जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भगवान शंकर को प्रिय है प्रदोष व्रत, देता है यश, वैभव और समृद्धि……

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भगवान शंकर को प्रिय है प्रदोष व्रत, देता है यश, वैभव और समृद्धि……

व्रतराज नामक ग्रन्थ में सूर्यास्त से तीन घटी पूर्व के समय को प्रदोष का समय माना गया है। अर्थात् सूर्यास्त से सवा घंटा पूर्व के समय को प्रदोष काल कहा गया है। तिथियों में त्रयोदशी तिथि को भी प्रदोष तिथि की संज्ञा प्रदान की गयी है। इसका मतलब सायंकालीन त्रयोदशी तिथि को किया जाने वाला व्रत प्रदोष व्रत कहलाता है।

प्रदोष व्रत पूर्व तिथि के संयोग से मनाया जाता है। यानी द्वादशी तिथि से संयुक्त त्रयोदशी तिथि को यह व्रत आचरित किया जाता है। पक्ष भेद होने के कारण इसे शुक्ल या कृष्ण प्रदोष व्रत कहा जाता है। भगवान शिव को यह व्रत परम प्रिय है इसलिये इस व्रत में शिवजी की उपासना की जाती है। पुराणों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से सांसारिक दुखों से निवृत्ति मिलती है। यह व्रत सुख संपदा युक्त जीवन शैली के अलावा हमें यश, कीर्ति, ख्याति, वैभव और सम्पन्नता देने में समर्थ होता है

व्रत है कल्याणकारी

यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडऩे वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है। भगवान शिव की आराधना करने वाले जातकों को गरीबी, मृत्यु, दुःख और ऋणों से मुक्ति मिलती है। सोमवार के दिन त्रयोदशी पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य देता है तो सोमवार के त्रयोदशी प्रदोष व्रत से मनोइच्छा की पूर्ति होती है।

जिस मास में मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है, वहीं बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो उपासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है। गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिए किया जाता है। शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है। आखिर में जिन्हें संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडऩे वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए।

जल्द प्रसन्न होने वाले देव हैं महादेव

अपनी सामर्थ्य के अनुसार पूजन सामग्री, विल्वपत्रादि लाकर संभव हो सके तो पति-पत्नी एक साथ बैठकर शिवजी का पूजन करें। यदि कोई मंत्र नहीं आते हों तो ऊँ नम: शिवाय का जाप करते हुए पूजा करें। महादेव जल्द प्रसन्न होने वाले देव हैं।

प्रदोष व्रत रखने से सांसारिक दुखों की भी निवृत्ति होती है। यह व्रत सुख संपदा युक्त जीवन शैली के अलावा हमें यश, कीति, ख्याति और वैभव देने में समर्थ होता है। विशेष रूप से श्रावण भाद्रपद, कार्तिक और माघ मास में पडऩे वाले प्रदोष व्रत आज के दैहिक-भौतिक कष्टों का निवारण करने में परम सहायक होता है।

प्रदोष व्रत के महात्म्य एवं फल…..

हिन्दू परिवारों में व्रत एवं उन्हें करने पर विभिन्न फलों को लेकर कई मान्यताएं बनी हुई हैं। प्रत्येक व्रत के एक स्वामी होते हैं, जैसे कि कोई देवी या देवता। हर एक व्रत की अपनी व्रत एवं पूजन विधि होती है, जिसका पालन करना अति आवश्यक माना गया है। क्योंकि हिन्दू धर्म में धार्मिक नियमों का उल्लंघन करना पाप के समान है.
यदि आप हिन्दू धर्म से संबंध रखते हैं तो व्रत के दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं, तो इसके बारे में हमें आपको अधिक गहराई से बताने की आवश्यकता नहीं है। आपने स्वयं ही बचपन से अपनी दादी-नानी या मम्मी-चाची को व्रत के दौरान क्या-क्या करना चाहिए, यह सब करते देखा ही होगा।
यूं तो यह व्रत साल में कई बार आता है, कई बार तो महीने में दो बार भी आता है। लेकिन हर बार इसका महत्व एवं व्रत से मिलने वाला फल भिन्न होता है।
हिन्दू धार्मिक तथ्यों के अनुसार स्कंद पुराण में प्रदोष व्रत का उल्लेख मिलता है। जिसके मुताबिक प्रत्येक माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी के दिन संध्याकाल के समय को “प्रदोष” कहा जाता है और इस दिन शिवजी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है।

पौराणिक कथा….

स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया, लेकिन वह नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है। दरअसल वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था, जिसे शत्रुओं ने उसके राज्य से बाहर कर दिया था। एक भीषण युद्ध में शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। तत्पश्चात उसकी माता की भी मृत्यु हो गई। नदी किनारे बैठा वह बालक बेहद उदास लग रहा था, इसलिए ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया। अब वह उसे ठीक उसी प्रकार से स्नेह करती जैसे कि अपने स्वयं के पुत्र को करती थी, राजकुमार भी उसके साथ अति प्रसन्न था। कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य उस समय के विख्यात ऋषि थे, जिन्हें हर कोई मानता था, ऋषि ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे। राजा तो युद्ध में मारे गए लेकिन बाद में उनकी रानी यानी कि उस बालक की माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। यह सुन ब्राह्मणी बेहद दुखी हुई… लेकिन तभी ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया। सभी ने ऋषि द्वारा बताए गए पूर्ण विधि-विधान से ही व्रत सम्पन्न किया, लेकिन वह नहीं जानते थे कि यह व्रत उन्हें क्या फल देने वाला है।
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त वहीं रह गए। वे वहां “अंशुमती” नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए थे और उनसे बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक-दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता को मालूम हुआ कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।
वह समय दूर नहीं था जब राजकुमार के सितारे वापस पलटने लगे। इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने बेहद संघर्ष किया, दोबारा से अपनी गंधर्व सेना तैयार की और युद्ध करके अपने विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया।
कुछ समय के पश्चात उन्हें यह ज्ञात हुआ कि जो कुछ भी बीते समय में उन्हें हासिल हुआ है वह यूं ही नहीं हुआ। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें जीवन की हर कठिनाई से लड़ने की शक्ति प्रदान की।

यहीं से उत्पन्न हुई प्रदोष व्रत की मान्यता
तभी से हिदू धर्म में यह मान्यता उत्पन्न हो गई कि जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा के बाद एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती। उसके जीवन के सभी कष्ट अपने आप ही दूर होते जाते हैं। भोलेनाथ उनके जीवन पर समस्या के बादल नहीं आने देते।

प्रदोष व्रत यूं तो अपने आप में ही महान है, लेकिन इस व्रत से जुड़े तथ्य और भी रोचक हैं। कहते हैं कि जिस भी दिन यह व्रत आता है, उसके आधार पर इस व्रत का नाम एवं महत्व बदलता जाता है।

उदाहरण के लिए यदि रविवार के दिन प्रदोष व्रत आप रखते हैं तो सदा निरोग रहेंगे, इस व्रत को रविप्रदोष व्रत कहा जाता है। इसके बाद यदि आप सोमवार के दिन व्रत करते हैं, तो इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंगलवार को प्रदोष व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और आप स्वस्थ रहते हैं।
बुधवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होती है। बृहस्पतिवार के व्रत से शत्रु का नाश होता है। शुक्रवार प्रदोष व्रत से सौभाग्य की वृद्धि होती है। अंत में आता है शनिवार का दिन, तो शनिवार के दिन यदि आप प्रदोष व्रत करते हैं तो इससे पुत्र की प्राप्ति होती है।
धार्मिक मान्यताओं के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि जिस भी दिन प्रदोष व्रत करना हो, उस वार को पड़ने वाली त्रयोदशी का चयन करें तथा उसी वार के अनुसार कथा पढ़ें-सुनें। यह अधिक फलदायी सिद्ध होता है…

अंत में आपको इस व्रत को करने की विधि बताते हैं। सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है, तो आप शिवजी की मूरत की पूजा कर सकते हैं। ध्यान रहे कि इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की (बेलपत्र), गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।

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