जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से शिव -पार्वती संवाद —

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से शिव -पार्वती संवाद —

भगवान शिव ने देवी पार्वती को समय-समय पर कई ज्ञान की बातें बताई हैं। जिनमें मनुष्य के सामाजिक जीवन से लेकर पारिवारिक और वैवाहिक जीवन की बातें शामिल हैं। भगवान शिव ने देवी पार्वती को 5 ऐसी बातें बताई थीं जो हर मनुष्य के लिए उपयोगी हैं, जिन्हें जानकर उनका पालन हर किसी को करना ही चाहिए-

1. क्या है सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ा पाप?

देवी पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उन्हें मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा धर्म और अधर्म मानी जाने वाली बात के बारे में बताया है। भगवान शंकर कहते है-

श्लोक- नास्ति सत्यात् परोधर्मः नानृतात् पातकं परम्।।

अर्थात- मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना या सत्य का साथ देना और सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना या उसका साथ देना।

इसलिए हर किसी को अपने मन, अपनी बातें और अपने कामों से हमेशा उन्हीं को शामिल करना चाहिए, जिनमें सच्चाई हो, क्योंकि इससे बड़ा कोई धर्म है ही नहीं। असत्य कहना या किसी भी तरह से झूठ का साथ देना मनुष्य की बर्बादी का कारण बन सकता है।

2. काम करने के साथ इस एक और बात का रखें ध्यान–

श्लोक- आत्मसाक्षी भवेन्नित्यमात्मनुस्तु शुभाशुभे।

अर्थात- मनुष्य को अपने हर काम का साक्षी यानी गवाह खुद ही बनना चाहिए, चाहे फिर वह अच्छा काम करे या बुरा। उसे कभी भी ये नहीं सोचना चाहिए कि उसके कर्मों को कोई नहीं देख रहा है।

कई लोगों के मन में गलत काम करते समय यही भाव मन में होता है कि उन्हें कोई नहीं देख रहा और इसी वजह से वे बिना किसी भी डर के पाप कर्म करते जाते हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और ही होती है। मनुष्य अपने सभी कर्मों का साक्षी खुद ही होता है। अगर मनुष्य हमेशा यह एक भाव मन में रखेगा तो वह कोई भी पाप कर्म करने से खुद ही खुद को रोक लेगा।

3. कभी न करें ये तीन काम करने की इच्छा

श्लोक-मनसा कर्मणा वाचा न च काड्क्षेत पातकम्।

अर्थात- आगे भगवान शिव कहते है कि- किसी भी मनुष्य को मन, वाणी और कर्मों से पाप करने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि मनुष्य जैसा काम करता है, उसे वैसा फल भोगना ही पड़ता है।

यानि मनुष्य को अपने मन में ऐसी कोई बात नहीं आने देना चाहिए, जो धर्म-ग्रंथों के अनुसार पाप मानी जाए। न अपने मुंह से कोई ऐसी बात निकालनी चाहिए और न ही ऐसा कोई काम करना चाहिए, जिससे दूसरों को कोई परेशानी या दुख पहुंचे। पाप कर्म करने से मनुष्य को न सिर्फ जीवित होते हुए इसके परिणाम भोगना पड़ते हैं बल्कि मारने के बाद नरक में भी यातनाएं झेलना पड़ती हैं।

4. सफल होने के लिए ध्यान रखें ये एक बात
संसार में हर मनुष्य को किसी न किसी मनुष्य, वस्तु या परिस्थित से आसक्ति यानि लगाव होता ही है। लगाव और मोह का ऐसा जाल होता है, जिससे छूट पाना बहुत ही मुश्किल होता है। इससे छुटकारा पाए बिना मनुष्य की सफलता मुमकिन नहीं होती, इसलिए भगवान शिव ने इससे बचने का एक उपाय बताया है।

श्लोक-दोषदर्शी भवेत्तत्र यत्र स्नेहः प्रवर्तते।

अनिष्टेनान्वितं पश्चेद् यथा क्षिप्रं विरज्यते।।

अर्थात- भगवान शिव कहते हैं कि- मनुष्य को जिस भी व्यक्ति या परिस्थित से लगाव हो रहा हो, जो कि उसकी सफलता में रुकावट बन रही हो, मनुष्य को उसमें दोष ढूंढ़ना शुरू कर देना चाहिए। सोचना चाहिए कि यह कुछ पल का लगाव हमारी सफलता का बाधक बन रहा है। ऐसा करने से धीरे-धीरे मनुष्य लगाव और मोह के जाल से छूट जाएगा और अपने सभी कामों में सफलता पाने लगेगा।

5. यह एक बात समझ लेंगे तो नहीं करना पड़ेगा दुखों का सामना,श्लोक-

नास्ति तृष्णासमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम्।

. सर्वान् कामान् परित्यज्य ब्रह्मभूयाय कल्पते।।

अर्थात- आगे भगवान शिव मनुष्यो को एक चेतावनी देते हुए कहते हैं कि- मनुष्य की तृष्णा यानि इच्छाओं से बड़ा कोई दुःख नहीं होता और इन्हें छोड़ देने से बड़ा कोई सुख नहीं है। मनुष्य का अपने मन पर वश नहीं होता। हर किसी के मन में कई अनावश्यक इच्छाएं होती हैं और यही इच्छाएं मनुष्य के दुःखों का कारण बनती हैं। जरुरी है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं में अंतर समझे और फिर अनावश्यक इच्छाओं का त्याग करके शांत मन से जीवन बिताएं।
!पार्वतीपतये नम:!!

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