धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से ग्रह व उनसे संबंधित बिमारी व उपाय……
1 – सूर्य – पित प्रकृति
स्वास्थ्य का कारक, हृदय, हड्डिया, दायी आंख ।
सिर में दर्द, गंजापन, हृदय रोग, हड्डियों के रोग, मिर्गी, नेत्र रोग, कुष्ट रोग, पेट की बिमारियां, बुखार, दर्द, जलना, रक्त संचार में गढ़बड़ी, शस्त्र व गिरने से चोट लगना ।
2- चंद्रमा – कफ व कुछ वात प्रकृति ।
शरीर से बाहर निकलने वाले तरल, मानसिक स्तर, बायीं आंख ।
मानसिक रोग, क्षय रोग, रक्त संबंधी रोग, कफ तथा खांसी से बुखार, फेफड़ों में पानी भरना, पानी से होने वाली बिमारियां, जल व जलीय वस्तुओं से भय आदि।
स्त्रियों की माहवारी में गड़बड़ी तथा स्त्रियों की प्रजनन प्रणाली के रोग चंद्रमा के कारण होते है । स्त्रियों के स्तन रोग तथा दूध के बहाव का पता भी चंद्रमा से लगाया जाता है।
“चंद्रमा-मंगल” – स्त्रियों में मासिक धर्म व उसको नियंत्रित करता है।
3- मंगल – पित्त प्रकृति
शरीर में पूर्ति का कारक, सिर, अस्थि, मज्जा, हीमोग्लोबिन, मांसपेशिया, अंर्त गभाँशय ।
दुर्घटना, चोट लगना, शल्य चिकित्सा, जल जाना, खून के रोग, उच्च रक्तचाप, पित्त की थैली में stone, तेज बुखार, चेचक , बवासीर, गभ्रपात, सिर में चोट, लड़ाई में चोट , शस्त्र से चोट व गर्दन से ऊपर के रोग भी मंगल इंगित करता हैं ।
4 – बुध – वात, पित्त और कफ, त्वचा, गला, नाक, फेफड़े, दिमाग का अगला हिस्सा।
त्वचा संबंधी रोग, मानसिक विचलन, धैर्यहीनता, अभद्र भाषा प्रयोग, बहरापन, कान का बहना, हकलाना, तुतलाना, गूंगापन, नाक-कान-गले के रोग, श्वेत कुष्ट, नापुसंकता, अचानक गिरना, दु:स्वपन आदि।
4- बृहस्पति – कफ व
रोग का निवारक करने वाला ग्रह, अमाशय, पित्त की थैली, तिल्ली, अग्नाश्य का कुछ भाग, कान का अंदरूनी भाग, शरीर में चर्बी व आलस्य का कारक। लंबी बीमारी, पित्त की थैली के रोग, मोटापा, शुगर, तिल्ली के रोग, कान के रोग, पीलिया आदि।
5- शुक्र – वात व कुछ कफ प्रकृति ।
चेहरा, आंखे, नेत्र ज्योति, यौन क्रियाएं, भोग विलास, वीर्य, मूत्र प्रणाली, किडनी, गुर्दे ।
यह एक जलीय ग्रह है और इसका संबंध शरीर के हार्मोन से है ।
शुक्र यौन विकार, जननांग के रोग तथा मूत्र प्रणाली, चेहरे के रोग, नेत्र रोग, श्वेत कुष्ट रोग, मोतियाबिंद, ऐड्स, नापुसकंता, थायरड, प्रमेह।
7- शनि – वात तथा कुछ कफ प्रकृति ।
यह बहुत धीरे चलने वाला ग्रह है और इस कारण इससे होने होने वाले रोग असाध्य या दीघृ कालिक होते है ।
शनि का अधिकार क्षेत्र टांगे, पैर, नाड़ी, बड़ी आंत का अंतिम भाग, लसिका वाहिनी तथा गुदा है, यह लंबे अवधि वाले रोग कैंसर, गठिया बाय, बवासीर, थकान, पैर के रोग व चोट, पत्थर से चोट लगना आदि
8- राहु – शनि जैसे रोग ( असाध्य रोग )
हिचकी, फोबिया, कुष्ट रोग, तव्चा रोग, छाले, उन्माद, सर्प भय, जख्म का ठीक ना होना etc.
* राहु-चंद्र – फोबिया, भय ।
9- केतु – इसकी दशा में बिमारी का पता लगाना मुश्किल है ।
डेंगू, मलेरिया, पेट में कीडे़, स्वाइन फ्लू, वायरल आदि।
केतु का द्वितीय भाव व बुध से संबंध हो तो जन्मजात रोग, तुतलाना, शल्य चिकित्सा ।
उपाय – 1. प्रतिदिन एक माला महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें ।
2. तांबे के पात्र में प्रतिदिन सूर्य को जल दे ।
3. आदित्यहृदय स्रौत का पाठ करें ।
4. बृहस्पति का बीज मंत्र – ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं सं गुरुवे नमः।। इस मंत्र का जाप करे तथा किसी भी रोग की बिमारी की दवाई को बृहस्पतिवार से लेना शुरू करें क्योंकि बृहस्पतिदेव रोग निवारक ग्रह है ।
5 – लग्न व लग्नेश को मजबूत करें व लग्नेश का रत्न धारण करें ।
( क्योंकि लग्न-लग्नेश हमारी शारीरिक क्षमता को दिखाता है )