कभी सीनियर्स को बाहर कर युवाओं को मौका दिया, क्या धोनी के भविष्य पर कल कड़ा फैसला लेंगे चयनकर्ता ?

महेंद्र सिंह धोनी ने बतौर कप्तान सीनियर्स के स्थान पर युवा खिलाड़ियों को मौका दिया।

लेकिन अब समय का पहिया घूम चुका है। क्या चयनकर्ता धोनी पर ले पाएंगे कोई कड़ा फैसला।

उम्र धोनी के साथ नहीं और सवाल उठ रहे हैं कि भारत के सबसे सफल कप्तानों में शुमार धोनी का वक्त अब बीत चुका है।

नई दिल्ली ।
एक वक्त की बात है जब बतौर भारतीय कप्तान उन्होंने कड़े फैसले लेते हुए कई स्टार सीनियर खिलाड़ियों को हटाया था- और अब खुद उम्र उनके साथ नहीं। अब वक्त है कि वह खुद पर और भारतीय क्रिकेट के भविष्य पर कोई फैसला करें। अपने करियर में दो बार- 2008 और 2012 में कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने सीनियर खिलाड़ियों को लेकर कड़े और असहज करने वाले फैसले किए। इनमें देश के सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में शामिल, सौरभ गांगुली, राहुल द्रविड़ और वीरेंदर सहवाग भी शामिल थे। तब धोनी के दिमाग में आने वाला विश्व कप शामिल था। अब ऐसा नहीं लगता कि यह विकेटकीपर बल्लेबाज 2023 के विश्व कप प्लान का हिस्सा होंगे, तो क्या वक्त आ गया है कि वह अब दूसरों के लिए रास्ता बनाएं?

गंभीर बोले, व्यावहारिक सोच रखें
भारतीय टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज गौतम गंभीर उन लोगों में से हैं जो ऐसी राय रखते हैं। गंभीर का कहना है कि धोनी जब कप्तान थे तब उन्होंने भविष्य की योजनाओं का हवाला देते हुए युवा खिलाड़ियों को तैयार किया था, और अब समय आ गया है कि भारतीय चयनकर्ता धोनी को लेकर ‘व्यावहारिक फैसला’ लें। एक बार फिर युवा खिलाड़ी इंतजार में हैं। वेस्ट इंडीज दौरे पर टीम का चयन रविवार को होगा। ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि वर्ल्ड कप के दौरान ही धोनी ने भारत के लिए अपना आखिरी वनडे इंटरनैशनल खेल लिया है।

जब धोनी ने गौतम से की सीधी बात
गंभीर ने कहा, ‘भविष्य के बारे में विचार करना जरूरी है। और जब धोनी कप्तान थे तो उन्होंने भविष्य में निवेश किया। मुझे याद है कि ऑस्ट्रेलिया में धोनी ने मुझसे कहा था कि मैं, सचिन और सहवाग एक साथ सीबी सीरीज में नहीं खेल सकते क्योंकि यहां मैदान बहुत बड़े हैं।’

नए विकेटकीपर्स को मिले मौका
गंभीर ने कहा, ‘वर्ल्ड कप के लिए धोनी ने युवा खिलाड़ियों की मांग की। ऐसे में भावुक होकर सोचने के बजाए व्यावहारिक होने की जरूरत है। यह युवा खिलाड़ियों को तैयार करने का वक्त है। फिर चाहे वह ऋषभ पंत, संजू सैमसन, इशान किशन या कोई अन्य विकेटकीपर हो। जिसमें भी क्षमता दिखाई दे उसे विकेटकीपर बनाया जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘एक युवा विकेटकीपर को एक-डेढ़ साल तक आजमाना चाहिए, अगर वह प्रदर्शन नहीं करता है तो फिर अन्य को मौका दिया जाना चाहिए। तभी आपको पता चल पाएगा कि अगले विश्व कप में आपका विकेटकीपर कौन होगा।’

क्रिकेटर से राजनेता बने गंभीर ने धोनी को सर्वश्रेष्ठ भारतीय कप्तानों में से बताया लेकिन साथ ही कहा टीम की पूरी कामयाबी का श्रेय उन्हें देना गलत है और नाकामयाबी पर सिर्फ उनकी आलोचना करना भी सही नहीं है।

★ धोनी ने कैसे किया सीनियर्स को बाहर

ऑस्ट्रेलिया में त्रिकोणीय सीरीज से पहले धोनी ने एक बोल्ड फैसला लेते हुए चयनकर्ताओं को वनडे फॉर्मेट से सौरभ गांगुली और राहुल द्रविड़ को ड्रॉप करने को कहा था। धोनी का तर्क था कि ये खिलाड़ी अच्छे फील्डर नहीं हैं।
भारतीय टीम ने वह टूर्नमेंट जीता और गौतम गंभीर व सुरेश रैना जैसे खिलाड़ियों के साथ विश्व कप 2011 की नींव रखी गई।
2012- रोटेशन पॉलिसी नहीं चली
2012 में सीबी सीरीज में धोनी ने श्री लंका के खिलाफ आखिरी लीग मैच तक सचिन तेंडुलकर, वीरेंदर सहवाग और गौतम गंभीर में से सिर्फ दो खिलाड़ियों को ही मौका दिया। इसके पीछे भी उनके ‘धीमे फील्डर’ होने का तर्क दिया गया। इस खबर के बाद टीम में कलह की बातें सामने आने लगीं। यह दांव उल्टा पड़ा क्योंकि टीम इंडिया फाइनल के लिए क्वॉलिफाइ नहीं कर सकी।

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