
नई दिल्ली।
अब मकान खरीदारों को भी कर्ज़दाता का दर्जा मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने किसी कंपनी को दिवालिया घोषित करने से जुड़े इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड यानी IBC कानून में बदलाव को मंजूरी दे दी है. अब तक सिर्फ बैंक और बड़े वित्तीय कर्जदाता को किसी बिल्डर कंपनी से अपने कर्ज की वसूली के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) जाने का अधिकार था. वो NCLT में उस कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करवा सकते थे. इससे वसूल होने वाले पैसों पर भी बैंकों का ही हक होता था. अब यह हक छोटे फ्लैट खरीदारों को भी मिल जाएगा।
कानून में बदलाव के खिलाफ सुपरटेक, एम्मार, एटीएस, अंसल, वेव समेत करीब 180 बिल्डर कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. उनका कहना था कि ये बदलाव रियल एस्टेट सेक्टर को नुकसान पहुंचाएगा. इससे निर्माण क्षेत्र में लगी कंपनियों का काम कर पाना मुश्किल हो जाएगा. लेकिन जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने उनकी दलीलों को ठुकरा दिया. बेंच ने माना है कि छोटे फ्लैट निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए कानून में किया गया संशोधन सही है।
हालांकि, कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि NCLT सिर्फ वास्तविक और सही फ्लैट निवेशकों की ही याचिका पर विचार करे. किसी अर्जी पर विचार करने से पहले देखा जाए कि अर्जी दायर करने वाला क्या वाकई पीड़ित है. कहीं ऐसा तो नहीं कि ये महज कंपनी को परेशान करने की कोशिश है. याचिका स्वीकार करने से पहले बिल्डर कंपनी को भी जवाब देने का मौका दिया जाए।
कानून में बदलाव के खिलाफ याचिका दायर करने वाली कंपनियों का कहना था कि फ्लैट खरीदार बिल्डर के खिलाफ RERA में शिकायत कर सकते हैं. IBC के तहत दिवालिया प्रक्रिया का हक शुरू में सिर्फ बैंकों को दिया गया था. ये इसलिए उचित है क्योंकि वो करोड़ों का लोन बिल्डर को देते हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि RERA और IBC की प्रक्रियाएं अलग अलग हैं. एक फ्लैट खरीदार को दोनों को इस्तेमाल करने का मौका मिलना चाहिए. इसमें कहीं कोई विरोधाभास नहीं है।
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