वाराणसी में प्रियंका गांधी वाड्रा का फीका रॉड शो , दस से बारह हजार लोग बमुश्किल हुए शामिल , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रियंका गांधी के रॉड शो के ही अनुपात में वोट भी मिलने का लग रहा है अनुमान

वरिष्ठ पत्रकार और ओपिनियन मेकर्स के ग्रुप एडमिन सिद्धार्थ कलहंस के साथ आज बनारस में हम घूमते रहे तो लोगों से कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया मिली ।

ग्राउंड जीरो से आकलन ।

बनारस में पहले मैदान छोड़ा, अब जमानत बचाने की है चुनौती

हेमंत तिवारी

वाराणसी ।

तमाम चर्चाओं के बाद भी प्रियंका गांधी बनारस में मोदी के खिलाफ चुनाव मैदान में नहीं उतरीं। कांग्रेस ने एक फिर से अपने पुराने घोड़े अजय राय पर ही दांव लगाया। अब मोदी के सामने कड़ी चुनौती न पेश करने को लेकर फजीहत झेल रही कांग्रेस के सामने अपना सम्मान बचाना अहम है। पिछले चुनाव में मोदी के सामने खड़े अजय राय की जमानत जब्त हुयी है। अब जबकि सपा प्रमुख की पहली पसंद के प्रत्याशी तेज बहादुर यादव का नामांकन रद्द हो चुका है तो कांग्रेस को कम से कम कुछ आस बंधती दिख रही है।
यह भी सही है कि प्रियंका गांधी के कांग्रेस से चुनाव मैदान में न उतरने और फिर सीमा सुरक्षा बल में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा बर्खास्त होने वाले सिपाही तेज बहादुर का सपा प्रत्याशी के तौर नामांकन न रद्द होने से बनारस का चुनाव बेरंग और बेरस हो गया है। कम से कम बाहर तो यही माना जा रहा है कि अब बनारस में प्रधानमंत्री मोदी को टक्कर नही मिल रही है और जीत आसानी से होगी। खुद बनारस में और समूचे उत्तर प्रदेश में जीत के अंतर को लेकर बहस चल रही है। लोगों के बीच चर्चा है कि मैनपुरी,बनारस और रायबरेली में कहां जीत का फासला सबसे ज्यादा रहने वाला है। इन तीनों ही सीटों पर मुलायम सिंह यादव मोदी और सोनिया गांधी की जीत लगभग तय मानी जा रही है।
हालांकि बेरंग हो चले बनारस के चुनाव में हालांकि प्रियंका गांधी ने पूरी तरह से हार नहीं मानी है। कम से कम कांग्रेस को मुख्य मुकाबले में लाने और प्रधानमंत्री की जीत का अंतर घटाने की उनकी पूरी तैयारी लगती है। बनारस में एक बार फिर अजय राय कांग्रेस के उम्मीदवार हैं जबकि सपा ने तेज बहादुर यादव का टिकट कटने के बाद शालिनी यादव को ही प्रत्याशी बना दिया है।
स्मृति इरानी के साथ मुश्किल मुकाबले में अमेठी में फंसे राहुल गांधी की जीत सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस ने वहां 100 के करीब बाहरी कार्यकर्त्ताओं की एक फौज उतारी थी। इस टीम में ज्यादातर पूर्व में वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े नौजवान और सामाजिक कार्यकर्ता रहे लोग शामिल थे। अमेठी में इस टीम ने छोटी-छोटी टुकड़ियों में बंट कर स्थानीय नेताओं को साथ लेकर गांवों में सघन प्रचार किया। इन उत्साही नौजवानों की टीम ने अमेठी में 10 दिन से ज्यादा रुक कर 500 से ज्यादा गांवों को मथा और राहुल के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया। अमेठी में 6 मई को मतदान होने के बाद अब यही टीम प्रियंका गांधी के निर्देश पर बनारस के लिए रवाना कर दी गयी है। इन दिनों कांग्रेस की यही टीम बनारस की गलियों और गांवों की खाक छान रही है। टीम में शामिल एक नौजवान के मुताबिक उनका प्रचार का काम और तरीका स्थानीय लोगों से अलग है। वो गांवों, मुहल्लों में जा जाकर लोगों को मोदी की असलियत, बनारस में अधूरे रहे वादे, सपनों को छले जाने से लेकर क्योटो की कहानियां सुना रहे हैं।
कांग्रेस संगठन में औपचारिक रुप से सक्रिय होने के बाद फरवरी में लखनऊ के बाद बनारस में प्रियंका सबसे पहले आयी थीं। उसी दौरे में एक सवाल के जवाब में प्रियंका ने संगठन का आदेश होने पर बनारस से लड़ने की बात कह कर इन चर्चाओं को हवा दे दी थी कि वे मोदी के खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी हो सकती हैं। हालांकि ये बात तो कोरी अफवाह ही साबित हुयी पर अब अजय राय के प्रचार में प्रियंका बनारस आ रही हैं। बनारस में प्रियंका का लंबा रोड शो होगा। इस रोड शो को यादगार बनाने की तैयारी हो रही है। प्रियंका गांधी 15 मई को बीएचयू गेट पर लंका स्थित महामना मालवीय की प्रतिमा पर माल्यापर्ण कर अपना रोड शो शुरु करेंगी। वहां से प्रियंका रविदास गेट, अस्सी, शिवाला,सोनारपुरा, मदनपुरा, गोदौलिया, बांसफाटक होते हुए काशी विश्वनाथ मंदिर तक जाएंगी।
प्रियंका गांधी के अलावा कांग्रेस के और भी कई बड़े नेता बनारस में सभाएं करेंगे। अब तक मिली जानकारी के मुताबिक दिग्विजय सिंह,ज्योतिरादित्य सिंधिया, राजबब्बर, प्रमोद तिवारी, अजय सिंह लल्लू, राजीव शुक्ला, हरीश रावत और कई अन्य नेता बनारस में छोटी छोटी सभाओं को संबोधित करेंगे।
बनारस में कांग्रेस तेज बहादुर का नामाकंन रद्द होने को भुना रही है। पार्टी का कहना है कि अपने खिलाफ किसी मजबूत प्रत्याशी को न खड़े होने देने के लिए यह साजिश मोदी ने खुद रची। बनारस के गली नुक्कड़ों पर कांग्रेस इसे उठा रही है। अब मैदान में अजय राय के अकेले मजबूत प्रत्याशी रहने के चलते कांग्रेस का मानना है कि अल्पसंख्यक मतों का अधिकांश हिस्सा उसके पाले में आएगा जबकि दलित वोट भी खासी तादाद मे मिलेंगे। बीएचयू के छात्रों के दमन और असंतोष को भी कांग्रेस मुद्दा बना रही है। काशी विश्वनाथ कारीडोर के लिए पुराने मंदिर ढहाने से लेकर साधु संतो की नाराजगी भी कांग्रेस के लिए इस चुनाव में मुद्दा है। कांग्रेस की खास टीम के सदस्य शाहनवाज आलम कहते हैं कि बनारस का संत समाज, बुद्धिजीवी, छात्र,भूमिहार, अल्पसंख्यक और दलितों के साथ पिछड़े इस चुनाव में ताकत बनेंगे। दूसरी ओर बनारस में राजभर वोटों को मोदी के खिलाफ करने का काम हाल ही में भाजपा से अलग हुए ओमप्रकाश राजभर कर रहे हैं।
उधर बनारस के रण को आसान जानते हुए भी प्रधानमंत्री मोदी कोई कसर नही छोड़ना चाहते हैं। पिछले चुनाव की ही तर्ज पर मोदी न केवल बनारस में डेरा डालने आ रहे हैं बल्कि ताबड़तोड़ रैलियों का भी उनका कार्यक्रम है। मोदी के साथ ही लगातार बनारस में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यक्रम हो रहे हैं। दरअसल बनारस के चुनाव प्रचार को हाईपिच बनाकर भाजपा एक बार फिर से अगल बगल की लोकसभा सीटों पर इसका व्यापक असर डालना चाहती है। खुद भाजपा नेताओं का मानना है कि बनारस के पड़ोस में गाजीपुर, सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली और घोसी जैसी सीटों पर सपा-बसपा गठबंधन के चलते खासी मुश्किलें खड़ी हुयी हैं। बनारस में मोदी के अधिक समय देने से इन सीटों पर भी भाजपा की राह आसान हो सकती है।
कुल मिलाकर बनारस के लोगों का कहना है कि मोदी की जीत तो पक्की है पर कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल आसानी से मैदान नही छोड़ेंगे।

Translate »