जीएसटी समेत दूसरी परेशानियों का सामना कर रहे कालीन उद्योग आम बजट को लेकर आशान्वित।
निर्यातक बोले, हमारी परेशानियां दूर हों, बुनकरों की बेहतरी के लिये उठाए जाएं कुछ ठोस कदम।
भदोही ।. पूरी दुनिया में अपनी खूबसूरत मखमली कालीनों के लिए मशहूर कालीन नगरी भदोही से अब उद्योग दूसरे महानगरों की तरफ शिफ्ट हो रहा है। उद्योग की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले बुनकर भी इससे मुंह मोड़ रहे है। इन हालात में आने वाली 5 जुलाई को जो बजट पेश होने वाला है उससे कालीन नगरी भदोही को खासी उम्मीदे है। उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है की अगर सरकार अपने बजट में इस उद्योग का ध्यान देंगी तो वह उसके लिए संजीवनी का काम करेगा।
उत्तर प्रदेश का छोटा सा जिला भदोही, जिसे पूरी दुनिया में अपनी कालीनों की अनूठी कारीगरी के लिये जाना जाता है। भारत से 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का निर्यात विदेशों को होता है, उसमें अकेले 70 फीसद भदोही परिक्षेत्र का हिस्सा होता है। पर मौजूदा दौर में कालीन उद्योग भदोही से दूसरे महानगरों की ओर शिफ्ट हो रहा है। कालीन बुनकरों का पलायन भी तेजी से बढ़ा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है सरकारों की इस ओर की गयी अनदेखी। मूलभूत सुविधाओं की कमी और टैक्स में लगातार इजाफा उद्योग के लिए मुसीबतें बढ़ाता गया है। अब जिस तरह के हालात हैं उसमें कालीन उद्योग मोदी सरकार से तमाम आशाएं लगाए बैठा है। उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री बुनकरों और उद्योग का दर्द अच्छे से समझते हैं, इससे उम्मीद है कि वह आने वाले आम बजट में इस उद्योग को भी कई सौगात दे सकते हैं।
*मुशीर इकबाल*
कालीन उद्योग से जुड़े मुशीर इकबाल को आशा है कि ये बजट कारपेट इंडस्ट्री के हित में होगा। इससे लाखों बुनकर और गरीबों के साथ किसान भी जुटे हैं। मूलभूत समस्या का निदान करते हुए इस उद्योग को पंख लगाने का काम मोदी सरकार करेगी, ऐसा उन्हें विश्वास है।
भदोही का कालीन उद्योग एक कुटीर उद्योग की तरह है, जिससे लाखो बुनकरों की आजीविका चलती है। इसलिए उद्योग से जुड़े लोगों की मांग है कि इसे विशेष पैकेज दिया जाय। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विशेष पैकेज जरूरी है। जिस तरह से वैश्विक कारोबार बदल रहे हैं उसको देखते हुए हालात की मार झेल रहे निर्यातकों को सस्ते व आसान कर्ज के लिए खास उपाय किये जाने चाहियें। बुनकरों की बदहाली को ध्यान में रखते हुए उनके लिए विशेष योजना की मांग की जा रही है। इसके अलावा जीएसटी और ई-वे बिल में सरलीकरण को भी कालीन उद्योग के लिये जरूरी बताया जा रहा है, क्योकि इस उद्योग से कच्चे माल समेत कई छोटे काम करने वाले लोग भी इस दायरे में हैं, जो पेपर वर्क नहीं कर पा रहे जिससे दिक्क़ते हो रही है।
निर्यातक असलम महबूब कहते हैं कि जीएसटी को सरल बनाए जाने की जरूरत है, क्योंकि उद्योग में जो बुनाई वाले हैं, धुलाई वाले हैं क्लिप वाले हैं, वो सब जीएसटी के दायरे में आ गए हैं। उनसे पेपर वर्क नहीं हो पा रहा है और हम कर नहीं पा रहे। जहां बुनकरों की तादाद 20 से 25 लाख हुआ करती थी वह अब घटकर 10 से 12 लाख रह गयी है। उनके लिये भी कुछ किये जाने की जरूरत है। उम्मीद है कि नई वित्त मंत्री और मोदी सरकार इस पर ध्यान देंगे। उद्योग से जुड़े क्षेत्र में ढांचागत विकास के साथ 24 घण्टे बिजली भी एक बड़ी मांग है। निर्यातकों का कहना है की यह ऐसा कुटीर उद्योग है जिसका लाभ गांवो में बसने वाले लाखों बुनकरों को तो मिलता ही है साथ ही हम विदेशी मुद्रा भी अर्जित करते हैं। इसलिए इस महत्वपूर्ण उद्योग पर आम बजट में जरूर ध्यान देना चाहिए।