ज्योतिष ज्ञान
धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भाव विचार प्रकरण…..

आज तीसरे पराक्रम एवं भाई-बहन सुख भाव से संबंधित योगों की व्याख्या
१ भाई-बहन एवं पराक्रम के कारक तीसरे भाव को प्रथम मानकर वहां से जो त्रिकोण या केंद्र बने उसमे शुभ ग्रहों के होने पर उनकी दशा अंतर्दशा में भ्रात सुख एवं पराक्रम में वृद्धि होती है।
२ तृतीयेश और मंगल यदि स्त्री ग्रह की राशि मे हो तो जातक की बहन अधिक होती है एवं पराक्रम में कुछ त्रुटि बनती है।
३ तृतीय भाव मे चंद्र अथवा शुक्र होतो जातक को बहन से लाभ होता है।
४ लग्न से दूसरे और तीसरे भाव मे कुल जितने ग्रह होते है जातक के उतने ही भाई बहन होते है।
५ तृतीय भाव मे निस्तेज मंगल के होने पर जातक का कोई एक भाई दीर्घायु को प्राप्त होता है।
६ यदि लग्न के स्वामी और तृतीय भाव के स्वामी किसी भी भाव मे युति करके बैठे हों तो भाइयो में परस्पर प्रेम तथा इसके विपरीत लग्नेश लग्न में तृतीयेश तीसरे भाव मे हों तो भाइयो में कलह होती है।
७ तृतीय स्थान में यदि शुक्र बैठा हों एवं गुरु उसे पूर्ण दृष्टि (५-७-९) से देखता हो तो जातक अपने भाई-बहनों का पोषण करने वाला होता है।
८ तृतीय भाव के स्वामी कारक, तृतीय भाव पर पूर्ण दृष्टि रखने वाले, तृतीय भाव मे उपस्थित ग्रहो की संख्या को जोड़ने पर जितना नवमांश हो जातक के उतने ही भाई होते है।
९ तृतीय भाव मे उपस्थित बुध को यदि सूर्य पूर्ण दृष्टि से देखे तो ऐसे जातक के भाई शक्ति सम्पन्नता से हीन होते है।
१० तृतीयेश उच्च का होकर अष्टम भाव मे स्थित हो तथा पाप ग्रह के साथ युति हो तो जातक पराक्रम शील होता है।
इसके अतिरिक्त तीसरे भाव से जातक की मूल अभिरुचि, साहस, हाथ, कान, महत्त्वकांक्षा, नौकर सुख-दुख, हस्ताक्षर, मित्रता, रहन-सहन, वृति, धर्य, दत्तक, उद्योग, यश-अपयश, माता-पिता, मरण, खांसी, दमा, औषध ज्ञान आदि का भी विचार किया जाता है।
इस भाव का कारक ग्रह मंगल होता है एवं पाप ग्रह यहां बलवान होकर अधिक शक्तिशाली फल का दाता बनता है।
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