धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जन्म कुंडली के चतुर्थ (सुख) भाव मे गुरु का संभावित फल……..
(सुख भाव)- इस भाव के गुरु के अच्छे फल अधिक बताये गये हैं। माता का सुख, भूमि-भवन व वाहन, गृहस्थ सुख प्राप्त होते हैं। इस योग का जातक सभी प्रकार से सुखी होता है तथा राज्य कार्यों से लाभ प्राप्त करने के साथ पैतृक सम्पत्ति में भी वृद्धि करता है। उसकी रुचि अचल सम्पत्ति एकत्रित करने में अधिक होती है। ऐसा जातक मानसिक व शारीरिक दृष्टि से सुन्दर होता है। व्यवसाय अथवा ज्योतिष के क्षेत्र में सफल रहता है। मेरे अनुभव से व्यवसाय तो ठीक है तथा इसमें भी कर्मेश के बल की
अधिक आवश्यकता होती है परन्तु ज्योतिष में सफलता सन्दिग्ध रहती है। ज्योतिष में सफलता केवल गुरु के आधार पर ही नहीं मिलती है, उसके लिये बुध की भी आवश्यकता होती है। ज्योतिष में रूझान अवश्य होता है। इस गुरु के प्रभाव से संतान प्राप्ति में समय अधिक लगता है। ऐसा व्यक्ति अपने माता-पिता का सम्मान बहुत करता है व व्यावहारिक होता है। इस गुरु के प्रभाव से जातक के शत्रु भी उसका सम्मान करते हैं। जातक बहुत ही ज्ञानी, उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साथ वेदों का भी ज्ञाता होता है। यहां पर वायु तत्व (मिथुन, तुला व कुंभ) राशि में गुरु अधिक संतान देता है।
उपरोक्त बातें मैंने ज्योतिष ग्रन्थों के आधार पर लिखी हैं परन्तु मैंने स्वयं जो चतुर्थ भाव
के गुरु पर शोध किया है उसमें सारे फल एकदम विपरीत निकले हैं। केवल व्यवसाय
में व्यक्ति अवश्य सफल होता है। ऐसा जातक स्थिर सम्पति जोड़ने में रुचि रखता है, यह अवश्य सही है लेकिन गुरु के प्रभाव से वह इसमें भी सफल नहीं होता है। अपनी
आयु के मध्य के बाद ही वह अपने रहने लायक निवास बना पाता है। बाकी सारी बातें तभी सत्य होती है जब सम्बन्धित भाव का स्वामी अर्थात् चतुर्थ भाव तथा उसका स्वामी शुभ स्थिति में हो। यहां पर दो बातें उपरोक्त फलों को गलत सिद्ध करने में सामने आ रही है। प्रथम तो गुरु चतुर्थ भाव में नैसर्गिक रूप से केन्द्राधिपति दोष से दूषित होता तो वह शुभ फल बिना किसी उपाय के कैसे देंगे? द्वितीय, जैसा ज्योतिष ग्रन्थों में लिखा है कि “स्थान हानि करो जीवः” अर्थात् गुरु जिस किसी भी स्थान पर बैठते हैं उस भाव की हानि करते हैं, वह चतुर्थ भाव में बैठे हैं तो सुख की ही हानि करेंगे। इसके साथ ही उपरोक्त फल प्राप्ति के लिये धन की मुख्य आवश्यकता होती है अर्थात् द्वितीय व एकादश भाव जिन्हें हम धन व आय भाव कहते हैं, गुरु ही इन दोनों भाव का मुख्य कारक है। चतुर्थ भाव में होने से एकादश भाव से तो षडाष्टक योग तथा द्वितीय भाव से त्रिएकादश योग निर्मित होगा जो कि एक अशुभ योग होता है, तो फिर इन सब बातों से उपरोक्त फल कैसे प्राप्त होंगे? यह हो सकता है कि गुरु यदि नीच का हो अर्थात् मकर राशि में हो तो अवश्य अच्छे फल प्राप्त हो सकते हैं। यहां ऊपर लेख में लिखा है कि माता-पिता का सम्मान करता है तो पिता को तो जातक अवश्य सम्मान करता है परन्तु माता से उसका बैर होता है।
क्रमशः….
अगले लेख में हम गुरु के पंचम भाव मे होने पर मिलने वाले प्रभावों के विषय मे चर्चा करेंगे।