वनाधिकार कानून को फिर विफल करने में लगा है प्रशासन

— वनाधिकार दावों का स्थलीय परीक्षण किया जाए
28 सितम्बर के सम्मेलन में उठेगा जमीन का सवाल

विकास अग्रहरि/पंकज सिंह@sncurjanchal

सोनभद्र, 25 सितम्बर, 2019, स्वराज अभियान से जुड़ी आदिवासी वनवासी महासभा द्वारा हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में की गयी पैरवी और जनांदोलन के दबाव में वनाधिकार कानून के तहत खारिज दावों की पुनः परीक्षण के आदेश को विफल करने में फिर से प्रशासन लगा हुआ है। अभी 21 सितम्बर को विशेष सचिव समाज कल्याण ने आकर दुद्धी तहसील समेत जनपद की सभी वनाधिकार समितियों के अध्यक्ष व सचिवों की बैठक में स्पष्ट तौर पर निर्देश दिया था कि सभी खारिज दावों का मौके पर जाकर परीक्षण किया जाये और सभी पात्र दावेदारों को पट्टा दिया जाये। लेकिन तीन दिन बाद ही दुद्धी तहसील से बिना किसी जांच पड़ताल और परीक्षण के दावों को निरस्त करने की नोटिसें तैयार करायी जा रही है। इन प्रारूप

नोटिस में कहा गया है कि दावेदार का दावा ग्रामस्तर, उपखण्ड़स्तर और जिलास्तर की वनाधिकार समिति ने निरस्त कर दिया है, उसका मौके पर कब्जा नहीं है या उसने 13 दिसम्बर 2005 के बाद कब्जा किया है। जबकि सच्चाई यह है कि जनपद में खारिज हुए सारे दावों को ग्रामस्तर की समितियों द्वारा सत्यापन व स्वीकृत कर उपखण्ड़स्तर समिति को पूर्व में भेजा था। जिन्हें बिना परीक्षण व दावेदार को सूचना दिए ही खारिज कर दिया गया था। अभी भी प्रशासन दावों का मौके पर सत्यापन करके दावेदार को जमीन का पट्टा देने की जगह विधि विरूद्ध कार्यवाही कर रहा है जिस पर आज म्योरपुर ब्लाक के रासपहरी, जामपानी, करहिया, काचन, डडियरा आदि गांवों में मजदूर किसान मंच द्वारा आयोजित बैठकों में वक्ताओं ने गहरी आपत्ति दर्ज की। बैठक में यह निर्णय हुआ कि राबर्ट्सगंज में ‘बहुजन राजनीति की दशा व दिशा‘ पर 28 सितम्बर को आयोजित सम्मेलन में जमीन के सवाल को प्रमुखता से उठाया जायेगा और बड़ी संख्या में हिस्सेदारी की जायेगी।
बैठक में वक्ताओं ने कहा कि बहुजन राजनीति करने वाली सपा-बसपा सरकारों में भी वनाधिकार कानून को लागू नहीं किया गया। मौजूदा केन्द्र व राज्य की भाजपा सरकार तो बेदखली और उत्पीड़न करने में ही लगी हुई है। आदिवासी वनवासी महासभा की याचिका में हाईकोर्ट द्वारा दो साल पहले ही दावेदारों के उत्पीड़न पर रोक लगाने के आदेश के बावजूद दुद्धी तहसील में सैकड़ों दावेदारों पर वन विभाग ने मुकदमें कायम किए है। वनाधिकार कानून को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका के विरूद्ध केन्द्र सरकार के महाअधिवक्ता उपस्थित ही नहीं रहते हैं। इसी वजह से फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने बेदखली का आदेश कर दिया था। जिसे भारी जनदबाव के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्टे करते हुए हर राज्य सरकार से वनाधिकार कानून के तहत खारिज दावों के सम्बंध में अपनाई प्रक्रिया पर हलफनामा मांगा है। अभी भी सरकार की मंशा वनाधिकार कानून के तहत आदिवासियों और परम्परागत वन निवासियों को जमीन पर अधिकार देना नहीं बल्कि किसी तरह न्यायिक प्रक्रिया से बचने के लिए खानापूर्ति करना है। इसलिए दावेदारों को सतर्क रहना होगा और गांवस्तर पर निगरानी समिति का गठन करना होगा।
बैठकों को स्वराज अभियान की राज्य समिति सदस्य दिनकर कपूर, युवा मंच संयोजक राजेश सचान, मजदूर किसान मंच के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद गोंड़, कृपाशंकर पनिका, मंगरू प्रसाद गोंड़, रामनाथ गोंड़, वंशलाल गोंड़, मनोहर गोंड़, इंद्रदेव खरवार, सिंहलाल गोंड़, महावीर गोंड़, रमेश सिंह खरवार आदि लोगों ने सम्बोधित किया।

Translate »