बिडर प्राइमरी स्कूल के प्रधानाध्यापिका का मेहनत रंग लाया,बच्चों में प्रतिभा की खोज

दुद्धी।(भीमकुमार) प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति से हर कोई रूबरू है। विद्यालय में अध्यापको का पढ़ाई में लापरवाही या आए दिन मिडे मिल की समस्याएं लगातार आती रहती हैं। लेकिन सोनभद्र जिले के एक ऐसा प्राथमिक विद्यालय जो अपनी मेहनत लगन और निजी साधन संसाधनों से विद्यालय का स्वरूप बदल दिया। जिससे जिलाधिकारी सोनभद्र ने 2013 से 2019 तक लगातार प्रधानाध्यापिका को सम्मानित किया हैं।

ट्रांसफर होकर यहां आई तो हालत बहुत खराब थे। तो मैंने सोचा कि क्यों न इस विद्यालय को बेहतर बनाया जाए। मरम्मत से लिए शासन से मदद मांगी, वो नहीं मिली तो खुद के पैसे लगा दिए।

सोनभद्र जिला मुख्यालय से 70 किमी दूर एक सुदूर अति पिछड़ा क्षेत्र के दुद्धी ब्लॉक के बिडर गांव के प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका वर्षा रानी जायसवाल, प्रधानाध्यापिका, प्राथमिक इंग्लिश मीडियम स्कूल, कलकल्लीबहरा प्रथम, दुद्धी जिला सोनभद्र ने विद्यालय में 2012 में आई जबकि विद्यालय की हालत जर्जर भवन जो खंडहर में तब्दील हुआ करता था। बच्चों की संख्या तो कम थी ही विद्यालय के फर्श जगह-जगह से उखड़ गई थी। तो स्कूल के बाहर गंदगी फैली रहती थी। लेकिन वर्षा जायसवाल ने अपनी सैलरी के हजार रुपये खर्च कर निवेदिका ने स्कूल की सूरत बदल डाली है। बिल्डिंग

तो दुरुस्त कराई ही दीवारों को दुरुस्त कर वाल पुट्टी से मेंटेन करने के बाद दिवलो के ऊपर कलर पेंटिग कराई जिसमे बच्चों का कार्टून और गणित,हिंदी,अंग्रेजी, एव समान्य ज्ञान की जानकारी लिखित रूप से भी पेंटिंग करा दी है। बच्चे रंगोली और प्रोजेक्टर के माध्यम से पढ़ाई करते हैं। और स्कूल के सभी बच्चों को बेहतरीन कपड़े का ड्रेस व टाई बेल्ट, स्वेटर, जूता मोजा का लाभ दिया जाता है। इस स्कूल में 99 फीसदी बच्चे हैं, जिनकी जानकारी किसी निजी स्कूल के छात्र जैसी ही है।

प्रधानाध्यापिका वर्षा जायसवाल बताती हैं,कि 2012 में हमारा इस विद्यालय में ट्रांसफर हुआ था। तब इस विद्यालय की हालत बहुत खराब थे। मैंने सोचा कि क्यों न इस विद्यालय को मॉडल विद्यालय की तरह बनाया जाए। स्कूल की मरम्मत से लिए शासन से मदद मांगी, वो नहीं मिली तो खुद के पैसे लगा दिए।

बिडर गांव के पूर्व प्रधान सुरेश प्रसाद ने प्रधानाध्यापिका की तारीफ करते हुए कहा की पहले यहां विद्यालय के आस पास कच्ची शराब बनाया जाता था। और हमारे गांव के लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजना पसंद ही नहीं करते थे। लेकिन अब इसी विद्यालय में सब गांव के लोग चाहते हैं कि उनका बच्चा यहीं पढ़े। जिसमे विद्यालय में प्रवेश लेने के लिए अध्यापकों से पहले से नम्बर लगवाते है। जिसे विद्यालय की महत्व बढ़ गई है। अब इस स्कूल के ज्यादातर बच्चे अंग्रेजी बोलने लगे हैं। स्कूल में वैसी ही पढ़ाई होने लगी है। जैसे कान्वेंट स्कूलों में होती है।

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