दीपदान किसी भी विपत्ति के निवारणार्थ श्रेष्ठ उपाय है

ओबरा( सोनभद्र)।दीपदान करने वाला व्यक्ति सौभाग्य युक्त होकर स्वर्ग लोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है। यह सरलता से किया जाने वाला एक ऐसा वैदिक विधान है जो किसी यज्ञ से कम फल देने वाला नहीं है।यह शनिशिंगणापुर महाराष्ट्र से पधारे शनि पीठाधीश्वर बालयोगेश्वर शनि देव महाराज ने सेक्टर आठ स्थित शनि मंदिर में दीपदान कार्यक्रम में कही।

महाराज ने कहा कि दीपक ज्ञान, प्रकाश, भयनाशक, विपत्तियों व अंधकार के विनाश का प्रतीक है। तन्त्र, मन्त्र व अध्यात्म में इसका विशिष्ट स्थान होता है। सात्विक साधना में घी का व तान्त्रिक कार्यो में तेल का दीपक जलाना चाहिए। दीपक की बत्ती भी पृथक्-पृथक् कार्यो हेतु पृथक्-पृथक् प्रयुक्त होती है। दीपक पात्र भी अपनी विशेष पहचान रखता है। मिट्टी का दीपक सात्विक कार्यो में प्रयोग किया जाता है और धातु या अन्य किसी चीज का दीपक तान्त्रिक कार्यो में प्रयोग किया जाता है। दीपदान किसी भी विपत्ति के निवारणार्थ श्रेष्ठ उपाय है।
दीपदान व्रत की भारतीय संस्कृति में विशेष महिमा है। यह व्रत कभी भी किसी भी दिन से आरंभ किया जा सकता है। मान्यता है कि अग्निदेव ने एक बार दीपदान के संबंध में महर्षि वशिष्ठ जी से कहा था कि दीपदान व्रत योग और मोक्ष प्रदान करने वाला है। जो मनुष्य देवमंदिर में दीपदान करता है, वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है। चातुर्मास्य में दीपदान करने वाला श्रीविष्णु भगवान के धाम, कार्तिक मास में दीपदान करने वाला स्वर्गलोक तथा श्रावण मास में दीपदान करने वाला भगवान शिव के लोक को प्राप्त कर लेता है। चैत्र मास में मां भगवती के मंदिर में दीप जलाने से व्यक्ति मां जगदम्बा के नित्य धाम को प्राप्त करता है। दीपदान से दीर्घ आयु और नेत्र ज्योति की प्राप्ति होती है। दीपदान से धन और पुत्र आदि की भी प्राप्ति होती है। दीपदान करने वाला व्यक्ति सौभाग्य युक्त होकर स्वर्ग लोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है।

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