ऊष्मा को ऊर्जा में बदलने से दोहरा उद्देश्य पूरा होगा, बिजली की जरूरत पूरी होगी, दूसरी तरफ पर्यावरण का भी संरक्षण होगा।

शिक्षा डेस्क।हिमाचल प्रदेश के मंडी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of technology) (आईआईटी) (IIT) के शोधकर्ता एक थर्मोइलेक्ट्रिक मटीरियल विकसित कर रहे हैं, जो ऊष्मा (गर्मी) को प्रभावी रूप से बिजली में परिवर्तित कर सकता है। सौर ऊर्जा (Solar energy) पर जहां काफी ध्यान दिया जा रहा है, वहीं अन्य वैकल्पिक स्त्रोत भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं, भले ही वे अज्ञात हों। उदाहरण के लिए, ऊष्मा से बिजली पैदा करना आकर्षक है, क्योंकि ऊर्जा संयंत्रों, घरेलू उपकरणों और वाहन जैसे उद्योगों में बहुत सारी ऊर्जा उत्पन्न होती है, जहां इस ऊष्मा का अधिकांश हिस्सा व्यर्थ चला जाता है।

आईआईटी-मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर (भौतिकी) अजय सोनी के नेतृत्व में एक शोध दल उन सामग्रियों का अध्ययन कर रहा है, जो ऊष्मा को बिजली में बदल सकती हैं। शोध दल थर्मोइलेक्ट्रिक सामग्रियों पर शोध में लगी हुआ है और इसके कई शोध पत्र प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं, जिसमें एप्लाइड फिजिक्स लेटर्स, फिजिकल रिव्यू बी और जर्नल ऑफ एलॉयज एंड कंपाउंड्स शामिल हैं।

सोनी ने बताया, थर्मोइलेक्ट्रिक मटीरियल्स सीबैक प्रभाव के सिद्धांत पर काम करती है, जिसमें दो धातुओं के संधि स्थल पर तापमान के अंतर के कारण बिजली पैदा होती है। पश्चिमी दुनिया में फॉक्सवैगन, वोल्वो, फोर्ड और बीएमडब्ल्यू जैसी कई वाहन कंपनियां थर्मोइलेक्ट्रिक हीट रिकवरी सिस्टम्स को विकसित कर रही हैं, जो ईंधन दक्षता में तीन से पांच फीसदी सुधार करती है।

दुनिया में 70 फीसदी ऊर्जा को उष्मा के रूप में बर्बाद कर दिया जाता है और यह ऊष्मा वातावरण में चली जाती है, जो ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है। इस ऊष्मा को ऊर्जा में बदलने से दोहरा उद्देश्य पूरा होगा। एक तो बिजली की जरूरत पूरी होगी, दूसरी तरफ पर्यावरण का भी संरक्षण होगा।सौजन्य से पत्रिका।

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