माँ शीतला के दर्शन मात्र से होती है सभी मनोकामनाएं पूर्ण

सोनभद्र।विंध्य पर्वत पर स्थित सोनभद्र जनपद शिव और शक्ति की उपासना का प्रमुख केंद्र रहा है, इस पर्वत पर स्थित मां विंध्यवासिनी, मां अष्टभुजा, मां काली का प्राचीन मंदिर स्थित होने के कारण इस क्षेत्र में शक्ति पूजा प्रचलन प्राचीन काल से है। नवरात्र के महीने में सोनभद्र जनपद के घरों में मंदिरों में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा- आराधना एवं अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए, मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए मंदिरों, घरों में ढोलक की थाप पर पचरा, देवी गीत, भजन गाने की परंपरा है। आदिवासी क्षेत्र होने के कारण सोनभद्र जनपद में नवरात्र में विशेषकर तंत्र साधकों द्वारा तंत्र-मंत्र के माध्यम से लोक कल्याण का कार्य किया जाता है। और कुछ तांत्रिक, ओझा देवी मंदिरों में अपना दरबार लगाकर ओझाई का भी कार्य करते हैं,और यह आदिवासी मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए मदल व अन्य वाद्य यंत्रों की धुन पर देवी नृत्य करते हैं।

सोनभद्र जनपद सहित विंध्य क्षेत्र में शीतला माता के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा है ,इन्हें महारानी देवी भी कहा जाता है, और नीम के वृक्ष पर इनका स्थान माना जाता है ।चेचक निकलने पर तथा नवरात्रि के 9 दिन नीम के वृक्ष पर जल, फूल, माला ,दीपक आदि चढ़ाया जाता है,शीतला माता की कृपा बनी रहे इसलिए चुना एवं ऐपन से भरे हाथों के छाप घरों दीवारों, मंदिरों की दीवारों पर लगाती है। माता को खटोला, चूड़ी, फुलेरा, चोटी, कंघी तथा सिंदूर आदि श्रृंगार की वस्तुएं भी चढ़ाई जाती हैं।

सोनभद्र जनपद के मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज के मुख्य चौराहे पर स्थित मां शीतला का मंदिर भक्तजनों के आस्था और विश्वास का केंद्र है। आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व वर्तमान मंदिर स्थल पर नीम के पेड़ के नीचे मां शीतला की मूर्ति स्थापित थी और भक्तजनो द्वारा मां शीतला की पूजा- आराधना किया जाता था, नगर के पूर्व चेयरमैन एवं व्यापारी भोला सेठ द्वारा इस मंदिर को अपनी भूमि दान में दिया गया और सन 1973 में मंदिर का निर्माण आरंभ हुआ ,और आज दानदाताओं के सहयोग से इस मंदिर का भव्य रूप दिखाई देता है ।

शारदीय नवरात्र में लोग प्रथम दिवस पर भूमि को साफ कर ऐपन से गोलाकार चौक बनाते हैं, और उस पर ताम्र कलश स्थापित कर उसमें जल भरकर उस पर आम्र पत्र रखकर लाल कपड़े में नारियल को लपेट कर घट पर रखते हैं ,और घट पर रोली से स्वास्तिक का अंकन कर दीपक जलाते हैं, मिट्टी के अन्य पात्रों में भी जौ बोया जाता है तथा 9 दिन तक श्रद्धा, विश्वास एवं शुद्धता के साथमां भगवती का आवाहन करते हैं और विधिवत गंध, अक्षत, पुष्प, दीप, नवोदय, तांबूल व आरती द्वारा उनकी पूजा करते हैं ।

हर दिन पूजा के स्थान के दीवार पर ऐपन लगाया जाता है, एक वर्गाकार स्थान को ऐपन लगा कर घट के ठीक सामने देवी का स्थान मान लिया जाता है तथा दाहिने हाथ से पूजा करने वाला ऐपन लगाया जाता है और नवरात्र के अष्टमी नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर उन्हें भोजन कराया जाता है और उन्हें उपहार भी दिया जाता है उपहार में मुख्य रूप से खिलौने, फल, रुपए दिए जाते हैं, सोनभद्र जनपद में नवरात्र में देवी की पूजा, शतचंडी पाठ, दुर्गा सप्तशती पाठ स्वयं अथवा पुरोहितों के माध्यम से कराया जाता है, कुछ परिवारों में 9 दिन तक साविधि पूजन उपरांत कथा भी सुनाए जाने की प्रथा है।

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