कोविड-19 से देश जूझ रहा है ,सरकार विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को चुपचाप लागू करने लगी
बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 को तत्काल ठंडे वस्ते में डाला जाना चाहिए
संजय द्विवेदी
लखनऊ।ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स ने विद्युत मंत्रालय द्वारा विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को धरातल पर लाने के समय को सवालों के घेरे में खड़ा किया है। जबकि सभी मीडिया जगत COVID-19 की लड़ाई से विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से एकतरफा ध्यान केंद्रित किए है एवं पूरे देश में पावर सेक्टर के समस्त अधिकारी कर्मचारीगण देश की जनता को COVID-19 के खिलाफ किए जा रहे समग्रतापूर्ण संघर्ष से उबारने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ (24×7) सहयोग दे रहा है। ऐसे संकटकाल में क्या सरकार इस समय को विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को चुपचाप लागू करने के अवसर के रूप में ले रही है, जिसमें राज्यों की सार्वजनिक विद्युत क्षेत्र इकाइयों के विनिवेश को आसान बनाने के प्रावधान हैं।
जिस समय माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरा देश एकजुट होकर COVID-19 महामारी के खिलाफ लड़ रहा है, किसी भी सूरत में मौजूदा विद्युत अधिनियम 2003 में संशोधन करना उचित प्रतीत नहीं होता। ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स (AIFOPDE) ने 30 सितंबर 2020 या जब तक जन-जीवन सामान्य नहीं हो जाता, तब तक के लिए द इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 के संबंध में सभी स्टेकहोल्डर्स द्वारा टिप्पणी प्रस्तुत करने के लिए दी गई 21 दिन की अवधि को तुरंत स्थगित करते हुए जन-जीवन सामान्य होने तक समयावधि बढ़ा दिए जाने की मांग की है।आर.के. त्रिवेदी, अध्यक्ष, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स ने यहां बताया कि विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार ने सभी राज्य सरकारों के बीच 17 अप्रैल को मसौदा बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 को परिचालित किया है और 21 दिनों के भीतर उनकी टिप्पणी मांगी है।
उन्होंने कहा कि देश में व्याप्त COVID-19 संकट से देश का जीवन एक अप्रत्याशित बुरे अनुभव से गुजर रहा है। जिसमें सरकारी / सार्वजनिक क्षेत्रों के तहत काम करने वाले कर्मचारियों द्वारा किए जा रहे दिन-रात के प्रयासों से देश में जन-जीवन को पुनर्जीवित करना संभव हो पा रहा है। इस बात का संज्ञान लेने की महती आवश्यकता है कि सार्वजनिक क्षेत्रों और उनके कर्मचारियों की सेवाएं कितनी महत्वपूर्ण हैं जो हमेशा देश में सामान्य और आपातकालिक स्थितियों में देश के लिए काम करते हैं। इससे सबक लेते हुए, भारत भर में बिजली क्षेत्र सहित सभी क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए था, लेकिन विद्युत अधिनियम 2003 में प्रस्तावित संशोधनों के माध्यम से बिजली क्षेत्र के निजीकरण के विद्युत मंत्रालय द्वारा उठाया गया यह कदम एक बुद्धिमानी भरा कदम नहीं है। जब पूरे देश की अर्थव्यवस्था पंगु है और प्रशासन महामारी से लड़ने में व्यस्त है, तो ऐसे नाजुक दौर में किसी भी कानून में संशोधन लागू करने के लिए यह समय कत्तई उपयुक्त नहीं है तथा सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है। बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 को तत्काल ठंडे वस्ते में डाला जाना चाहिए।
अभिमन्यु धनखड़, महासचिव AIFOPDE ने कहा कि यहां एक तरफ़ इस संकट के दौर में माननीय प्रधानमंत्री जी के देश को एकजुटता का संदेश देने के आवाहन पर बिजली इंजीनियरों ने 05 अप्रैल को पावर ग्रिड को सुरक्षित रूप से संभाल कर अपनी तकनीकी योग्यता दिखाई है जिसमें लाइट बंद करने के दौरान 31000 मेगावाट से अधिक के अभूतपूर्व झटके को नियंत्रित किया है। वहीं दूसरी तरफ निजीकरण के लिए ऐसे समय पर इलेक्ट्रिकल अमेंडमेंट बिल 2020 के पेश किए गए मसौदा बिल को देखकर देश भर के पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स आश्चर्यचकित एवं हैरान-परेशान हैं जिससे उनमें भारी आक्रोश व्याप्त है।
AIFOPDE ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री को एक पत्र लिखा है जिसमें कहा गया है कि ऊर्जा मंत्रालय द्वारा स्टेकहोल्डर्स से टिप्पणियों की प्राप्ति की प्रस्तावित तिथि 30 सितंबर, 2020 तक बढ़ा दी जानी चाहिए क्योंकि लॉक डाउन के कारण मौजूदा संकट में उपरोक्त विषयक कोई विस्तृत चर्चा नहीं हो सकती है। AIFOPDE ने सभी राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों से भी इस सम्बन्ध में आग्रह किया है।
उन्होंने कहा कि पहली नज़र में, बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 का उद्देश्य डिस्कॉम का निजीकरण करना और पहले से बीमार डिस्कॉम से निजी जनरेटर को भुगतान सुनिश्चित कराना है। उनके लिए अलग से लाइसेंस के बिना वितरण उप-लाइसेंसधारी और फ्रेंचाइजी की शुरूआत और भुगतान की सुरक्षा के बिना बिजली का कोई शेड्यूल या डिस्पैच स्पष्ट रूप से बिजली मंत्रालय के ग़लत इरादों की ओर इशारा करता है। जिससे आगे चलकर सब्सिडी और क्रॉस सब्सिडी को समाप्त करने के परिणामस्वरूप आम उपभोक्ताओं के लिए अत्यधिक टैरिफ बढ़ोतरी होगी।
इस तथ्य के बावजूद कि COVID संकट से संघर्ष के दौरान केवल राज्य क्षेत्र की कंपनियां सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी थीं, जबकि निजी इकाइयां देश में इस बुरे समय में कहीं भी दिखाई नहीं दीं, न जाने क्यों सरकार इन सरकारी उपक्रमों को निजी क्षेत्रों को सौंपने को आमादा हैं।