गाजीपुर। डेढ़ दशक से अधिक पुराने बहुचर्चित रामइच्छा सिंह और उनके पुत्र की हत्या के मामले में बुधवार को फैसला आ ही गया। खास यह कि रामइच्छा सिंह हत्याकांड 10 दिसंबर 2002 को हुई थी और बरसी के एक दिन बाद डेढ़ दर्जन से अधिक संगीन मामलों के आरोपित कुख्यात अजय मरदह को उम्रकैद की सजा सुनायी गयी है। एक दिन पहले ही हाइकोर्ट ने अजय मरदह को गिरफ्तार कर जेल भेजने का आदेश दिया था और इसके अमल में आने से पहले वह 17 साल पुराने मामले में जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया गया। स्पेशल जज (ईसी एक्ट) विष्णुचंद वैश की कोर्ट का फैसला आने के बाद पूर्वांचल के जरायम जगत में खलबली मच गयी है।
*वर्चस्व की लड़ाई में मारे गये थे पिता-पुत्र
अभियोजन के मुताबिक रामइच्छा सिंह के साथ उनके बेटे सुधीर सिंह की मरदह थाना क्षेत्र में सरेआम गोलियों से छलनी कर हत्या हुई थी। आरोपित से ठेकेदारी का विवाद था। इसके अलावा इलाकाई राजनीति में भाई को स्थापित करने के लिए अजय मरदह ने दोनों की हत्या की थी। मृतक इलाके में खासे प्रभावशाली थे और बिरादरी में उनके आगे दाल नहीं गल पा रही थी जिसके चलते पिता-पुत्र को मौत के गाट उतार कर दूसरों को संदेश देने की कोशिश की गयी थी। इस मामले के आरोपित रहे छेदी चौबे और राजा चौहान का कई साल पहले ही इनकाउंटर हो चुका है। मुख्य आरोपित दर्शाये गये अजय मरदह के किलाफ लंबे समय से मामला लंबित था लेकिन न्यायाधीश ने दोनों पक्षों को सुनने और साक्ष्य के अवलोकन के बाद अपना फैसला सुनाया।
*नाबालिक बेटे ने लड़ी लंबी लड़ाई*
गौरतलब है कि कि पिता-पुत्र के मारे जाने के समय रामइच्छा सिंह का छोटा बेटा प्रवीण 12 साल का था। तमाम दवाब और प्रलोभन को दरकिनार कर उसने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। कानूनी दांव-पेंच के बीच उसे ‘प्रभावित’ करने के हर संभव प्रयास किये गये लेकिन प्रवीण नहीं डिगा। दो दिन में आये फैसलों से साफ हो गया है कि अजय मरदह को अब जेल की सलाखों के पीछे लंबा समय बिताना पड़ सकता है।