जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जन्म कुंडली के प्रथम भाव मे गुरु का संभावित फल…….

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जन्म कुंडली के प्रथम भाव मे गुरु का संभावित फल…….

गुरु एक नैसर्गिक शुभ ग्रह है। पत्रिका में केवल इनकी शुभ स्थिति ही जातक के जीवन को संवार देती है। यदि किसी की पत्रिका में गुरु की स्थिति शुभ न हो और अन्य शुभ योग निर्मित हो रहे हों, तब भी अधिक शुभ फल प्राप्त नही होता है। गुरु पत्रिका में लग्नस्थ है तो इस गुरु के प्रभाव से पत्रिका के लाख दोष स्वतः ही दूर होते हैं, लग्नस्थ गुरु के प्रभाव से जातक तेजस्वी, दीर्घायु, कर्तव्यपरायण, ज्योतिष में विश्वास करने वाला, विद्वान, स्पष्ट बोलने वाला अर्थात् वह सही बात बोलने में हिचकता नहीं है। इसके साथ जातक के कम आयु में ही बाल सफेद अथवा झड़ने लगते हैं व दांत गिरने लगते हैं। ऐसा जातक किसी भी बात को बिना तर्क के स्वीकार नहीं करता है। ऐसे जातक की पहली संतान पुत्र होती है। स्वयं वह धर्मात्मा होता है।
यहां के गुरु पर मैंने शोध किया है कि इस योग में जातक शारीरिक रूप से तो स्वस्थ
व सुन्दर होता है, उसका रंग भी गोरा होता है तथा विद्या व संतान की और निश्चित होता है, परन्तु गुरु के शुभ फल अधिकतर केवल धनु व मीन लग्न में अधिक मिलते हैं। इस योग में व्यक्ति अपने ऊपर आने वाले संकट से निश्चित रहता है।

यहां पर उच्च का गुरु अर्थात् कर्क लग्नस्थ गुरु के साथ यदि मंगल व शुक्र से युत हो तो जातक अय्याश, चरित्रहीन, नीच स्तर के कार्यों में मग्न रहने वाला तथा किसी न किसी व्यसन से अवश्य युक्त होता है। जातक अपने इन्हीं कर्मों से सदैव किसी
न किसी संकट में रहता है। लग्न में गुरु यदि अग्नि तत्व (मेष, सिंह व धनु) राशि में
हो तो व्यक्ति अधिकतर शुभ फल की प्राप्ति करता है। इसमें भी जैसे लिखा है कि धनु
में पुत्र सन्तति का अभाव रहता है परन्तु मेरे अनुभव में यह गलत है। मैंने धनु लग्नस्थ
ऐसी अनेक पत्रिकायें देखी हैं कि जिनके केवल पुत्र ही थे, कन्या सन्तति की उनको
बहुत इच्छा थी परन्तु कन्या नहीं हुई। गुरु इस भाव में यदि शनि की किसी भी राशि
(कुंभ अथवा मकर) में हो तो व्यक्ति को आर्थिक व संतान सुख में से किसी एक का
ही सुख प्राप्त होता है अर्थात् संतान योग्य होती है तो धन नहीं होता और यदि धन
होता है तो संतान अयोग्य होती है अथवा होती ही नहीं है। गुरु यदि तुला अथवा मिथुन राशि में हो तो जातक गोरे रंग का होता है। यदि गुरु वृषभ राशि में हो तो जातक अत्यधिक काम-वासना से पीड़ित होता है। वह घर में सुखी नहीं रहता। चरित्रहीन होता है। गुरु पर किसी अन्य शुभ ग्रह का प्रभाव हो तो जातक चरित्रहीन तो होता है परन्तु कम होता है। इस योग का प्रभाव स्त्री व पुरुष दोनों के लिये समान होता है।

क्रमशः….
अगले लेख में हम गुरु के दूसरे भाव मे होने पर मिलने वाले प्रभावों के विषय मे चर्चा करेंगे।

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