आखिर कब तक विस्थापन का दर्द झेलते रहेंगे रिहंद बांध के विस्थापित

गवर्मेंट ग्रांट के जमीन वाले  साथ परिवारों को अभी तक नही मिला  मुआवजा
म्योरपुर हवाई  पट्टी के विस्तार  के जद में है विस्थापित
पंकज सिंह की विशेष रिपोर्ट@sncurjanchal
म्योरपुर ब्लॉक के स्थानीय कस्बा स्थित 1952 में स्थापित हवाई पट्टी के विस्तार के जद में काश्तकारी 39 किसानों के घर और दर्जनो एकड़ जमीन का मुआवजा मिल गया।लेकिन सात विस्थापितों को गवर्मेन्ट ग्रांट की मिली जमीन और घर का मुवावजा अभी भी अधर में लटका हुआ है। रविवार को जिलाधिकारी अंकित कुमार अग्रवाल ने आश्वासन दिया है कि एक माह के अंदर  पैसा मिल जाएगा।शासन को पत्र लिखा गया है।पर सवाल यह उठता है कि  आखिर अपनी काश्त की पुश्तैनी जमीन देश के निर्माण के लिए रिहंद बांध के लिए खुशी खुशी देने वाले लोगो के साथ इंसाफ क्या सौतेला व्यवहार करना  ही है।युवा अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता सत्यनारायण यादव की माने तो 1960 में भगवान दास, भोला ,अनवर ,सनवर , रामकिशुन, आसिम अली, काशिम अली को उस समय राज्यपाल के हस्ताक्षर वाला गवर्मेन्ट ग्रांट का पट्टा मिला था।जिसने वह विस्थापन का दर्द भूल जीवन की नई शुरुआत कर सके,।साठ साल बाद ये पुनः विस्थापित होंगे  इस बीच इनका परिवार बढ़ गया ।और ये नए आशियाने की तलाश में  भटकेंगे,।इसके लिए आखिर जिमेदार कौन नीति या नौकर शाह,।श्री यादव बताते है विस्थापन नीति  बना सुधार भी बहुत हुआ है लेकिन यहां तो उड्डयन विभाग जमीन खरीद रहा है।यहां विस्थापितों को विस्थापन नीति का फायदा नही मिल रहा है। लेखपाल सुरेन्द्र नाथ पाठक का कहना है कि शासन से अनुमति मिलते ही गवर्मेन्ट ग्रांट वाले सातों परिवारों को मुआववजा मिल जाएगा।

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