जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से  जन्म कुंडली आखिर होती क्या है ….

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जन्म कुंडली आखिर होती क्या है ….

जिस तरह हमारी पृथ्वी गोल है इसी तरह पूरा ब्रह्माण्ड गोल है ! और आप सभी जानते है कि प्रत्येक गोल वास्तु 360 डिग्री या अंश की होती है ! ज्योतिष में ब्रह्माण्ड को 360 डिग्री या अंश का मानते हुए 12 भागों में बांटा गया है ! प्रत्येक भाग 30 अंश का हुआ ! और इसी 30 अंश के एक भाग को हम राशि कहते हैं ! इन 1 2 राशियों अथवा भागों को अलग अलग नामों से जाना जाता है ! जैसे मेष ,बृष ,मिथुन ,कर्क ,इत्यादि ! सूर्य स्थिर है ! वह नहीं घूमता ! सारा ब्रह्माण्ड ,और ग्रह उस के इर्द गिर्द घूमते हैं ! यह 12 रशिया या ब्रह्माण्ड के भाग सूर्य के सामने से बारी बारी घूम जाते हैं ! सभी राशियों को सूर्य के सामने से हो कर गुजरने में 24 घंटे लग जाते हैं ! यानि औसत एक राशि सूर्य के सामने से गुजरने में 2 घंटे लेगी ! इन्हीं 2 घंटे का नाम है लग्न !जब कोई बच्चा पैदा होता है तो सब से पहले हम लोग यह देखते हैं कि बचे के जन्म कौन सी लग्न में हुआ है अथवा यूँ कह लेते हैं कि बच्चे के जन्म के वक़्त सूर्य के सामने से कौन सी राशि या ब्रह्माण्ड का कौन सा भाग गुजर रहा था ! ज्योतिष में सब से महत्व पुराण कार्य है ज्योतिषी के लिए लग्न का सही निर्णय लेना ! यहाँ गलती हुई तो जन्म कुंडली ही गलत हो जाएगी ! अब आप जान गए होंगे कि ज्योतिषी लोग बच्चे के जन्म का सही वक़्त क्यों पूछते हैं ! जन्म कुंडली के 12 भाग होते हैं जो कि ब्रह्माण्ड के 12 भागों को ही दर्शाते हैं ! सब से ऊपर वाले खाने में बच्चे के जन्म वक़्त की लग्न का नाम यानि अंक लिख दिया जाता है ! फिर सभी भागों में ग्रह लिख दिए जाते हैं ! यह देख कर कि बच्चे के जन्म के वक़्त कौन सा ग्रह कौन से भाग में चलता हुआ अपना सफर कर रहा था ! बस दोस्तों इस प्रकार से जो नक्शा तैयार होता है उसी का नाम ही जन्म कुंडली है ! आगे ज्योतिष का दूसरा चरण शुरू होता है जिस का नाम है फलित ! फलित यानि भविष्य को बतलाना ! अब कौन सा ग्रह कौन से भाग से गुजरता हुआ उस बच्चे को क्या फल देगा इसी का नाम ज्योतिष है ! आगे कि चर्चा अगले लेख में करूँगा !अब आप कम से कम इतना तो जान ही गए हैं कि जन्म कुंडली आखिर बला क्या है !

राशि क्या है….

इस आकाश में अनगिनत तारे हैं ! कुछ अचल तथा कुछ चलायमान हैं ! जो चलायमान हैं उन को हम ग्रह कहते हैं ! जो अचल हैं उन्हें हम सितारे कहते हैं ! इन में से कुछ तारे ऐसे हैं जो बहुत चमकदार हैं !कुछ फीके हैं ! जो प्रकाशमान यानि चमकदार हैं ,उन को यदि हम कल्पना से एक रेखा खींच कर आपस में मिला दें तो एक विशेष आकृति बनती है ! ऐसी कुल मिला कर 12 आकृतियां बनती हैं ! इन आकृतियों को हम राशि कहते हैं ! कुल 360 अंश (degrees ) को हम 30 अंश के हिसाब से 12 भागों में बाँट देते हैं१ यही 12 राशियां हैं ! पहली आकृति मेष जैसी यानि मेंढा जैसी है ! इस लिए पहली राशि का नाम मेष हुआ !दूसरी राशि की आकृति बृषभ यानि बैल जैसी होने से हम ने उस का नाम बृषभ रख दिया ! इसी प्रकार पांचवीं शेर यानि सिंह जैसी है ! सातवीं तुला यानि तराज़ू जैसी है ! बाहरवीं की शकल मीन यानि मछली जैसी है ! तारों के यह 12 समूह यानि राशियां सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक बारी बारी से सूर्य के पास से हो कर गुजर जाती हैं ! यानि 24 घंटों में यह सभी समूह सूर्य का चक्कर पूरा कर लेते हैं ! इन्हें लग्न भी कहते हैं! जब कोई बच्चा पैदा होता है तो ज्योतिषी यही देखते हैं कि बच्चे के जन्म के वक़्त कौन सी राशि अथवा लग्न में कौन सा ग्रह चल रहा था! इसी नक़्शे का नाम जन्म कुंडली है ! इसी के आधार पर हम लोग फालदेश करते हैं !

काल सर्प दोष क्या होता है……

जन्म कुंडली में 12 खाने होते हैं I यदि इन 12 खानो में से 5 खाने कुंडली में कहीं पर भी लगातार खाली हों तो कल सर्प दोष माना जाता है I या फिर यूँ भी कह सकते हैं क़ि जहाँ कुंडली में राहु होता है उस के बिल कुल सामने केतु होता ही है I यदि राहु और केतु के एक तरफ सभी ग्रह हों और एक तरफ कोई भी ग्रह न हो तो काल सर्प योग बन जाता है ! और फिर यह क़ि काल सर्प योग वालों के जीवन का एक हिस्सा बहुत मुश्किलों भरा होता है और एक हिस्सा बहुत ही समृद्ध होता है I ऐसे लोग असाधारण लोग होते हैं I जीवन में कुछ ऐसा कर जाते हैं क़ि समाज में इनकी यादें बन कर रह जाती हैं I किसी की अच्छी किसी की बुरी यादें I कुछ ज्योतिषी इस योग का उपचार भी सुझाते हैं जैसे महामृत्युंजय का पाठ या जाप इत्यादि I इस से बुरे प्रभाव को नष्ट किया जा सक्ता है !

मंगलीक दोष क्या होता है ….

जन्म कुंडली में १२ खाने होते हैं I यदि इन १२ खानो में से ५ खानो में मंगल बैठ जाए तो मंगलीक दोष बन जाता है I यह ५ खाने निम्नलिखित हैं :-१ पहला २ चौथा ३ सातवां ४ आठवां ५ बाहरवां कुंडली के ऊपर वाला खाना हमेशा पहला होता है I वहाँ से बाएं तरफ को गिनते जाएं तो दूसरा , तीसरा इत्यादि :- अब पहले चौथे सातवें आठवें या फिर बाहरवें खाने में मंगल पड़ा है तो ज्योतिषी कहेंगे कि जातक पर मंगल दोष है I कहते हैं कि मंगलीक की शादी मंगलीक से करना ही बेहतर होता है अन्यथा आपस में बनती नहीं या वियोग का भय रहता है I इस लिए कुंडलियां मिला कर ही शादी करने का विधान सुझाया गया है I

सूर्य….

सूर्य का प्रभाव आत्मा पर माना गया है ! यह यशमान और कीर्ती देने वाला ग्रह है ! शरीर की हड्डिओं पर यह अपना पूर्ण प्रभाव रखता है ! इस के कमजोर होने पर आप को कभी यश नहीं मिल पाता चाहे आप दूसरों के लिए कितना भी अच्छा क्यों न कर लें ! बदले में बदनामी ही हाथ आती है ! जब सूर्य ठीक होता है तो राजदरबार से लाभ होता है ! सरकारी नोकरी मिलने में आसानी होती है ! राजनीती में अच्छा प्रभाव बनता है ! सरकारी धन उपयोग करने के साधन उपलब्ध होते हैं ! सरकारी आवास में रहने का मोका मिलता है ! बहुत प्रभावशाली लोगों के साथ सम्बन्ध बनते हैं ! परन्तु यही सूर्य खराब चलता है तो कोर्ट – कचेहरी के चकर भी खाने पड़ सकते हैं ! उच्च का सूर्य तो राजयोग बनाता है ! जब किसी के ऊपर सूर्य की मेहरबानी हो जाती है तो उस का नाम दुनियां लेती है और संसार में उस का नाम होता है !

जानें प्रेम विवाह कैसे और किस का होता है….

दुनियां में विवाह तो सभी करते हैं:-

लेकिन यह कोई नहीं जनता की उस का प्रेम विवाह (लव मैरिज ) होगी या फिर नियोजित विवाह यानि ( अरेंज मैरिज) होगी ! ज्योतिष में इस का जवाब उपलब्ध है ! जिस की जन्म कुंडली में पहले घर का स्वामी सातवें घर में हो या फिर सातवें घर का स्वामी पहले घर में हो तो इस योग से यह तो पता चल ही जाता है कि ऐसे जातक का जीवन में प्रेम सम्बन्ध तो होता ही है ! अब वो सम्बन्ध शादी में परिवर्तित होगा या उस से पहले ही टूट जाएगा , या फिर दोनों में से एक धोखा तो नहीं कर जाएगा ,यह बात भी देखनी जरूरी हो ही जाती है ! सातवें घर में अशुभ गृह की उपस्थिति यह बताने में सक्षम है कि विवाह के पहले ही दोनों में से एक धोखा कर दे अथवा शादी से इंकार कर दे ! पहले घर में बैठा अशुभ ग्रह यह तो बता ही देता है कि धोखा सव्यम् खुद आप ही ऐसा जातक अपने प्रेमी या प्रेमिका को दे देता है ! अगर इन्हीं स्थानो पर शुभ ग्रह हों तो शादी अवश्य होती है और सफल भी होती है ! उसी वक़्त यदि चौथे ,दसवें का स्वामी भी इन में से किसी एक घर में बैठ जाए तो जातक अपने जीवन साथी का चुनाव तो खुद करता है और इसी चुनाव को माता पिता पसंद कर लेते हैं और प्रेम-विवाह ,नियोजित विवाह में बदल जाता है ! परन्तु यही ग्रह गलत स्थिति में हों तो माता पिता कि स्वीकृति नहीं मिलती और फिर मज़बूरन उन की मर्जी के बिना ही शादी होते देखी गई है !मित्रो बाकी जानकारियां भी हम आप के ज्ञान मैं धीरे धीरे ल!ता रहेंगे !

जानें “जनम कुंडली का आठवां घर ….

आज मैं जन्म कुंडली के आठवें घर की बात कर रहा हूँ ! यह वह घर है जिस से बहुत अधिक डर फैलाया गया है ! इस घर को मृत्यु का घर कहा गया है ! ऑपरेशन , चोट , एक्सीडेंट ,हॉस्पिटल ,हिरासत , कर्ज , मुकदमा इत्यादि सभी इसी घर की देन हैं ! इस घर की दशा चलते ही ज्योतिषी लोग आप को डरा देंगे ! लेकिन इस घर के बहुत से अच्छे पहलु भी हैं जो कि हैरान करने वाले हैं और आधे ज्योतिषी उन से अनजान हैं ! यह घर तेजी का घर है ! यदि इनकम वाले घर का स्वामी इस घर मैं बैठ जाए तो इंसान इतनी तेजी से धन कमाता है की दिनों दिनों मैं ही धन कुबेर बन जाए ! मेरा एक मित्र इस दशा कि चलते ही करोड़ पति बन गया ! अकस्मात धन ,गड़ा धन , और रहस्यवाद का घर भी यही है ! किसी की कुंडली मैं दूसरे घर का स्वामी इस घर में बैठ जाए तो उसको गड़ा धन मिलता ही है ! गड़े धन से मेरा मतलब दबे धन से ही केवल मात्र नहीं है ! गड़े धन की परिभाषा मैं वह धन भी अत है जो आप की अपनी मेहनत कि बिना मिल जाए ! जैसे अचानक कोई जमीन जयदाद आप क़े नाम कर दी जाए ! या फिर अचानक लाटरी से धन मिल जाए ! या फिर कहीं पड़ा धन आप को मिल जाए ! या फिर आप की सेवा वफादारी को देखते बे औलाद मालिक सब कुछ आप क़े नाम कर जाए ! या फिर जीवन साथी ऐसा मिल जाए जो अपनी पैतृक सम्पति का इकलौता ही वारिस हो ! ऐसे कितने ही उदाहरण दिए जा सकते हैं !इस लिए किस्मत वालों पर इस घर की दशा आती है ! जरूरत है तो इस घर क़े स्वामी क़े अनुसार चलने की ! वैसे तीन या चार बार 60 साल की आयु से पहले पहले इस घर की अन्तर्दशा तो सभी पर आती ही है ! फिर डरना कैसा ? केवल इस घर क़े स्वामी क़े अनुसार चलिए ! यही घर अचानक मिनिस्टर , प्राइममिनिस्टर तक बनवाते देखा गया है !मैं अपनी हर पोस्ट मैं आप क़े मन की भ्रान्तिओं और डर को दूर करता रहूँ गा !किसी भी ज्योतिषी की भविष्यवाणी से न डरें ! प्रत्येक ग्रह न तो पूरी तरह शुभ है और न ही अशुभ है ! अपने स्थान क़े अनुसार ही वह कुंडली मैं अपनी ड्यूटी को निभाता है ! अपनी , कुंडली मैं पोजीशन क़े अनुसार ही अच्छा या बुरा होता रहता है !आप भी यदि ऐसी जानकारियां मुफ्त मैं लगातार फेसबुक पर प्राप्त करते रहना चाहते हैं तो आज ही हमारे इस पेज को लाइक कर क़े जुड़ जाएं या फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर जुड़ जाएं !

” बृहस्पती….

ज्योतिष की कुछ बातें ऐसी भी हैं जिन्हें अभी तक कई ज्योतिषी भी नहीं जानते !

आज मैं ज्योतिष के क्षेत्र में एक ऐसे ग्रह की बात कर रहा हूँ जिस का नाम है ” गुरु ” !

इस के कई नाम हैं ! जैसे ” जीव ” , ” बृहस्पती ” आदि आदि ”

ज्योतिष में इसे पुरुष ग्रह माना गया है ! हम ज्योतिषी लोग इस ग्रह से क्या क्या बातें देखते हैं वह सभी तो यहाँ नहीं बताई जा सकती क्यों के आर्टिकल लम्बा हो जाएगा ! हाँ तीन प्रमुख बातें बता रहा हूँ ! बचे के पैदा होते ही इस ग्रह के आधार पर उस के पिता और दादा की पोजीशन का पता चलता है !

जब बचा बड़ा होता है तो उस की विध्या इसी ग्रह पर निर्भर करती है. विध्या के उपरांत शादी के बारे में इसी से पता चलता है ! शादी के बाद यही ग्रह संतान का कार्य अपने हाथ में ले लेता है ! जिन की कुंडली में इस ग्रह की पोजीशन अच्छी होती है उस को इन बातों का तो लाभ होता ही है फिर यह भाग्य स्थान का कारक ग्रह होने से भाग्य का मार्ग खोल देता है .व्यापर चलने लगते हैं ! घर में सभी मंगलीक कार्य होने लगते हैं ! घर का वातावरण स्वर्ग बन जाता है !

फिर यही ग्रह कुंडली में यदि खराब हो तो उपरोक्त सभी बातों की कमी होने से घर में हालत परेशानी वाले बना देता है ! संतान होने में रूकावट विध्या में परेशानी तथा संतान का विरोध घर के हालात असहनीय बना देता है !

गुरु के इस दंश से बचना बहुत आसान है ! यह सभी ग्रहों से शुभ ग्रह है ! सात्विक है ! दयालु भी है ! शीघ्र प्रसन होने वाला है ! उपायों पर खर्च नहीं होता !

कई ज्योतिषी आप को पुखराज डालने को कह देते हैं ! हजारों रुपए का खर्च कर के भी शांति नहीं मिलती ! मेरे ख्याल से बिना किसी प्रकार का खर्च किए केवल इसी ग्रह के अनुसार चलने मात्र से ही यह वफ़ा करने लगता है !

जहाँ विज्ञानं का क्षेत्र समापत होता है वहां से ज्योतिष की शुरुआत होती है !

हम रोज अख़बारों में पढ़ते है की आज किसी बेटे ने पिता को मार डाला अथवा माता को मार डाला ! और कभी यह भी की पिता ने बेटे को मार डाला ! कितना भयानक होता होगा यह मंज़र ! उफ़ ! वो पिता जो कभी बेटे की एक किलकारी सुनते ही ख़ुशी से मदहोश हो जाता हो …और वह बेटा जो पिता के आने की एक आहट से ही झूम उठता हो फिर क्यों हो जाते हैं मजबूर इस भयानक मंज़र को अंजाम देने के लिए !जिस माँ की छवि जीवन भर जिस बेटे ने मन में बसा रखी हो वह फिर ऐसा कर दे कितना भयानक सा लगता है ! कुछ लोग कहते हैं खून तो पानी होता जा रहा है आज ! और कुछ कहते हैं की खून तो आज सफ़ेद होता जा रहा है ! इस भयानक अंजाम के तात्कालिक कारण कुछ भी हों पर कहीं न कहीं इस सब की जिम्मेवार तो है मनो दशा ! जब मानव के जीवन में राहु जैसे ग्रहों का भूचाल आता है तो मनो दशा तो बिगड़ ही जाती है मानव की ! फिर वह चाहे रावण जैसा ज्ञानी ही क्यों न हो ! ग्रहों के इस असर पर ओशो ने तो यह कहा है की मानव का जब जनम होता है तो ग्रहों की जिस धुन को वह जनम लेते ही सुनता है वही धुन जीवन भर उस पर अपना प्रभाव रखती है ! ज्यों ही इस में विपरीत धुन शामिल होती है तो शुरू होता है जीवन में भयानक बदलाव ! और ज्यों ही पक्ष में यह धुन पैदा होती है तो मूर्खों को भी ज्ञानी होते देखा गयाहो है! ओशो के मुताबिक जब इस संगीत में बदलाव आता है तो इस का सब से अधिक असर इंसान के दिमाग पर होता है ! आगे वह उदाहरण देते हैं पागलख़ानो की ! वहां सबसे ज्यादा उत्पात पागल तब मचाते हैं जब आकाश में पूर्ण चाँद होता है ! फिर यदि चाँद से मानव दिमाग पर इतना प्रभाव हो सकता है तो बाकी ग्रहों का तो कहना ही क्या ! वह तो चाँद से हज़ारों गुना बड़े हैं !तो इस का कोई हल है भी या नहीं ? मेरे ख्याल से इस का जवाब ज्योतिष में है ! एक बचे को सभी डाक्टरों ने जवाब दे दिया की इस का बचना मुश्किल है ! पर वह बचा बच गया ! आज भी वह तंदरुस्त है.! आप यकीन माने या न माने पर यह सत्य है ! जहाँ विज्ञानं का क्षेत्र समापत होता है वहां से ज्योतिष की शुरुआत होती है ! उस बचे को एक ज्योतिषी ने एक छोटे से उपाए से बचा लिआ ! पर हाँ न तो हर बार डाक्टर ही सफल होने की गरंटी दे सकता है और न ही कोई ज्योतिषीयह तो बस प्रभु का रचा हुआ खेल है

ज्योतिष के अनुसार आप के जीवन को हिला देने वाला सत्य ..

कुछ चीजें दान करने से आप कंगाल हो सकते हैं ..!
लाल किताब कहती है कि चन्द्र यदि आप कि कुंडली में छटे घर में है और आप पानी या दूध का दान करते रहते हैं तो आप कि माता को भारी कष्ट का सामना करना पड सकता है और आप के खुद के जीवन में कष्ट आने शुरू हो जाएंगे ! और यही चन्द्र यदि बाहरवें घर में हो तो साधु को नित्य रोटी खिलाने,बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने अथवा पाठशाला खुलवा दे तो उसको अंतिम समय में पानी भी नसीब नहीं होता ! शनि आठवें हो तो नया मकान शुरू करते ही मौत सर पर मंडराने लगती है ! ऐसे लोगों को बना बनाया मकान लेना ही ठीक रहेगा ! अगर बनाना चाहते ही हैं तो पुराने मकान का थोड़ा सरिया रोड़ी अथवा काठ नए मकान में जरूर इस्तेमाल करें !
देखा ,अब लोग कहते हैं कि हम ने तो जीवन में साधुओं को भिखारिओ को बहुत रोटी खिलाई , गरीब बच्चों कि फीस भरी , पानी कि छबीलें लगवाईं, फिर भी हम दुखी और कष्ट में हैं और जिन्हों ने कभी ऐसा कुछ किया ही नहीं ,वह लोग हम से आगे हैं !

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