वेतन संहिता मजदूरों के साथ धोखा -वर्कर्स फ्रंट न्यूनतम मजदूरी के आधार को ही दिया बदल

ओबरा, सोनभद्र, 4 जुलाई 2019, मोदी सरकार द्वारा संसद में प्रस्तावित वेतन संहिता मजदूरों के साथ धोखा है और कारपोरेट घरानों के पक्ष में अधिकारों पर हमला है। यह प्रतिक्रिया आज प्रेस को जारी अपने बयान में यू0 पी0 वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने व्यक्त की। उन्होंने बताया कि प्रस्तावित वेतन संहिता एक मजदूर परिवार के जीवित रहने और कुशलतापूर्वक अपने काम को सम्पादित करने के लिए निर्धारित भोजन, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन के मानकों के विपरीत न्यूनतम मजदूरी को समय और माल उत्पादन की क्षमता पर आधारित कर देती है। इस निर्धारण से खुद सरकार के वेतन आयोग द्वारा तय 18000 न्यूनतम मजदूरी के स्तर को भी कम कर दिया जायेगा। राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन की बात भी बेईमानी है क्योंकि इस संहिता में पूर्व की भांति राज्यों को अपना न्यूनतम वेतन तय करने का अधिकार दिया ही गया है। प्रस्तावित वेतन संहिता में अनुसूचित उद्योग के प्रावधान को ही खत्म कर दिया गया है और पत्रकारों, मेडिकल व सेल्स रिप्रेजेंटेटिव को भी इसके दायरे में लाकर इनके अलग वेज बोर्ड को भी खत्म कर दिया गया है। कर्मचारी की परिभाषा से अप्रेटिंस को बाहर कर दिया गया है। वेतन संहिता में काम के धण्टे निर्धारित करने का अधिकार सरकार को दिया गया है जो काम के धण्टे बढ़ाने की ही कोशिश है। सरकार द्वारा निर्धारित काम के धण्टे के अतिरिक्त कराए काम को ओवरटाइम बताया गया है। संहिता में समान काम के लिए समान वेतन को मात्र लैगिंक आधार तक ही सीमित किया गया है। इस संहिता के अनुसार नए लगे उद्योगों को बोनस देने से छूट भी मिल सकेगी और बोनस बढ़ोत्तरी के लिए मालिकों की बैलेंसशीट देखने के टेªड यूनियनों को मिले अधिकार को छीन लिया गया है।
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित वेतन संहिता मंदी के दौर से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए देशी-विदेशी पूंजी घरानों को आकर्षित करने हेतु मजदूरों के अधिकारों पर हमला है। दरअसल इसके जरिए सरकार देश में बेहद कम मजदूरी पर काम करने के लिए मजदूरों को मजबूर करेगी। इसका देश की लोकतांत्रिक ताकतों और टेªड यूनियन्स के साथ मिलकर विरोध किया जायेगा और मजदूरों में भण्डाफोड़ अभियान चलाया जायेगा।

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