जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से माघी संकष्टी (तिल चतुर्थी) विशेष…..

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से माघी संकष्टी (तिल चतुर्थी) विशेष…..


संकष्टी चतुर्थी माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को कहा जाता है। वर्ष 2020 में 13 जनवरी को संकष्टी चतुर्थी पड़ रही है। इसे माघी चतुर्थी, सकट चौथ या तिल चौथ भी कहते हैं। बारह मास के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। इस दिन भगवान श्री गणेश की आराधना सुख-सौभाग्य प्रदान करने होती है और कष्टों को दूर करने वाली होती है। इस चतुर्थी पर व्रत करके गणेशजी का पूजन करने से सारी विपदाएं दूर होती हैं।

वस्तुतः संकट चतुर्थी संतान की दीर्घायु हेतु भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा है। इस दिन पूजा करने से संतान के ऊपर आने वाले सभी कष्ट शीघ्रातिशीघ्र दूर हो जाते हैं। धर्मराज युधिष्ठिर न भीे भगवान श्री कृष्ण की सलाह पर इस व्रत को किया था।

गणेश भगवान का जन्मदिन

शिव रहस्य ग्रंथ के अनुसार आदिदेव भगवान गणेश का जन्म माघ कृष्ण चतुर्थी को ही हुआ था। पूर्वांचल में इस दिन गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन से गणेश दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। संकष्टी व्रत करने वाले भक्तों पर श्रीगणेश की कृपा बनी रहती है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वाले श्रद्धालुओं के जीवन के सभी कष्टों का भगवान श्री गणेश निवारण करते हैं।

षोडशोपचार पूजा विधि

इस व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय काल से ही करनी चाहिए। सूर्यास्त से पहले ही गणेश संकट चतुर्थी व्रत कथा-पूजा होती है। पूजा में तिल का प्रयोग अनिवार्य है। तिल के साथ गुड़, गन्ने और मूली का उपयोग करना चाहिए। इस दिन मूली भूलकर भी नहीं खानी चाहिए कहा जाता है कि मूली खाने धन -धान्य की हानि होती है। इस व्रत में चंद्रोदय के समय चन्द्रमा को तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य देना चाहिए। साथ ही संकटहारी गणेश एवं चतुर्थी माता को तिल, गुड़, मूली आदि से अर्घ्य देना चाहिए।

अर्घ्य देने के उपरांत ही व्रत समाप्त करना चाहिए। इस दिन निर्जला व्रत का भी विधान है माताएं निर्जला व्रत अपने पुत्र के दीर्घायु के लिए अवश्य ही करती है। इस दिन तिल का प्रसाद खाना चाहिए। गणेश जी को दूर्वा तथा लड्डू अत्यंत प्रिय है अत: गणेश जी पूजा में दूर्वा और लड्डू जरूर चढ़ाना चाहिए।

पूजन सामग्री

(वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर |

विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें -और आवाहन करें –

गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं |
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||
आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव |
यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ||

और अब प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें –

अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च |
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन ||
आसन-रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम |
आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||

पाद्य (पैर धुलना)

उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम |
पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम ||

अर्घ्य(हाथ धुलना )-

अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै 😐
करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते ||

आचमन

सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं |
आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः ||

स्नान

गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:|
स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे ||

दूध् से स्नान

कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम |
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं ||

दही से स्नान

पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं |
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां ||

घी से स्नान

नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं |
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शहद से स्नान

तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः |
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शर्करा (चीनी) से स्नान

इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम |
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

पंचामृत से स्नान

पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं |
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान

मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम |
तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

वस्त्र

सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे |
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां ||

उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा )

सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव : |
वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो ||

यज्ञोपवीत

नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |
उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||

मधुपर्क

कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः |
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां ||

गन्ध

श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम |
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां ||

रक्त(लाल )चन्दन

रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम |
मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम ||

रोली

कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम |
कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: ||

सिन्दूर

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ||
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां ||

अक्षत

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः |
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः ||

पुष्प

पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: |
पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां ||

पुष्प माला

माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो |
मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: ||

बेल का पत्र

त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : |
तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : ||

दूर्वा

त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि |
सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव ||

दूर्वाकर

दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम |
आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:||

शमीपत्र

शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका |
धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी ||

अबीर गुलाल

अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च |
अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे ||

आभूषण

अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान |
गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: ||

सुगंध तेल

चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: |
वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां ||

धूप

वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : |
आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां ||

दीप

आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम ||

नैवेद्य

शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ||

मध्येपानीय

अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या |
त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि ||

ऋतुफल

नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम |
कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं
प्रतिगृह्यतां ||

आचमन

गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन |
आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम ||

अखंड ऋतुफल

इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव |
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ||

ताम्बूल पूंगीफलं

पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम |
एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां ||

दक्षिणा(दान)

हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: |
अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे ||

आरती

चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च |
त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ||

पुष्पांजलि

नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च |
पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: ||

प्रार्थना

रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात ||
अनया पूजया गणपति: प्रीयतां न मम कहकर प्रणाम कर आरती के लिए खड़े हो जाये।

श्री गणेश जी की आरती

जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा |
माता जाकी पारवती,पिता महादेवा ||
एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी |
मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी || जय …

अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया |
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया || जय …

हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा || जय …

दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी |
कामना को पूरा करो जग बलिहारी || जय …

पौराणिक कथा…..

भगवान शिव और माता पार्वती एक बार नदी किनारे बैठे हुए थे। उसी दौरान माता पार्वती को चौपड़ खेलने का मन हुआ। लेकिन उस समय वहां माता और भगवान शिव के अलाना कोई और मौजूद नहीं था, लेकिन खेल में हार-जीत का फैसला करने के लिए एक व्यक्ति की जरुरत थी। इस विचार के बाद दोनों ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें जान डाल दी और उससे कहा कि खेल में कौन जीता इसका फैसला तुम करना। खेल के शुरु होते ही माता पार्वती विजय हुई और इस प्रकार तीन से चार बार उन्हीं की जीत हुई। लेकिन एक बार गलती से बालक ने भगवान शिव का विजयी के रुप में नाम ले लिया। जिसके कारण माता पार्वती क्रोधित हो गई और उस बालक को लंगड़ा बना दिया। बालक उनसे क्षमा मांगता है और कहता है कि उससे भूल हो गई उसे माफ कर दें। माता कहती हैं कि श्राप वापस नहीं हो सकता लेकिन एक उपाय करके इससे मुक्ति पा सकते हो। माता पार्वती कहती हैं कि इस स्थान पर संकष्टी के दिन कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को श्रद्धापूर्वक करना।

संकष्टी के दिन कन्याएं वहां आती हैं और बालक उनसे व्रत की विधि पूछता और उसके बाद विधिवत व्रत करने से वो भगवान गणेश को प्रसन्न कर लेता है। भगवान गणेश उसे दर्शन देकर उससे इच्छा पूछते हैं तो वो कहता है कि वो भगवान शिव और माता पार्वती के पास जाना चाहता है। भगवान गणेश उसकी इच्छा पूरी करते हैं और वो बालक भगवान शिव के पास पहुंच जाता है। लेकिन वहां सिर्फ भगवान शिव होते हैं क्योंकि माता पार्वती भगवान शिव से रुठ कर कैलाश छोड़कर चली जाती हैं। भगवान शिव उससे पूछते हैं कि वो यहां कैसे आया तो बालक बताता है कि भगवान गणेश के पूजन से उसे ये वरदान प्राप्त हुआ है। इसके बाद भगवान शिव भी माता पार्वती को मनाने के लिए ये व्रत रखते हैं। इसके बाद माता पार्वती का मन अचानक बदल जाता है और वो वापस कैलाश लौट आती हैं। इस कथा के अनुसार भगवान गणेश का संकष्टी के दिन व्रत करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है और संकट दूर होते हैं।

संकष्टी (सकट)चतुर्थी पूजा मुहूर्त……

चौथ के दिन चन्द्रोदय समय – रात्रि 09:05
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 13, 2020 को सायं 05:32 बजे से
चतुर्थी तिथि समाप्त – जनवरी 14, 2020 को दिन 02:49 बजे तक

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