
ज्योतिष ज्ञान
जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जन्म कुंडली मे सप्तम (जीवनसाथी व रोजगार) भावस्थ सूर्य का फल…..
जन्म कुंडली के सप्तम भाव मे सूर्य का कोई विशेष अच्छा फल नही मिलता विशेषकर वैवाहिक जीवन के लिये। इस भाव मे यदि सूर्य अधिक पापी हो तलाक भी हो सकता है। यहां बैठा सूर्य जातक को स्वाभिमानी अवश्य बनाता है परन्तु वह अपने जीवन साथी की तरफ से कष्ट भी उठाता है। इसी कारण से जातक का हृदय कठोर हो जाता है। जातक को राज्य व कर्म क्षेत्र में भी अपमानित होना पड़ता है। सैदव किसी ना किसी कारण से चिंताग्रस्त रहता है। सूर्य यहाँ यदि पृथ्वी तत्त्व (वृष, कन्या व मकर) राशि मे हो तो जातक सफल व्यापारी बन सकता है इस योग ने यदि राहु भी बलवान होकर सहयोग करे तो ऐसा जातक चुनाव जीतकर विधानसभा, लोक सभा अथवा इसी के समकक्ष किसी सभा का सदस्य बनता है। सूर्य वायु राशि (मिथुन, तुला व कुम्भ) में हो तो शिक्षा के क्षेत्र में उच्च पद दिलवाता है। शुक्र के भी साथ देने पर संगीत या कानून क्षेत्र में सफल होता है। मनोरंजन के संसाधनों में प्रगति करता है। सूर्य यदि अग्नि तत्त्व राशि (मेष, सिंह व धनु) में हो तो जातक के दो विवाह की पूरी संभावना होती है लेकिन पहला विवाह देरी से होता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में हो उसमे किसी का भी हस्तक्षेप पसंद नही करता और ना ही किसी के आधीन रहना पसंद करता है। जल तत्व राशि (कर्क, वृश्चिक व मीन) में होने पर सूर्य जातक को विज्ञान अथवा चिकित्सा के क्षेत्र में सफल बनाता है यहाँ मेष, सिंह, धनु व मीन का सूर्य होने पर जातक को अपने जीवन मे एक बार घोर अपमान का सामना करना पड़ता है। यदि इस भाव मे सूर्य (वृष, कन्या, कर्क, मकर व वृश्चिक) का हो तो जातक अपने जीवन का पहला भाग पूर्ण सुख से व्यतीत करता है परन्तु बाद का समय कष्ट में बीतता है। सामान्य रूप में यदि सूर्य पर अन्य किसी पाप ग्रह का प्रभाव ना हो तो ऐसे जातक की पत्नी व्यवहारिक, दयावान, विपत्ति में पूरा साथ देने वाली, धर्मप्रिया व प्रभावशाली व्यक्तित्त्व की स्वामिनी होती है। अधिकांश कुंडली मे देखा गया है कि कुम्भ लग्न में सप्तमेश सूर्य यदि केंद्र में कही भी हो तो जातक की पत्नी रोगिणी, कलहप्रिया परन्तु संतान को प्रेम करने वाली पति की आज्ञा का पालन व उसका सम्मान चाहने वाली होती है।
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