीमारी की चपेट में 50 से ज्यादा बच्चे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार इसकी चपेट में आने वाले बच्चों की उम्र 2 से 15 साल है।न्यूयॉर्क जीनोम सेंटर और रॉकफेलर यूनिवर्सिटी मिलकर इस बीमारी के कारणों का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
शुरुआत में इसे कोरोना संक्रमण से संबंधित माना जा रहा था लेकिन न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रयू क्योमो ने बताया है कि रहस्यमय बीमारी वाले ज्यादातर बच्चों में सांस लेने में दिक्कत के लक्षण नहीं दिखे हैं।न्यूयॉर्क स्वास्थ्य विभाग ने भी बयान जारी कर बताया है कि इस बात की जांच जारी है कि कुल कितने मामले हैं और मारे गए बच्चों में से कितनों की मौत इस बीमारी से हुई है।
इस बीमारी के शुरूआती लक्षणों में त्वचा और धमनियां सूज जाती हैं। बच्चों की आंखों में जलन होती है और शरीर पर लाल-लाल धब्बे बनते हैं। इसके बाद त्वचा का रंग भी बदलने लगता है।इसके आलावा लंबे समय तक बुखार, पेट-सीने में गंभीर दर्द और लो ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं सामने आती हैं।
डॉक्टर्स का मानना है कि क्योंकि बीमारी और कारणों का पता नहीं है इसलिए इलाज भी मुश्किल है। फिलहाल मरीजों को स्टेरॉयड, इंट्रावेनस इम्युनोग्लोबुलिन और एस्पिरिन दवाएं दे रहे हैं। इसके आलावा मुश्किल परिस्थितियों में एंटीबायोटिक्स भी दी जा रही हैं।मिली जानकारी के अनुसार कुछ मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखना पड़ा और ज्यादा गंभीर मरीजों को वेंटिलेटर पर भी रखना पड़ रहा है।साभार पलपल इंडिया।
जानकारी के अनुसार सिर्फ अमेरिका ही नहीं कई यूरोपीय देशों जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, स्विटजरलैंड और इटली में भी इस रहस्यमयी बीमारी के करीब 50 मामले सामने आ चुके हैं. डब्ल्यूएचओ की वैज्ञानिक डॉ मारिया वैन केरखोवे ने कहा है कि यूरोपीय देशों में इस बीमारी के लक्षण बचपन में होने वाली बीमारी कावासाकी के लक्षणों जैसी है.
शुरूआती छानबीन में पता चला है कि बच्चों पर इस रहस्यमय बीमारी का असर इसलिए ज्यादा हो सकता है, क्योंकि उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह से विकसित नहीं हुई है. इस बीमारी का पता लगाने के लिए फिलहाल जेनेटिक टेस्ट कराए जा रहे हैं.