सोनभद्र की बने सांस्कृतिक पहचान : चतुर्वेदी

बौद्धिक वर्ग निभाये महत्वपूर्ण भूमिका

नई दिल्ली।विन्ध्य संस्कृति शोध समिति की बीसवीं वर्षगांठ पर मुख्य वक्ता के रूप में अपने उदबोधन में वरिष्ठ पत्रकार विजय शंकर चतुर्वेदी ने जिले की सांस्कृतिक पहचान बनाने की वकालत की, उन्होंने कहा कि बौद्धिक वर्ग को इसके लिए आगे आकर एक दिशा तय करनी होगी ।
बलदेवदास बिड़ला इंटर कॉलेज में 5 दिसंबर को आयोजित समारोह में अपनी बात रखते हुए श्री चतुर्वेदी ने कहा कि उन्होंने एक दर्ज़न से ज्यादा देशों की यात्रा की लेकिन सोनभद्र से सुंदर कम ही स्थान मिले, उन्होंने कहा कि जब बाहर से हम जनपद को देखते हैं तो नक्सल, प्रदूषण, फ्लोरोसिस की विकलांगता, अवैध खनन, देश के 150 पिछड़े जिलों में एक, विस्थापन, बेरोजगारी, भूमि विवाद की तस्वीरें दिखाई देती हैं, कभी भी इसकी सांस्कृतिक समृद्धता का उल्लेख नहीं किया जाता,
उन्होंने एक सवाल खड़ा किया कि आखिर जनपद की पहचान कौन बदलेगा,क्या अधिकारी, नेता,ठेकेदार, समाजसेवी, अधिवक्ता, छात्र , व्यापारी या अन्य वर्गों के लोगों पर इसकी जिम्मेदारी है , सभी मिलकर इसकी पहचान बदल सकते हैं लेकिन उन्हें एक दिशा देनी होगी और सांस्कृतिक विरासत से अवगत कराना होगा । इस कार्य को जनपद के लेखकों और साहित्यकारों को करना होगा ।इन्हें अग्रणी भूमिका में आना होगा, सांस्कृतिक पहचान को बनाने में मीडिया और सोशल मीडिया भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
30 वर्ष का जनपद हो गया है लेकिन इसकी सांस्कृतिक पहचान अभी नहीं बन पाई है। जिले में साहित्य लेखन तो बहुत हुआ लेकिन इसकी सांस्कृतिक विरासत पर कलमें कम चलीं , ऐसी स्थिति में लोगों को उचित दिशा नहीं मिल पाई, इसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर लेखन कर हम मिट्टी का कर्ज़ भी अदा कर सकते हैं।
इस अवसर पर अजय शेखर, डॉ अर्जुनदास केसरी, रामनाथ शिवेन्द्र, ओम प्रकाश त्रिपाठी, डॉ रचना तिवारी, मिथिलेश द्विवेदी, डॉ गोपाल सिंह, विजय विनीत, दीपक कुमार केसरवानी,सुधाकर मिश्रा, नरेंद्र नीरव, भोलानाथ मिश्र, आत्मानंद मिश्रा , हरिशंकर शुक्ला सहित कई महत्वपर्ण व्यक्ति उपस्थित थे ।

Translate »