स्वास्थ्य डेस्क। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से बरगद (वट) वृक्ष सैकडों रोगों की अचूक दवा भी है….
बरगद का पेड़- हिंदू संस्कृति में वट वृक्ष यानी बरगद का पेड़ बहुत महत्त्व रखता है। इस पेड़ को त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में वटवृक्ष के बारे में विस्तार से बताया गया है। वट वृक्ष मोक्षप्रद है और इसे जीवन और मृत्यु का प्रतीक माना जाता है। जो व्यक्ति दो वटवृक्षों का विधिवत रोपण करता है वह मृत्यु के बाद शिवलोक को प्राप्त होता है। इस पेड़ को कभी नहीं काटना चाहिए। मान्यता है कि निःसंतान दंपति बरगद के पेड़ की पूजा करें तो उन्हें संतान प्राप्ति हो सकती है।
आग से जल जाना – दही के साथ बड़ को पीसकर बने लेप को जले हुए अंग पर लगाने से जलन दूर होती है। जले हुए स्थान पर बरगद की कोपल या कोमल पत्तों को गाय के दही में पीसकर लगाने से जलन कम हो जाती है।
बालों के रोग – बरगद के पत्तों की 20 ग्राम राख को 100 मिलीलीटर अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करते रहने से सिर के बाल उग आते हैं। बरगद के साफ कोमल पत्तों के रस में, बराबर मात्रा में सरसों के तेल को मिलाकर आग पर पकाकर गर्म कर लें, इस तेल को बालों में लगाने से बालों के सभी रोग दूर हो जाते हैं।
25-25 ग्राम बरगद की जड़ और जटामांसी का चूर्ण, 400 मिलीलीटर तिल का तेल तथा 2 लीटर गिलोय का रस को एकसाथ मिलाकर धूप में रख दें, इसमें से पानी सूख जाने पर तेल को छान लें। इस तेल की मालिश से गंजापन दूर होकर बाल आ जाते हैं और बाल झड़ना बंद हो जाते हैं।
बरगद की जटा और काले तिल को बराबर मात्रा में लेकर खूब बारीक पीसकर सिर पर लगायें। इसके आधा घंटे बाद कंघी से बालों को साफ कर ऊपर से भांगरा और नारियल की गिरी दोनों को पीसकर लगाते रहने से बाल कुछ दिन में ही घने और लंबे हो जाते हैं।
नाक से खून बहना – 3 ग्राम बरगद की जटा के बारीक पाउडर को दूध की लस्सी के साथ पिलाने से नाक से खून बहना बंद हो जाता है। नाक में बरगद के दूध की 2 बूंदें डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है।
नींद का अधिक आना – बरगद के कड़े हरे शुष्क पत्तों के 10 ग्राम दरदरे चूर्ण को 1 लीटर पानी में पकायें, चौथाई बच जाने पर इसमें 1 ग्राम नमक मिलाकर सुबह-शाम पीने से हर समय आलस्य और नींद का आना कम हो जाता है।
जुकाम – बरगद के लाल रंग के कोमल पत्तों को छाया में सुखाकर पीसकर रख लें। फिर आधा किलो पानी में इस पाउडर को 1 या आधा चम्मच डालकर पकायें, पकने के बाद थोड़ा सा बचने पर इसमें 3 चम्मच शक्कर मिलाकर सुबह-शाम चाय की तरह पीने से जुकाम और नजला आदि रोग दूर होते हैं और सिर की कमजोरी ठीक हो जाती है।
हृदय रोग – 10 ग्राम बरगद के कोमल हरे रंग के पत्तों को 150 मिलीलीटर पानी में खूब पीसकर छानकर उसमें थोड़ी मिश्री मिलाकर सुबह-शाम 15 दिन तक सेवन करने से दिल की घड़कन सामान्य हो जाती है। बरगद के दूध की 4-5 बूंदे बताशे में डालकर लगभग 40 दिन तक सेवन करने से दिल के रोग में लाभ मिलता है।
पैरों की बिवाई – बिवाई की फटी हुई दरारों पर बरगद का दूध भरकर मालिश करते रहने से कुछ ही दिनों में वह ठीक हो जाती है।
कमर दर्द – कमर दर्द में बरगद़ के दूध की मालिश दिन में 3 बार कुछ दिन करने से कमर दर्द में आराम आता है। बरगद का दूध अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करने से कमर दर्द से छुटकरा मिलता है।
शक्तिवर्द्धक – बरगद के पेड़ के फल को सुखाकर बारीक पाउडर लेकर मिश्री के बारीक पाउडर मिला लें। रोजाना सुबह इस पाउडर को 6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन से वीर्य का पतलापन, शीघ्रपतन आदि रोग दूर होते हैं।
शीघ्रपतन – सूर्योदय से पहले बरगद़ के पत्ते तोड़कर टपकने वाले दूध को एक बताशे में 3-4 बूंद टपकाकर खा लें। एक बार में ऐसा प्रयोग 2-3 बताशे खाकर पूरा करें। हर हफ्ते 2-2 बूंद की मात्रा बढ़ाते हुए 5-6 हफ्ते तक यह प्रयोग जारी रखें। इसके नियमित सेवन से शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन, स्वप्नदोष, प्रमेह, खूनी बवासीर, रक्त प्रदर आदि रोग ठीक हो जाते हैं और यह प्रयोग बलवीर्य वृद्धि के लिए भी बहुत लाभकारी है।
यौनशक्ति बढ़ाने हेतु – बरगद के पके फल को छाया में सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को बराबर मात्रा की मिश्री के साथ मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह खाली पेट और सोने से पहले एक कप दूध से नियमित रूप से सेवन करते रहने से कुछ हफ्तों में यौन शक्ति में बहुत लाभ मिलता है।
नपुंसकता – बताशे में बरगद के दूध की 5-10 बूंदे डालकर रोजाना सुबह-शाम खाने से नपुंसकता दूर होती है। 3-3 ग्राम बरगद के पेड़ की कोंपले (मुलायम पत्तियां) और गूलर के पेड़ की छाल और 6 ग्राम मिश्री को पीसकर लुगदी सी बना लें फिर इसे तीन बार मुंह में रखकर चबा लें और ऊपर से 250 ग्राम दूध पी लें। 40 दिन तक खाने से वीर्य बढ़ता है और संभोग से खत्म हुई शक्ति लौट आती है।
प्रमेह – बरगद के दूध की पहले दिन 1 बूंद 1 बतासे डालकर खायें, दूसरे दिन 2 बतासों पर 2 बूंदे, तीसरे दिन 3 बतासों पर 3 बूंद ऐसे 21 दिनों तक बढ़ाते हुए घटाना शुरू करें। इससे प्रमेह और स्वप्न दोष दूर होकर वीर्य बढ़ने लगता है।
वीर्य रोग में – बरगद के फल छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें। गाय के दूध के साथ यह 1 चम्मच चूर्ण खाने से वीर्य गाढ़ा व बलवान बनता है।
25 ग्राम बरगद की कोपलें (मुलायम पत्तियां) लेकर 250 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब एक चौथाई पानी बचे तो इसे छानकर आधा किलो दूध में डालकर पकायें। इसमें 6 ग्राम ईसबगोल की भूसी और 6 ग्राम चीनी मिलाकर सिर्फ 7 दिन तक पीने से वीर्य गाढ़ा हो जाता है। बरगद के दूध की 5-7 बूंदे बताशे में भरकर खाने से वीर्य के शुक्राणु बढ़ते है।
उपदंश (सिफलिस) – बरगद की जटा के साथ अर्जुन की छाल, हरड़, लोध्र व हल्दी को समान मात्रा में लेकर पानी में पीसकर लेप लगाने से उपदंश के घाव भर जाते हैं। बरगद का दूध उपदंश के फोड़े पर लगा देने से वह बैठ जाती है। बड़ के पत्तों की भस्म (राख) को पान में डालकर खाने से उपदंश रोग में लाभ होता है।
पेशाब की जलन – बरगद के पत्तों से बना काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में 2-3 बार सेवन करने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है। यह काढ़ा सिर के भारीपन, नजला, जुकाम आदि में भी फायदा करता है।
स्तनों का ढीलापन – बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर बने लेप को रोजाना सोते समय स्तनों पर मालिश करके लगाते रहने से कुछ हफ्तों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है। बरगद की जटा के बारीक अग्रभाग के पीले व लाल तन्तुओं को पीसकर लेप करने से स्तनों के ढीलेपन में फायदा होता है।
गर्भपात होने पर – 4 ग्राम बरगद की छाया में सुखाई हुई छाल के चूर्ण को दूध की लस्सी के साथ खाने से गर्भपात नहीं होता है। बरगद की छाल के काढ़े में 3 से 5 ग्राम लोध्र की लुगदी और थोड़ा सा शहद मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से गर्भपात में जल्द ही लाभ होता है। योनि से रक्त का स्राव यदि अधिक हो तो बरगद की छाल के काढ़ा में छोटे कपड़े को भिगोकर योनि में रखें। इन दोनों प्रयोग से श्वेत प्रदर में भी फायदा होता है।
योनि का ढीलापन – बरगद की कोपलों के रस में फोया भिगोकर योनि में रोज 1 से 15 दिन तक रखने से योनि का ढीलापन दूर होकर योनि टाईट हो जाती है।
गर्भधारण करने हेतु – पुष्य नक्षत्र और शुक्ल पक्ष में लाये हुए बरगद की कोपलों का चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में मासिक-स्राव काल में प्रात: पानी के साथ 4-6 दिन खाने से स्त्री अवश्य गर्भधारण करती है, या बरगद की कोंपलों को पीसकर बेर के जितनी 21 गोलियां बनाकर 3 गोली रोज घी के साथ खाने से भी गर्भधारण करने में आसानी होती है।
गर्भकाल की उल्टी – बड़ की जटा के अंकुर को घोटकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से सभी प्रकार की उल्टी बंद हो जाती है।
रक्तप्रदर – 20 ग्राम बरगद के कोमल पत्तों को 100 से 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर रक्तप्रदर वाली स्त्री को सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है। स्त्री या पुरुष के पेशाब में खून आता हो तो वह भी बंद हो जाता है।
भगन्दर – बरगद के पत्ते, सौंठ, पुरानी ईंट के पाउडर, गिलोय तथा पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लेप करने से भगन्दर के रोग में फायदा होता है।
बादी बवासीर – 20 ग्राम बरगद की छाल को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, पकने पर आधा पानी रहने पर छानकर उसमें 10-10 ग्राम गाय का घी और चीनी मिलाकर गर्म ही खाने से कुछ ही दिनों में बादी बवासीर में लाभ होता है।
खूनी बवासीर – बरगद के 25 ग्राम कोमल पत्तों को 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर खूनी बवासीर के रोगी को पिलाने से 2-3 दिन में ही खून का बहना बंद होता है। बवासीर के मस्सों पर बरगद के पीले पत्तों की राख को बराबर मात्रा में सरसों के तेल में मिलाकर लेप करते रहने से कुछ ही समय में बवासीर ठीक हो जाती है।
बरगद की सूखी लकड़ी को जलाकर इसके कोयलों को बारीक पीसकर सुबह-शाम 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ रोगी को देते रहने से खूनी बवासीर में फायदा होता है। कोयलों के पाउडर को 21 बार धोये हुए मक्खन में मिलाकर मरहम बनाकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से बिना किसी दर्द के दूर हो जाते हैं।
खूनी दस्त – दस्त के साथ या पहले खून निकलता है। उसे खूनी दस्त कहते हैं। इसे रोकने के लिए 20 ग्राम बरगद की कोपलें लेकर पीस लें और रात को पानी में भिगोंकर सुबह छान लें फिर इसमें 100 ग्राम घी मिलाकर पकायें, पकने पर घी बचने पर 20-25 ग्राम तक घी में शहद व शक्कर मिलाकर खाने से खूनी दस्त में लाभ होता है।
दस्त – बरगद के दूध को नाभि के छेद में भरने और उसके आसपास लगाने से अतिसार (दस्त) में लाभ होता है। 6 ग्राम बरगद की कोंपलों को 100 मिलीलीटर पानी में घोटकर और छानकर उसमें थोड़ी मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाने से और ऊपर से मट्ठा पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं।
बरगद की छाया मे सुखाई गई 3 ग्राम छाल को लेकर पाउड़र बना लें और दिन मे 3 बार चावलों के पानी के साथ या ताजे पानी के साथ लेने से दस्तों में फायदा मिलता है। बरगद की 8-10 कोंपलों को दही के साथ खाने से दस्त बंद हो जाते हैं।
आंव – लगभग 5 ग्राम की मात्रा में बड़ के दूध को सुबह-सुबह पीने से आंव का दस्त समाप्त हो जाता है।
मधुमेह – 20 ग्राम बरगद की छाल और इसकी जटा को बारीक पीसकर बनाये गये चूर्ण को आधा किलो पानी में पकायें, पकने पर अष्टमांश से भी कम बचे रहने पर इसे उतारकर ठंडा होने पर छानकर खाने से मधुमेह के रोग में लाभ होता है। लगभग 24 ग्राम बरगद के पेड़ की छाल लेकर जौकूट करें और उसे आधा लीटर पानी के साथ काढ़ा बना लें। जब चौथाई पानी शेष रह जाए तब उसे आग से उतारकर छाने और ठंडा होने पर पीयें। रोजाना 4-5 दिन तक सेवन से मधुमेह रोग कम हो जाता है। इसका प्रयोग सुबह-शाम करें।
उल्टी – लगभग 3 ग्राम से 6 ग्राम बरगद की जटा का सेवन करने से उल्टी आने का रोग दूर हो जाता है।
मुंह के छाले – 30 ग्राम वट की छाल को 1 लीटर पानी में उबालकर गरारे करने से मुंह के छाले खत्म हो जाते हैं।
घाव – घाव में कीड़े हो गये हो, बदबू आती हो तो बरगद की छाल के काढ़े से घाव को रोज धोने से इसके दूध की कुछ बूंदे दिन में 3-4 बार डालने से कीड़े खत्म होकर घाव भर जाते हैं। साधारण घाव पर बरगद के दूध को लगाने से घाव जल्दी अच्छे हो जाते हैं। अगर घाव ऐसा हो जिसमें कि टांके लगाने की जरूरत पड़ जाती है। तो ऐसे में घाव के मुंह को पिचकाकर बरगद के पत्ते गर्म करके घाव पर रखकर ऊपर से कसकर पट्टी बांधे, इससे 3 दिन में घाव भर जायेगा, ध्यान रहे इस पट्टी को 3 दिन तक न खोलें। फोड़े-फुन्सियों पर इसके पत्तों को गर्मकर बांधने से वे शीघ्र ही पककर फूट जाते हैं