पेश है पत्रकार दिलीप उपाध्याय की एसएनसी उर्जान्चल पर खास रिपोर्ट
सिंगरौली। मानव सभ्यता के विकास की कहानियां बया करने वाली सदियों पुरानी धरोहरें खंडहर हो गईं। इन्हें सहजने के सरकारी तंत्र के दावे तो लाख हुए लेकिन वक्त की मार और मौसम के थपेड़ों से बचाने के लिए इन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। यही नहीं, देश-विदेश के पर्यटकों को खींचने की क्षमता रखने वाली इन धरोहरों के प्रचार-प्रसार से भी सरकार ने पल्ला झाड़ लिया है। यहां बात हो रही है 7 वीं-8 वीं शताब्दी की निशानी माड़ा की गुफाओंं की। जिनका वजूद सरकार की अनदेखी से खतरे में है।
बैढऩ शहर से करीब 32 किमी. दूर छत्तीसगढ़ बार्डर पर सिंगरौली जिले की तहसील माड़ा है। यहां पहाड़ों को काट कर बनाई गईं गुफाएं राक कट आर्किटेक का अद्भुत नमूना है। ऊंचे पहाड़ और झरनों को रोमांच तो यहां है ही, गुफाओं में मौजूद शैलचित्र, पत्थरों को काट कर बनाई गई भगवान शंकर, गणेश सहित अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां इतिहास को परखने और समझने के लिए काफी हैं। लेकिन तंत्र की अनदेखी की धूल और मानव के अमानवीय कृत्यों से यह इतिहास समाप्त होने की कगार पर है। माड़ा तहसील पहुंचने पर जैसे ही पुलिस थाना क्रॉस करेंगे गुफाएं प्रारंभ हो जाती हैं।
मध्य में गणेश माड़ा और कुछ ही दूरी पर एक ओर विवाह माड़ा, शंकर माड़ा व दूसरी ओर रावण माड़ा की गुफा है। रावण माड़ा गुफा में जाने के लिए बकायदा पहाड़ पर सीढिय़ां बनी है। गुफा के अंदर कई कक्ष हैं। जिनमें अंधेरा छाया रहता है। शुरुआत में भगवान शंकर और गणेश की प्राचीन मूर्तियां पहाड़ पर उकेरी गई हैं। बीच वाले कक्ष में एक चबूतरा है जिसमें कभी शिवलिंग रहा होगा पर अब नही है। विवाह माड़ा गुफा, एक विशालकाय पहाड़ को काटकर बनाई गई है। इसके तीन हिस्से हैं। इसके नाम के अनुरूप स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न होते रहे होंगे।
विवाह माड़ा गुफा के खंभों में शैलचित्रों की अद्भुत कारीगरी है। छोटी-छोटी कलाकृतियां उस वक्त कैसे तैयार की गई होंगी यह सोचकर व्यक्ति हैरत में पड़ जाता है। लेकिन ये शैलचित्र भी मिटने लगे हैं। यहां बड़ा शिवलिंग है। जो दर्शाता है कि 7 वीं और 8 वीं शताब्दी के लोग भगवान शिव के घोर उपासक रहे होंगे। गणेश माड़ा गुफा और शंकर माड़ा गुफा एक ही पहाड़ में हैं। गणेश माड़ा का अस्तित्व इतना ही बचा है कि दूर से गुफा के प्रवेश द्वार दिख जाते हैं शेष स्थानीय लोगों ने ऐतिहासिक धरोहरों पर चूने की सफेदी पोतकर इन्हें नष्ट कर दिया है।
शंकर माड़ा पहाड़ के ऊपर हैं जहां पर शिवलिंग और नंदी की प्राचीनतम प्रतिमा मौजूद है। करीब 8 किमी. की रेंज में माड़ा की प्राचीन गुफाएं फैली हुई हैं। हैरत की बात ये है कि इन गुफाओं के रास्ते कहां निकलते हैं ये आजतक कोई पता नहीं कर पाया है। पहाड़ को काटकर नीचे ही नीचे बनाए गए रास्ते ये बताते हैं कि उस काल में मानव कितना सशक्त रहा होगा। कहते हैं कि यूं तो सिंगरौली ऋृंगी ऋत्रि की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है लेकिन माड़ा की गुफाएं आदिमानवकाल के इतिहास और मानव सभ्यता के विकास का उदाहरण हैं।
नोटिस बोर्ड और प्रचार-प्रसार में लगा जंग
पुरातत्व विभाग ने गणेश माड़ा गुफा के सामने नोटिस बोर्ड लगा रखा है। जो इनके इतिहास को बताता है लेकिन वक्त की मार और मौसम के थपेड़ों ने लिखे हुए शब्दों को मिटाकर जंग की लालिमा पोत दी है। आंखे गड़ाकर पढ़ो तो समझ आता है। यह तंत्र की अनदेखी का सबूत है। गौर करने वाली बात ये है कि विवाह माड़ा और रावण माड़ा गुफा के आसपास कोई नोटिस बोर्ड नहीं है। स्थानीय लोग अगर भूले भटके आ गए तो ही पता चल सकेगा कि आप किस गुफा में है। यही हाल ऐतिहासिक धरोहरों के प्रचार-प्रसार को लेकर है। माड़ा की गुफाएं सिंगरौली रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन से लेकर शहरी क्षेत्र में पर्यटन नक्शे की होर्डिंग्स से भी गायब हैं।
पर्यटक आएं तो कैसे, न ठहराव और न सुरक्षा
मानव सभ्यता से जुड़ी माड़ा की गुफाओं तक पर्यटक कैसे पहुंचे। इसके बारे में पुरातत्व विभाग की ओर से कोई कार्ययोजना नहीं तैयार की गई। संरक्षण के नाम पर इक्का-दुक्का नोटिस बोर्ड। न यहां पीने के पानी की व्यवस्था है और न ही पर्यटकों को रुकने के लिए कोई सुविधा। घने जंगलों में मौजूद गुफाओं में सुरक्षा का भय भी है।