
अटल एवं महामना जयंती के अवसर पर सोन संगम की विचारगोष्ठी एवं काव्य संध्या
शक्तिनगर, सोनभद्र। साहित्यिक, सामाजिक संस्था सोन संगम के तत्वावधान में, भारत रत्न द्वय अटल बिहारी वाजपेयी एवं महामना मदन मोहन मालवीय की जयंती पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, शक्तिनगर परिसर में 25 दिसम्बर 2019, बुधवार की शाम एक विचारगोष्ठी एवं काव्य संध्या का आयोजन राजीव दुबे, प्रबन्धक, पॉवर ग्रिड, मिर्जापुर के मुख्य आतिथ्य में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता चन्द्रशेखर जोशी ने की, जबकि संचालन पाणि पंकज पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत दोनों महापुरुषों के चित्रों पर पुष्पार्चन से हुई। विचारगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि राजीव दुबे नेे अटल जी एवं महामना मालवीय जी को संघर्ष, समन्वय एवं दूरदृष्टि का अद्भुत संगम बताया। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रो0 मानिक चन्द पाण्डेय ने मालवीय जी के व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्हें कुशल संगठक, प्रखर वक्ता एवं भारतीय संस्कृति का सच्चा उपासक निरूपित किया। अध्यक्षता कर रहे चन्द्रशेखर जोशी ने दोनों महापुरुषों को नये भारत का निर्माता बताते हुए उनके दिखाये मार्ग पर चलने का आग्रह किया। डॉ0 मुनीश मिश्र ने मालवीय जी को दूरदर्शी शिक्षाविद के रूप में रेखांकित करते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु किये गये उनके अथक प्रयासों का स्मरण किया। पंकज श्रीवास्तव ने अटल जी एवं मालवीय जी को प्रेम, करुणा एवं समरसता का उन्नायक बताया। राजेन्द्र नारायण दुबे ने अटल जी को अजातशत्रु बताते हुए उन्हें राजनीति के मर्यादा पुरुष के रूप में याद किया। डॉ0 छोटेलाल जायसवाल ने मालवीय जी के पत्रकार रूप को रेखांकित किया तो उमेश चन्द्र जायसवाल ने उनके संगठक रूप का स्मरण किया।

काव्य संध्या की शुरुआत विन्ध्यनगर से पधारे रवीन्द्र मिश्र की सरस्वती वन्दना से हुई। योगेन्द्र मिश्र ने अटल जी की सुविख्यात कविताओं ‘आओ फिर से दिया जलाएँ’, ‘आओ मन की गाँठें खोलें’ आदि का वाचन किया। सुरेश गिरि प्रखर ने ‘युग के नेता अटल बिहारी’ गीत सुनाकर अटल जी को श्रद्धांजलि दी। रवीन्द्र मिश्र ने ‘तू जिन्दगी में सिर्फ यही काम किये जा, आराम किये जा, यूँ ही आराम किये जा’ गीत सुनाकर श्रोताओं को गुदगुदाया। डॉ0 ब्रजेन्द्र शुक्ल ने ‘सौमनस्य से वैमनस्य की खाइयाँ भरें’ कविता से श्रोताओं की खूब वाहवाही बटोरी। रमाकान्त पाण्डेय ने ‘काहे बालेला बोलिया कठोर भइया’ गीत सुनाकर सामाजिक समरसता का सन्देश दिया। योगेन्द्र मिश्र ने ‘अफवाहों को ज्ञान बनाने निकले हैं, झूठे हिन्दुस्तान बनाने निकले हैं’ गजल से फिरकापरस्ती पर सशक्त प्रहार किया। माहिर मिर्जापुरी ने ‘मुल्क दी मैनू की मतलब’ कविता सुनाकर राजनीति पर कटाक्ष किया। बहर बनारसी ने ‘लड़कियाँ फेंक चुकीं शर्मो-हया का जेवर‘ गजल से सामाजिक उच्छृंखलता पर चोट की तो पवन उपाध्याय ने ‘क्यों बने हो तुम कातिल‘ गीत से देश में बढ़ रही हिंसा पर सवाल उठाये। पाणि पंकज पाण्डेय ने अपनी सुप्रसिद्ध प्रेम कविता ‘प्रेम करो तो ऐसे साथी, जैसे दीपक बाती’ से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया तो राजीव दुबे ने ‘माँ की दुआ भी थी, वो मुझे मिटा न सका’ गजल से जीवन में रिश्तों की महत्ता को रेखांकित किया। काव्य संध्या में श्रोताओं ने एक से बढ़कर एक कविताओं का रसास्वादन किया। उक्त अवसर पर विजय दुबे, एस एन तिवारी, श्रवण कुमार, डॉ अर्पणा त्रिपाठी, रवीन्द्र राम, रीता पाण्डेय, अम्बरीश, मुकेश, छोटू, उपेन्द्र आदि गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। नवीन चन्द्र श्रीवास्तव के आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
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