जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से तिलक……..

वैदिक सभ्यता से अवगत लोगों को पता ही होगा कि उसके अनुयायी माथे पर कुछ चिन्ह लगाते हैं, जिसे तिलक कहा जाता है। तिलक अनेक प्रकार के होते हैं, कुछ राख द्वारा बनाये हुए, कुछ मिट्टी से, कुछ कुम-कुम आदि से।
माथे पर राख द्वारा चिन्हित तीन आड़ी रेखाऐं दर्शाती हैं की लगाने वाला शिव-भक्त है। नाक पर तिकोन और उसके ऊपर “V” चिन्ह यह दर्शाता है कि लगाने वाला विष्णु-भक्त है। यह चिन्ह भगवान विष्णु के चरणों का प्रतीक है, जो विष्णु मन्त्रों का उच्चारण करते हुए लगाया जाता है। तिलक लगाने के अनेक कारण एवं अर्थ हैं परन्तु यहाँ हम मुख्यतः वैष्णवों द्वारा लगाये जाने वाले गोपी-चन्दन तिलक के बारे में चर्चा करेंगे । गोपी-चन्दन (मिट्टी) द्वारका से कुछ ही दूर एक स्थान पर पायी जाती है। इसका इतिहास यह है कि जब भगवान इस धरा-धाम से अपनी लीलाएं समाप्त करके वापस गोलोक गए तो गोपियों ने इसी स्थान पर एक नदी में प्रविष्ट होकर अपने शरीर त्यागे। वैष्णव इसी मिटटी को गीला करके विष्णु-नामों का उच्चारण करते हुए, अपने माथे, भुजाओं, वक्ष-स्थल और पीठ पर इसे लगते हैं।
तिलक हमारे शरीर को एक मंदिर की भाँति अंकित करता है, शुद्ध करता है और बुरे प्रभावों से हमारी रक्षा भी करता है। इस तिलक को हम स्वयं देखें या कोई और देखे तो उसे स्वतः ही श्री कृष्ण का स्मरण हो आता है। गोपी चन्दन तिलक के माहात्म्य का वर्णन विस्तार रूप में गर्ग-संहिता के छठवें स्कंध, पन्द्रहवें अध्याय में किया गया है। उसके अतिरिक्त कई अन्य शास्त्रों में भी इसके माहात्म्य का उल्लेख मिलता है।
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