जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से वृष लग्न में सूर्यादि नवग्रहों का भावानुसार फल…..
ज्योतिष चर्चा
स्त्री, रोजगार, खर्च एवं बाहरी स्थानपति मंगल का द्वादश भावो में फल….
प्रथम भाव….. वृषभ लग्न में प्रथम केंद्र देह के स्थान पर शुक्र की वृषभ राशि पर मंगल होने से जातक अत्यंत संघर्ष एवं कठिनाइयों के पश्चात ही भूमि मकान वाहन आदि सुखों को प्राप्त कर पाता है। ऐसे जातकों को शिक्षा एवं व्यवसाय में भी विघ्नों के बाद ही सफलता प्राप्त होती है। जातक जिद्दी स्वभाव वाला, शीघ्र उत्तेजित होने वाला, चालाक प्रकृति एवं अपनी प्रतिष्ठा का अवश्य ध्यान रखने वाला होता है। ऐसे जातकों का प्रायः रक्त विकार, उच्च रक्तचाप एवं तनाव आदि के कारण स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता। विशेषकर मध्य अवस्था में सिर पीड़ा एवं उच्च रक्तचाप का भय अधिक रहता है। मंगल यहां अपनी चौथी दृष्टि से सूर्य की सिंह राशि को देख रहा है इसलिए माता के सुख में आजीवन कुछ ना कुछ कमी रहती है। मंगल अपने सातवीं दृष्टि से स्त्री एवं रोजगार स्थान को अपनी ही वृश्चिक राशि में देख रहा है इसलिए जातक रोजगार की उन्नति तो करेगा एवं स्त्री पक्ष से शक्ति भी मिलेगी परंतु यहां व्य्येश होने के दोष के कारण इन संबंधित कार्यों में कुछ कमजोरी भी अनुभव होगी।
द्वितीय भाव…. वृषभ लग्न में दूसरे धन एवं कुटुंब स्थान में बुध की मिथुन राशि पर मंगल के होने से जातक पारिवारिक एवं आर्थिक परेशानियों से ग्रस्त रहता है। जातकों को शिक्षा के क्षेत्र में भी अड़चनें पैदा होती है। जातकों को भाई बंधु एवं धन आदि साधन होते हुए भी उनका सुख नहीं मिल पाता। परंतु चिकित्सक, वकीलों एवं सैन्य अधिकारियों के लिए द्वितीय मंगल अच्छा माना जाता है। ज्योतिषियों के लिए द्वितीय मंगल अशुभ रहता है। द्वितीय भावस्थ मंगल वाले जातक अत्यंत संघर्ष के बाद धन संपदा का अर्जन कर पाते हैं एवं संतान सुख में कुछ कमी भी देखने को मिलती है। मंगल यहां अपनी चतुर्थ दृष्टि से बुद्ध की कन्या राशि में देख रहा है। इसलिए संतान पक्ष में व्ययेश होने के दोष के कारण हानि करेगा। ऐसा जातक अपनी वाणी के कारण अपमानित भी हो सकता है। मंगल अपनी सातवीं दृष्टि से गुरु की धनु राशि में देख रहा है इसलिए जीवन में कई बार बेवजह चिंताओं के कारण बनते रहेंगे और पुरातत्व संबंध में कुछ हानि होगी।
तृतीय भाव….. वृषभ लग्न में तीसरे भाई एवं पराक्रम स्थान में चंद्रमा की कर्क राशि पर मंगल होने से जातक को भाई बहनों के सुख में कुछ ना कुछ कमी रहती है। पित्र सुख एवं व्यवसाय में भी अड़चनों का सामना करना पड़ता है। जातकों के व्यवसाय में अस्थिरता भी रहती है। इन्हें दांपत्य जीवन में भी विशेष सुख नहीं मिल पाता। यदि मंगल यहां पर शनि आदि पाप ग्रह से दृष्ट हो तो दुर्घटना से छाती में चोट आदि का भय रहता है। मंगल यहां अपनी चतुर्थ दृष्टि से शुक्र की तुला राशि में देख रहा है। इसलिए जातक शत्रु स्थान में प्रभाव डालेगा क्योंकि गर्म ग्रह की दृष्टि शत्रु नाशक होती है। मंगल अपनी सातवीं दृष्टि से भाग्य एवं धर्म स्थान को मकर राशि में देख रहा है। इसलिए जातक धर्म का पालन कर्ता होगा एवं कुछ भाग्य की वृद्धि भी होगी।
चतुर्थ भाव…. वृषभ लग्न में चौथे केंद्र माता एवं भूमि के स्थान पर सूर्य की सिंह राशि पर मंगल के प्रभाव से जातक को विवाह के बाद भूमि मकान वाहन आदि सुखों की प्राप्ति होती है। परंतु इनका सुख कुछ कठिनाइयों के बाद ही मिल पाता है। विवाह के बाद आकस्मिक धन की हानि एवं अपव्यय भी बहुत होने से लाभ हानि बराबर हो जाती है। कुंडली में शुक्र, बुध यदि शुभ हो तो आय के स्त्रोतों में वृद्धि होती है इसके विपरीत होने पर धन एवं कारोबार का नाश होता है। ऐसे जातकों को स्त्री सुख भरपूर होता है। मंगल की दशम भाव पर शत्रु दृष्टि होने से पिता के सुख में कमी रहती है। मंगल यहां अपनी चौथी दृष्टि से स्त्री एवं रोजगार स्थान को अपनी ही वृश्चिक राशि में देख रहा है इसलिए जातक युक्ति मुक्ति द्वारा रोजगार में उन्नति करेगा बाहरी स्थानों के योग से सफलता की संभावना अधिक रहेगी। मंगल अपनी सातवीं दृष्टि से पिता एवं राज स्थान को शनि की कुंभ राशि में देख रहा है। इसलिए राज्य समाज के कार्यो में भी कुछ परेशानी एवं नीरसता रहेगी।
पञ्चम भाव….. वृषभ लग्न में पांचवे त्रिकोण विद्या एवं संतान स्थान में बुद्ध की कन्या राशि पर मंगल होने से जातक को उच्च शिक्षा के संबंध में विघ्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातकों का धन का व्यय अधिक होता है। प्रायः धन एवं व्यवसाय के संबंध में संघर्ष और उलझनों के पश्चात ही सफलता प्राप्त होती है। जातकों को स्त्री सुख एवं संतान पक्ष से भी परेशानियां उठानी पड़ती है। संतान का सुख भी बहुत अल्प मिलता है। यहां यदि पाप ग्रह की दृष्टि या युति हो तो सट्टे, शेयर आदि के व्यवसाय से बड़ी हानि होती है। मंगल यहां अपनी चतुर्थ दृष्टि से गुरु की धनु राशि में देख रहा है। इसलिए आय और जीवन की दिनचर्या में चिंता कारक योग बनता है और पैतृक संबंध में भी हानि के योग बनाता है। मंगल अपनी सातवीं दृष्टि से लाभ स्थान को गुरु की मीन राशि में देख रहा है। इसलिए जातक बाहरी स्थानों के योग से आमदनी के मार्ग की वृद्धि करेगा।।
छठा भाव…. वृषभ लग्न में छठे शत्रु स्थान में शुक्र की तुला राशि पर मंगल के बैठने से जातक की कामाग्नि एवं उदराग्नि अधिक होती है। ऐसे जातकों की पत्नी का स्वास्थ्य भी प्रायः ठीक नहीं रहता जिसके कारण धन का खर्च अधिक करना पड़ता है। ऐसे जातक का धर्म और कर्म और भाग्य पर दृढ़ विश्वास होता है। मंगल की लग्न भाव पर दृष्टि होने से जातक स्वास्थ्य के संबंध में लापरवाह होता है परंतु जातक शत्रुओं पर सदैव हावी रहने वाला तथा विवादों में विजयी होता है। ऐसे जातकों को मामा के सुख में कमी रहती है। इस भाव में यदि किसी ग्रह का अशुभ संबंध हो तो जातक को मंदाकिनी, उधर व्याधि एवं रक्त विकार आदि का भय भी होता है। मंगल की चतुर्थ एवं सप्तम दृष्टि के फल स्वरुप जातक समाज में भाग्यशाली माना जाता है धर्म कर्म में विशेष रूचि रहती है धार्मिक कार्यों पर खर्च करने वाला होता है।
सातवां भाव…. वृषभ लग्न में सातवें केंद्र स्त्री एवं रोजगार के स्थान पर अपनी ही वृश्चिक राशि पर मंगल के होने से जातक को अत्यंत कठिन मेहनत के बाद धन की प्राप्ति हो पाती है। व्यवसाय में भी विशेष संघर्ष का सामना करना पड़ता है परंतु जातक स्वभाव से साहसी होने के कारण कठिनाइयों पर येन केन प्रकारेण सफलता पा ही लेता है। जातकों को धन एवं विवाह सुख में भी विघ्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है विवाह विलंब से भी होने की संभावना रहती है। जीवन भर शारीरिक एवं मानसिक सुख में कुछ ना कुछ कमी का अनुभव होता है। मंगल यदि सप्तम भाव में पाप ग्रह से दृष्ट हो तो गुप्त रोग का भय एवं स्त्री सुख में कमी करता है। मंगल यहां अपनी चौथी दृष्टि से पिता एवं राज्य स्थान को शनि की कुंभ राशि में देख रहा है इसलिए पिता के साथ मतभेद और पैतृक मामलों में हानि के योग होते हैं परंतु राज्य समाज में कुछ कठिनाइयों के बाद उन्नति भी होती है। मंगल अपनी सातवीं दृष्टि से देह के स्थान को शुक्र की वृषभ राशि में देख रहा है। इसलिए व्ययेश होने के दोष के कारण देह में कमजोरी के कारण दवाओं पर धन का खर्च लगा रहता है।
आठवां भाव….. वृषभ लग्न में आठवें मृत्यु एवं पुरातत्व स्थान में गुरु की धनु राशि पर मंगल के होने से जातक को आजीविका के लिए जन्म स्थान से दूर अथवा विदेश आदि में रहना पड़ता है। ऐसे जातकों को जीवन पर्यंत अनेक प्रकार की घरेलू एवं धन संबंधी उलझनों का सामना करना पड़ता है। मानसिक तनाव एवं शारीरिक कष्ट का भय भी बना रहता है। ऐसे जातकों को शिक्षा विवाह एवं आर्थिक क्षेत्र में अत्यंत संघर्षों के बाद सफलता प्राप्त होती है। विवाह के बाद पारिवारिक सुख एवं सहयोग में भी कमी होती है। मंगल यहां अपनी चतुर्थ दृष्टि से गुरु की मीन राशि में देख रहा है इसलिए जातक के विदेश में भाग्योदय होने के संभावना अधिक रहती है विदेश में धन का लाभ भी अवश्य होता है। मंगल अपनी सातवीं दृष्टि से धन एवं कुटुंब स्थान को बुध की मिथुन राशि में देख रहा है। इसलिए जातक को धन का संकलन करने में परेशानी आती है प्रायः ऐसे जातक धन का संचय नहीं कर पाते। जातकों के भाई एवं बहन से संबंध सामान्य नहीं रह पाते। कभी-कभी पुरुषार्थ शक्ति में भी कमी आती है।
नवां भाव….. वृषभ लग्न में नवम त्रिकोण भाग्य स्थान में शनि की मकर राशि पर मंगल द्वारा संचार करने से जातक अत्यंत बुद्धिमान, स्वाभिमानी, धार्मिक प्रवृत्ति वाला, भूमि मकान एवं वाहन आदि सुखों से युक्त एवं स्त्री पक्ष से लाभान्वित होता है। ऐसे जातकों का विवाह के बाद विशेष भाग्योदय होता है परंतु आकस्मिक खर्च भी बहुत अधिक होते हैं। मंगल यहां अपनी चतुर्थ दृष्टि से खर्च एवं बाहरी स्थान को अपनी ही मेष राशि में देख रहा है इसलिए जातक खर्चीला होने के साथ-साथ भाग्य पक्ष प्रबल होने से खर्च की संचालन शक्ति भी पाएगा और बाहरी स्थानों से उत्तम संबंध प्राप्त करेगा। मंगल अपनी सातवीं दृष्टि से भाई एवं पुरुषार्थ स्थान को चंद्र की कर्क राशि में देख रहा है। इसलिए भाई बहन के पक्ष में कुछ ना कुछ कमजोरी रहती है एवं शारीरिक दुर्बलता एवं हिम्मत की भी कमी रहती है।
दसवा भाव….. वृषभ लग्न में दशम केंद्र पिता एवं राज्य स्थान में शनि की कुंभ राशि पर मंगल के होने से जातक को माता-पिता एवं व्यवसाय के संबंध में विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातकों को भूमि, मकान, वाहन आदि सुखों की प्राप्ति भी अड़चनों के बाद ही हो पाती है। ऐसे जातकों को साझेदारी के कार्यों में अच्छी सफलता प्राप्त हो सकती है। जातकों को विवाह के उपरांत आय के क्षेत्र में पत्नी का महत्वपूर्ण सहयोग मिलता है। मंगल यहां अपनी चौथी दृष्टि से देह के स्थान को शुक्र की वृषभ राशि में देख रहा है इसलिए जातक की देह में कमजोरी और रक्त विकार की परेशानी रहेगी। मंगल अपनी सातवीं दृष्टि से सूर्य की सिंह राशि में देख रहा है। इसलिए माता के सुख में कुछ कमी एवं घरेलू सुख शांति में भी थोड़ी-बहुत बाधाएं आती रहेंगी।
ग्यारहवां भाव …. वृषभ लग्न में 11वें लाभ स्थान में मित्र गुरु की राशि पर मंगल के संचार से जातक को विघ्न बाधाओं के बाद शिक्षा एवं रोजगार के क्षेत्र में सफलता मिल पाती है परंतु ऐसे जातक एक से अधिक स्तोत्र द्वारा धनार्जन करने वाले होते हैं। जातक साहसी, सतर्क तथा वृद्धावस्था में भी युवा दिखने वाले होते हैं। जातक विवाह के उपरांत प्रायः अच्छा धन लाभ प्राप्त करते हैं। भूमि सवारी आदि सुखों से युक्त होते हैं परंतु इन्हें संतान सुख में कुछ ना कुछ बाधा आती है। वकीलों के लिए 11वां मंगल लाभप्रद होता है। मंगल यहां अपनी चौथी दृष्टि से धन एवं कुटुंब स्थान को बुध की मिथुन राशि में देख रहा है इसलिए धन के कोष में कुछ हानि प्राप्त होगी और कुटुंब स्थान में भी कुछ परेशानी हो सकती है। मंगल अपनी सातवीं दृष्टि से विद्या एवं संतान स्थान को बुद्ध की ही कन्या राशि में देख रहा है इसलिए विद्या प्राप्त करने में परेशानी एवं संतान बाधा अथवा संतान से मतभेद होने के संकेत हैं।
बारहवां भाव …. वृषभ लग्न में बारहवें खर्च एवं बाहरी स्थान में अपनी ही मेष राशि पर मंगल होने से जातक को सहजो (भाई बहनों) के सुख में कमी होती है। जातक की चंचल बुद्धि होती है परंतु स्वभाव से हंसमुख रहता है। मंगल यदि यहां शुक्र से युक्त हो तो जातक की मांस मदिरा आदि में रुचि रहती है। जातक की पत्नी बीमार होने के कारण बीमारी पर धन का अपव्यय होता है। यहां मंगल यदि पाप ग्रह से दृष्ट हो तो दुर्घटना आदि की आशंका भी रहती है। मंगल अपनी चौथी दृष्टि से भाई एवं पराक्रम स्थान को चंद्रमा की कर्क राशि में देख रहा है इसलिए जातक के पुरुषार्थ में कमजोरी रहती है और सातवीं दृष्टि से शुक्र की तुला राशि में देख रहा है इसलिए शत्रु स्थान पर गर्म ग्रह की दृष्टि उत्तम मानी जाती है। जिसके परिणाम स्वरुप जातक शत्रु पक्ष में अपना प्रभाव रखेगा और झगड़े झंडों के मार्ग में खर्च करके सफलता प्राप्त करेगा।
क्रमशः अगले लेख में हम वृष लग्न के द्वादश भावों में स्थिति धनकोष, कुटुंब, विद्या एवं संतान स्थान पति बुध द्वारा मिलने वाले फलों के विषय में चर्चा करेंगे।
( द्वादश भाव में सूर्य आदि ग्रहों के फल का अंतिम निर्णय करते समय जातक की ग्रह दशा तथा अन्य ग्रह योगों को भी ध्यान में रख ले तो फल अधिक सूक्ष्म)