जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से पूजा पाठ में दीपक जलाने का महत्त्व…….
शास्त्रों में लिखा गया है ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’, अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर चलने से ही जीवन में यथार्थ तत्वों की प्राप्ति सम्भव है। अंधकार को अज्ञानता, शत्रु भय, रोग और शोक का प्रतीक माना गया है। देवताओं को दीप समर्पित करते समय भी ‘त्रैलोक्य तिमिरापहम्’ कहा जाता है, अर्थात दीप के समर्पण का उद्देश्य तीनों लोकों में अंधेरे का नाश करना ही है।
पौराणिक मान्यता है कि अग्नि के सृष्टि में तीन रूप हैं- अंतरिक्ष में विद्युत, आकाश में सूर्य और पृथ्वी पर अग्नि। संस्कृत की एक पंक्ति ‘सूर्याशं सभवो दीप:’ अर्थात, दीपक की उत्पत्ति सूर्य के अंश से हुई है। दीपक के प्रकाश को इतना पवित्र माना गया है कि मांगलिक कार्यों से लेकर भगवान की आरती तक इसका प्रयोग अनिवार्य है।
हमारे शास्त्रों में यूं भी नौ प्रकार की पूजा-अर्चना का विधान है, जिसके तहत दीप पूजा व दीपदान को श्रेष्ठ माना गया है। प्राचीन काल से ही भारतीय परम्परानुसार किसी भी शुभ कार्य के आरम्भ में दीपक प्रज्ज्वलित किया जाता है।
शास्त्रों में विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये दीपक के भिन्न-भिन्न प्रकार और उद्देश्य भी बताए गये हैं-
उद्देश्य के अनुसार दीपक अलग-अलग उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये विभिन्न तेलों या घी से दीप जलाया जाता है, इसका भी विभिन्न संहिताओं में वर्णन है:
आर्थिक लाभ एवं मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सायंकाल घी के दीपक जलाने का विधान बताया गया है।
शत्रुओं से रक्षा के लिए तथा सूर्य संबंधी कष्टों से मुक्ति के लिये भी सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है।
तिल के तेल का दीपक शनिदेव को प्रसन्न करके न्याय और स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु जलाया जाता है।
महुए के तेल का दीपक सौभाग्य की प्राप्ति के लिये देवों को अर्पित किया जाता है।
राहु व केतु की शांति के लिये अलसी के तेल का दीपक शिव जी को अर्पित करने का प्रावधान है।
देवी-देवताओं के अनुसार दीपक…..
वैसे तो शास्त्रों में सामान्य पूजा के लिये पूजन-स्थल में एक-एक बत्ती के दो दीपकों को जलाने का प्रावधान है और सामान्यत: दो दीप और पंच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हुई पांच दीपों की आरती जलाये जाने का प्रावधान शास्त्रों में है, लेकिन कुछ ग्रंथों में विभिन्न देवताओं को भिन्न-भिन्न प्रकार के दीपक अर्पित करने का प्रावधान बताया गया है-
शिव जी को आठ बत्तियों का दीप अर्पित किया जाता है।
विष्णु जी को दस या सोलह बत्तियों का दीप अर्पण का प्रावधान बताया गया है।
गणेश जी को तीन या बारह बत्तियों के दीप के अर्पण का उल्लेख मिलता है।
मां आदि शक्ति को केवल एक बत्ती का दीप अर्पित किया जाता है।
लक्ष्मी जी को सात बत्तियों का दीप समर्पित किया जाता है।
दीपकों के आकार भी प्रभावित करते हैं…..
गोल आकार के गहरे दीपक ज्ञान प्राप्ति और ईश्वर से सामीप्य के लिये श्रेष्ठ हैं।
कम गहराई के दीपक लक्ष्मी प्राप्ति के लिये शुभ हैं।
बीच से उथले दीपक आपदा से मुक्ति के लिये उपयोग में लाये जाते हैं।
तिकोने दीपक वास्तु संबंधी दोषों से मुक्ति के लिये और रोग मुक्ति के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं।
विभिन्न अवसरों पर दीपक को नदी में प्रवाहित किया जाना और सूर्य को समर्पित किया जाना भले ही हमें अजीब सा लगता हो, पर यह उस आध्यात्मिक उन्नति का सांकेतिक प्रदर्शन है, जिसमें प्रकृति को समय-समय पर धन्यवाद देने और उसके सम्मान को बनाये रखने की मान्यता है।
दीपक का प्रकाश भले ही सूर्य जितना न हो, लेकिन मनुष्य को प्रेरणा देता है कि घोर अंधकार में भी वह एक दीपक जैसी छोटी इकाई की तरह अपने जीवन काल में संघर्ष करके आसपास के अज्ञान और अन्याय रूपी अंधकार को दूर कर लोगों को उजाला दे सकता है।