राम बनवास की लीला देख मंत्रमुग्ध हुए दर्शक

— रुक रुक कर हो रही बारिश में भी लीला देखने के लिये डटे रहे श्रद्धालु

पंकज सिंह/विकास अग्रहरि@sncurjanchal

म्योरपुर रामलीला मंचन के सातवें दिन श्री रामलीला मंडली द्वारा राम बनवास की मनोरम लीला खेली गई जिसे देख आस पास से आये दर्शक मंत्रमुग्ध हो गये जनकपुरी से प्रभु श्री राम माता सीता के साथ

अयोध्या आते है श्री राम के राज्याभिषेक के लिये दशरथ जी भरी सभा मे विचार करते है तथा सुबह में राज्याभिषेक होना तय होता है वही राज्याभिषेक की तैयारी में पूरा अयोध्या पूरी जुट जाता है कलुआ डोम द्वारा पूरे नगर की साफ सफाई मनमोहक तरीके से की जाती है वही जब प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक

की जानकारी देवताओं को होती है तो उनमें खलबली मच जाती है सभी देवता श्री हरि का ध्यान लगा उनसे कहते है प्रभु का अवतार जिस कार्य के लिये हुआ है अगर राज्याभिषेक हो जाएगा तो वह कार्य अधूरा रह जायेगा देवताओं की बात सुन श्री हरि माँ सरस्वती को मन्थरा का बुद्धि बिहीन करने को कहते है।मन्त्रा

अयोध्या पूरी में हो रहे साफ सफाई के बारे में पूछती है तब मन्थरा द्वारा केकई के पास जा भरत लाल को राज्याभिषेक व श्री राम को 14 वर्षों का बनवास के लिये महाराज से वर मांगने को कहती है मन्थरा के इन बातों को सुन केकई कहती है कि मैं भी चाहती में राम का राज्याभिषेक हो लेकिन मति की मारी मन्थरा केकई को एक से बढ़ कर एक बातों को बताती है यह सुन केकई दासी मन्थरा को सोने के आभूषण देती है लेकिन उन आभूषणों को मन्थरा केकई को वापस कर कहती है दासी न हार की भूखी है और कहती

राजा भरत या राम बने मैं दासी हु दासी ही रहूंगी इस राज्यतिलक में है जीत राम की और हार उस भोले भरत लाल की है बताती है कुछ याद तुन्हें आता है जब विवाह किया था राजा ने कहा था तेरा ही पुत्र राजा होगा यह वचन दिया राजा ने मन्थरा कहती है मैंने तो फर्ज अदा कर दी अब तलक जो नमन खाया था इस लिए भरत का ख्याल है वर्षों तक खोद खेलाया था मन्थरा की बातों में आकर केकई गुस्से से अगबुला हो जाती है और मन्थरा से कहती है मैं क्या करूँ तब मन्थरा कहती है कि माहारानी तुम कोप भवन में जाओ जब महाराज आये तो उनसे अपने दोनो वर को राम का सौगन्ध देकर मांग लो ।मन्थरा के बात को सुन केकई कोप भवन में जाती है जब यह समाचार दशरथ जी सुनते है तब कोप भवन उनके द्वारा जाकर केकई को समझाने का प्रयास की जाता है लेकिन केकई एक न सुन अपने दोनो वर को मांगने का प्रस्ताव रखती है केकई की बातों की सुनने के बाद दशरथ जी कहते है मांगो अपने दोनो वर क्या मांग रही है कहा कि रधु रीत सदा चली आयी प्राण जाई पर वचन न जाई तब केकई उचित समय देख प्रभु श्री राम को 14 वर्षों का वनवास व भरत लाल को राज्याभिषेक का वर मांगती है जिसे सुन दोनो वन देने के बाद दशरथ जी मूर्छित अवस्था मे हो जाते है तब केकई द्वारा श्री राम को कोप भवन बुलाया जाता है और उन्हें 14 वर्षों के लिए वनवास जाने को कहा जाता है माता पिता की आज्ञा मान प्रभु श्री राम वनों में जाने के लिये तैयार हो जाते है और वन को प्रस्थान करते है लेकिन माता सीता भी प्रभु के साथ जाने की जिद्द पर अढ़ जाती है जब दोनो वन के लिये जैसे निकलते है लक्षमण जी भी दोनो के साथ वन जाने को जिद्द करते है राम लक्षमण माता सीता वन के लिये अयोध्या पूरी से निकल जाते है राम वनवास की लीला देख आस पास के गांव से आये ग्रामीण मंत्रमुग्ध हो पुनः अपने घरों को जाते है इस दौरान आयोजन समिति के महा प्रबंधक गौरीशंकर सिंह,मंडली के अध्यक्ष सत्यपाल सिंह,वालेंटियर प्रमुख आलोक अग्रहरि,राम लीला कमेटी के मीडिया प्रभारी पंकज सिंह सहित भारी संख्या में दर्शक मौजूद रहे।

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