लखनऊ: 04 अक्टूबर, 2019
उत्तर प्रदेश के उद्यान विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री श्रीराम चैहान ने कहा है कि प्रदेश में पान उत्पादकों की समस्याओं का निराकरण प्राथमिकता से करने की व्यवस्था राज्य सरकार ने की है। उन्होंने कहा कि पान उत्पादकों को अब तकनीकी प्रशिक्षण के साथ ही आवश्यक सुविधाएं भी सुलभ कराई जायेंगी। सरकार का प्रयास है कि पान उत्पादन के क्षेत्र में उ0प्र0 अग्रणी राज्य बने। अब जनपद स्तर पर पान उत्पादकों की कठिनाइयों के निराकरण की भी व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिये गये हैं।
श्री चैहान ने बताया कि प्रदेश में व्यापारिक दृष्टिकोण से उत्तर प्रदेश के कई जनपदों का पान आज भी पूरे देश में प्रसिद्ध है। पान की उत्पादकता मौसम के प्रभाव के कारण पूर्व में प्रभावित हुई है, किन्तु सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान केन्द्रित किया है और पान उत्पादकों को हर संभव सहयोग प्रदान करने का निर्णय लिया है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में पान की खेती प्रमुख रूप से महोबा, ललितपुर,बांदा, कानपुर, जौनपुर, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, रायबरेली, हरदोई, उन्नाव, लखनऊ, आजमगढ़, देवरिया, बस्ती, मिर्जापुर, बाराबंकी, वाराणसी व गोरखपुर आदि जनपदों में होती है। वर्तमान में उ0प्र0 में 800 से 1000 हे0 में पान की खेती की जा रही हैं। पान की उन्नत खेती एवं इसके क्षेत्रफल को बढ़ाने हेतु किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
उद्यान राज्यमंत्री ने बताया कि राज्य सेक्टर के तहत गुणवत्तायुक्त पान उत्पादन की प्रोत्साहन योजना प्रदेश के 12 जनपदों में संचालित है। ये जनपद हैं-उन्नाव, रायबरेली, लखनऊ, सीतापुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, बलिया, आजमगढ़, कानपुर नगर, बांदा, मिर्जापुर, सोनभद्र। इन जिलों में 1500 वर्गमीटर में पान बरेजा निर्माण की इकाई लागत 1,51,360 का 50 प्रतिशत धनराशि 75680 का अनुदान डी0बी0टी0 के माध्यम से लाभार्थी कृषकों के बैंक खाते में सीधे अन्तरित की जाती है। इस प्रकार से 1500 वर्गमीटर में निर्मित पान बरेजा से कृषकों को तीन वर्षों में कुल धनराशि 350-450 लाख का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ है।
श्री चैहान ने बताया कि औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केन्द्र मलीहाबाद, लखनऊ, खुशरूबाग प्रयागराज एवं पान प्रयोग एवं प्रशिक्षण केन्द्र महोबा में पान उत्पादकों को तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। प्रमुख कृषि उत्पादों में पान की खेती का प्रमुख स्थान है। कुछ इलाकों में यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि खाद्य या दूसरी नगदी फसलें हैं।