समर जायसवाल –
संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एक रहेगा – सुरेन्द्र अग्रहरि
(महुली)सोनभद्र- पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की पुण्यतिथि समर्पण दिवस के रूप में महुली आर.बी.एस. क्लब मैदान में मनाई गई।सबसे पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के चित्र पर जनसंघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता मण्डल उपाध्यक्ष अयोध्या प्रसाद गुप्ता जी ने माल्यार्पण किया और कार्यक्रम की शुरुआत की गई।कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए भाजपा नेता सुरेन्द्र अग्रहरि ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म 25 सितम्बर 1916 को नगला चंद्रभान ग्राम में मथुरा में हुआ था।वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिन्तक और संगठन कर्त्ता थे।वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे।उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल नामक विचारधारा दी।वे एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत चाहते थे।राजनीति के अलावा साहित्य में भी उनकी गहरी रूचि थी।भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद नामक विचारधारा दी। 3 वर्ष की अवस्था में पिता का देहांत होना, 7 वर्ष की अवस्था में माता का देहान्त होना ,फिर छोटे भाई और बहन की मृत्यु होना ,एक तरह से इन्होंने मृत्यु का कम उम्र में ही दर्शन और साक्षात्कार किया ।1937 में जब स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे तब अपने सहपाठी बालू जी महाशब्दे की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आए।संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार जी का सानिध्य मिला और द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त कर संघ के जीवनव्रती प्रचारक हो गए।संघ के माध्यम से उपाध्याय जी राजनीति में आए।21 अक्टूबर 1951 को डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जी की अध्यक्षता में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई।गुरूजी गोलवलकर जी की प्रेरणा इनमें निहित थी।1952 में जनसंघ का प्रथम अधिवेशन हुआ जिसमें दीनदयाल जी महामंत्री बने ।इस अधिवेशन में पारित 15 प्रस्तावों में से 7 प्रस्ताव उपाध्याय जी ने प्रस्तुत किये थे।डॉ मुखर्जी ने उनकी कार्यकुशलता और क्षमता से प्रभावित होकर कहा ‘ यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाये तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दू”।1967 तक उपाध्याय जी भारतीय जनसंघ के महामंत्री रहे।1967 में कालीकट अधिवेशन में इनको अध्यक्ष बनाया गया ।मात्र 43 दिन तक अध्यक्ष पद को सुशोभित करने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का11 फरवरी 1968 की रात्रि में मुगलसराय स्टेशन पर उनकी हत्या कर दी गई।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा था
भारत में रहने वाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन है।उनकी जीवन प्रणाली ,कला,साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है।इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है।इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा।।
इस अवसर पर पंकज गोस्वामी, कामेश्वर प्रजापति, वीरेन्द्र कन्नौजिया पिंकी, प्रदीप कन्नौजिया, सूर्यप्रकाश कन्नौजिया, उदय शर्मा, अनिरुद्ध रौनियार, धनंजय रावत , सहित कई लोग उपस्थित रहे।