जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र….

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र….

विनियोगः- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-
मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीहनुमान् वडवानल
देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त
विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल-
राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम्
आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं
श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-
स्तोत्र जपमहं करिष्ये ।
ध्यानः-
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये ।।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-
पराक्रम सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-
त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-
मंत्र उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-
पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर
कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन
कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व-पाप-ग्रह-वारण-
सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन ॐ
ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख
निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-
मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-
ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर,
विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान्
छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाच
ान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ
ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां ॐ
सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते
श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भू
तानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-
विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय
मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय
प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाट
न परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु
शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय
नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान्
यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं
कुरु-कुरु स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय
पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-
शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट्
स्वाहा ।
।। इति विभीषणकृतं हनुमद् वडवानल स्तोत्रं ।।
जय सियाराम

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