सोनभद्र। रावर्ट्सगंज तहसील के जलखोरी ग्राम में हनुमान मंदिर प्रांगण पर श्रीरामचरितमानस पाठ महायज्ञ के पांचवें दिन भी श्रीराम भक्तो ने मानस कथा का रसपान किया।
मानस कथा वाचिका सुनीता पांडे ने कहा कि राम कार राज्याभिषेक की खबर सुनकर माता कैकेई को मंथरा ने उकसाया की भगवान राम का राज्याभिषेक होने वाला है। राम का राज्याभिषेक हो जाने पर भरत कभी राजा नही बन पाएंगे। तब माता कैकेई ने राजा दशरथ से पूर्व में दिए गए दो वर मांगने का निश्चय किया। जिसमें प्रथम वर के रूप में भरत को राजगद्दी तथा दूसरे वर के रूप में भगवान राम को चौदह वर्ष का वनवास मांगा सुनहूं प्राण प्रिय भावर जी का, देहु एक बर भरथही टीका । दूसरा वर मांगा कर जोरी, पूरवहु नाथ मनोरथ मोरी” अपने वचन में बधे होने के कारण विवश होकर राजा दशरथ ने राम को वन दीया पिता की आज्ञा सुनकर भगवान राम ने सहर्ष बन जाने का निश्चय किया तथा भगवान के साथ माता सीता एवं लक्ष्मण जी ने भी साथ जाने का अनुरोध किया जिसे श्रीराम ने स्वीकार कर लिया वन गमन की खबर सुनकर संपूर्ण अयोध्यावासी राम के साथ वन को चल दिए तथा रात्रि होने पर तमसा नदी के तट पर पूरे नगर वासियों के साथ विश्राम किया जब भगवान राम के मोह में नगरवासी सो गए ” मोह नीसा सम सोवन हारा, देखही सपनअनेक प्रकारा” तब भगवान अर्ध रात्रि में सुमंत जी को साथ लेकर चले गए तदुपरांत सुमंत जी को वापस कर दिया भगवान श्री राम जब चले तब उनकी मुलाकात निषादराज से हुई निषादराज ने भगवान से उनके यहां ठहरने का अनुनय विनय किया परंतु भगवान निषाद राज केे यहां न जाकर नगर के बाहर वट वृक्ष के नीचे विश्राम किया भगवान को सोता देख कर निषादराज ने रोते हुए लक्ष्मण से कहा कि क्या यह बन जाने लायक है जिनको माता कैकई ने वनवास दिया कब लक्ष्मण जी ने निषादराज से कहा कि ” काहु न कोउ दुख सुख कर दाता, निज कृत करम भोग सुनू भ्राता” दुख सुख किसी के कहने से नहीं आता है यह सभी को अपने कर्मों के अनुसार भोगना पड़ता है निषादराज व लक्ष्मण जी के बीच इस वार्ता को लक्ष्मण गीता के नाम से जाना गया प्रत्येक मनुष्य को माता-पिता एवं गुरू के आदेशों के अनुसार चलना चाहिए इनके आदेश विपरीत होने के बावजूद उनका पालन करने का प्रयत्न करना चाहिए इस अवसर पर प्रमुख यजमान अविनाश शुक्ला दयाशंकर सिंह सुरेंद्र पटेल रिंकू सिंह रामप्रसाद कहार राजेश पटेल आदि रहे।