धर्म डेस्क।जानिये आचार्य वीर विक्रम नारायण पांडेय से क्यों पसंद है लक्ष्मी जी को उल्लू की सवारी ?
भारतीय में सांस्कृतिक उल्लू को बहुत महत्व दिया जाता है, क्योंकि यह पक्षी मां लक्ष्मी जी का वाहन है। उल्लू को किसी भी धर्म ग्रंथ में मूर्ख नहीं माना गया है। लिंगपुराण में कहा गया है कि नारद मुनि ने मानसरोवरवासी उलूक से संगीत शिक्षा ग्रहण करने के लिए उपदेश लिया था।
वाल्मीकि रामायण में उल्लू को मूर्ख के स्थान पर अत्यन्त चतुर कहा गया। भगवान श्रीराम जब रावण को मारने में सफल नहीं हो पाते उसी समय उनके पास रावण का भाई विभीषण आता है। तब सुग्रीव राम से कहते हैं कि उन्हें शत्रु की उलूक-चतुराई से बचकर रहना चाहिए।
ऋषियों ने गहरे अवलोकन तथा समझ के बाद ही उलूक को श्रीलक्ष्मी का वाहन बताया था। उन्हें मालूम था कि पाश्चात्य संस्कृति में भी उल्लू को विवेकशील माना है। तंत्र शास्त्र अनुसार जब लक्ष्मी एकांत, सूने स्थान, अंधेरे, खंडहर, पाताल लोक आदि स्थानों पर जाती हैं, तब वह उल्लू पर सवार होती हैं। तब उन्हें उलूक वाहिनी कहा जाता है।
महालक्ष्मी जी मूलतः शुक्र ग्रह की अधिष्टात्री देवी हैं तथा लक्ष्मी जी की हर सवारी गरुड़, हाथी, सिंह और उल्लू सभी राहू घर को संबोधित करते हैं। कालपुरुष सिद्धांत के अनुसार शुक्र धन और वैभव के देवता हैं और व्यक्ति की कुण्डली में शुक्र धन और दाम्पत्य के स्वामी है। लक्ष्मी जी को उल्लू को वाहन बनाने के पीछे कथा है।
एक बार सभी देवी देवता अपना अपना वाहन चुन रहे थे। जब लक्ष्मी जी की बारी आई तो वे सोचने लगीं कि किसे अपना वाहन चुनें। लक्ष्मी जी जब अपना वाहन चुनने में सोच-विचार कर रहीं थीं उतनी देर में पशु-पक्षी लक्ष्मी जी का वाहन बनने की होड़ में आपस में लड़ाई करने लगे। इस पर लक्ष्मी जी ने उन्हें चुप कराया और कहा कि प्रत्येक वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन मैं पृथ्वी पर विचरण करने आती हूं। उस दिन मैं आप में से किसी एक को अपना वाहन बनाऊंगी।
कार्तिक अमावस्या के रोज सभी पशु-पक्षी आंखें बिछाए लक्ष्मी जी की राह निहारने लगे। रात्रि के समय जैसे ही लक्ष्मी जी धरती पर पधारी उल्लू ने अंधेरे में अपनी तेज नजरों से उन्हें देखा और तीव्र गति से उनके समीप पंहुच गया और उनसे प्रार्थना करने लगा की आप मुझे अपना वाहन स्वीकारें।
लक्ष्मी जी ने चारों ओर देखा उन्हें कोई भी पशु या पक्षी वहां नजर नहीं आया। तो उन्होंने खुशी-खुशी उसे अपना वाहन स्वीकार कर लिया। लक्ष्मी जी ने उल्लू को अपना वाहन बनाकर धरती की परिक्रमा की और तब से लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू हो गया।