सोनभद्र। पुत्रवती स्त्रियों द्वारा पुत्र की दीर्घायु हेतु रखे जाने वाले व्रत जिउतिया व्रत रविवार को बड़े हर्षोल्लास के साथ सोनभद्र जनपद के अलग-अलग स्थानों पर मनाया गया। विंध्य क्षेत्र के सभी ग्रामीण ,शहरी क्षेत्रों में यह व्रत पुत्रवती माताएऺ पुत्र की दीर्घायु हेतु करती है और लोकगीत भी गाती हैं।जीवित्पुत्रिका व्रती महिलाये शाम के समय नदी, तालाब,गंगाजी , अन्य क्षेत्रों में सड़क की पटरियों के किनारे एक गड्ढा खोदकर मिट्टी व गोबर की सहायता से जीमूतवाहन अथवा जिउतिया की प्रतीकात्मक आकृति को अत्यंत सरल रूप में पृथ्वी पर अंकित किया जाता है, और आंखों के स्थान पर कौड़िया चिपकाई जाती है, कहीं-कहीं पर कुसी का जूड़ी भी पृथ्वी पर स्थापित किया जाता है।तत्पश्चात इसके चारों ओर बैठी हुई स्त्रियां केला, नारियल, मूली, जाए,ईख,खीरॉ, माला फूल, मिठाई, पान, सुपारी सात अन्न व जल चढ़ाकर पूजा करती हैं ,और पुत्र की प्राप्ति एवं विवाह के पश्चात घर की बुजुर्ग स्त्रियां इस स्थान पर डाल भरती हैं, और गुझिया, पापड़ इत्यादि पकवान भी चढाती हैं, पुत्रों की दीर्घायु हेतु कुछ स्त्रियां सोने और चांदी के बने हुए जिउतिया,धागे की बनी हुई जिऊतियां को चढाती हैं। और सोने- चांदी की जिउतियां वापस लाकर बच्चों के गले में पहनाती है और धागे की बनी हुई जिउतियां को प्रसाद स्वरूप स्त्रियों में बांट देती है।व्रती महिला प्रतिभा केसरवानी ने बताया कि परिवार की शुख समृद्धि व पुत्र की दीर्घायु के लिए यह व्रत रखा जाता है,इसमें गन्ना, नारियल,पाल ,सोपाड़ी समेत अनेक समान चढ़ाया जाता है।वरिष्ठ साहित्यकार दीपक केसरवानी ने बताया कि जिउतिया का व्रत पुत्र की दीर्घायु के लिए रखा जाता है, यह व्रत ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसमें माताएं 36 घण्टे निर्जला व्रत रखती है।इस व्रत के दिन माताएं नदी के किनारे जाकर जिउतिया की पूजा करती हैं।इस अवसर पर 7 अनाज चढ़ाने और 8 कहानियां सुनने परंपरा है।