मां दक्षिणेश्वर काली शक्तिपीठ के दरबार मे सच्चे मन से मांगी गई हर मुरादे होती है पूरी

सोनभद्र । मां दक्षिणेश्वरी काली का जो यह स्वरूप दिखाई दे रहा है या कोलकाता के अलावा सिर्फ यहीं पर विद्यमान है मां दक्षिणेश्वरी काली शक्तिपीठ रावर्टसगंज के दर्शन मात्र से भक्तों की हर मुरादें पूरी हो जाती हैं यही कारण है कि माँ पूर्वांचल समेत प्रदेश के कोने-कोने से लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं यहां का विशेष महात्म्य  यह है कि जिस सौभाग्यवती स्त्रियों का विवाह किसी कारणवश नहीं हो रहा है या विलंब हो रहा है यहां अनुष्ठान करने से उन्हें सौभाग्यवती बनने का यश प्राप्त होता है शीघ्र ही उनकी शादी हो जाती है ,साथ ही बताया कि यहां के पुजारी के झाड़ने मात्र से असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं।

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मां दक्षिणेश्वर काली का भव्य मंदिर दंडईत बाबा रावर्टसगंज के प्रांगण में विद्यमान है जहां पर मां के दर्शन मात्र से भक्तों की हर मुरादें पूरी हो जाती हैं यही कारण है कि यहां पूर्वांचल समेत प्रदेश के कोने-कोने से लोग मां की दर्शन के लिए आते हैं यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु अपनी मन्नते लेकर आते हैं और मां के दरबार से झोली भर कर हंसते गाते चले जाते हैं ।

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मंदिर में दर्शन व आरती में शामिल होने आए भक्त गिरिजा शंकर द्वीवेदी ने बताया कि मां काली का जो यह स्वरूप दिखाई दे रहा है यह मां दक्षिणेश्वर काली कोलकाता के अलावा सिर्फ यहीं पर विद्यमान है यहां पर सोनभद्र ही नहीं पूरे पूर्वांचल के लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं यहां पर लोग जो भी मुरादे लेकर आते हैं सभी पूरी हो जाती हैं आगे बताया कि यहां के महंत मृत्युंजय त्रिपाठी जी कोलकाता माँ के दर्शन के लिए गए थे वहां माँ सपने में आई थी और कहा कि हम तो तुम्हारे बगल में हैं वहां मेरी स्थापना कराओ जिसके बाद यहां मंदिर का स्थापना हुआ। यहां पर प्रतिदिन आरती में सुबह शाम हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ होती है यहां पर अंधे लंगड़े रोगी सब की मां मुरादें पूरी करती हैं।

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वही मां दक्षिणेश्वरी काली शक्तिपीठ के महंथ मृत्युंजय त्रिपाठी ने बताया कि यहां का महात्मा है कि जिस सौभाग्यवती स्त्री का विवाह किसी कारणवश नहीं हो रहा है या विलंब हो रहा है यहां अनुष्ठान करने से उसे सौभाग्यवती बनने का यश प्राप्त होता है शीघ्र ही उनकी शादी हो जाती है साथ ही बताया कि यहां के पुजारी के झाड़ने मात्र से असाध्य रोग भी ठीक हो जाता है। आगे मंदिर की स्थापना के बारे में महंत ने बताया कि जब मैं बेंगलुरु माता के मंदिर कोलकाता में गया था तो वहां पर एक आम का पेड़ है उस आम के पेड़ में दो ही फल लगे थे वह पेड़ जर्जर स्थिति में हो गया था उसमें से एक फल गिरा उसको खाने के बाद या प्रेरणा जगी कि इतनी बड़ी देवी मां का एक स्थापना वहां रावर्टसगंज भी होना चाहिए तो स्थान सुनिश्चित था यहां पर मंदिर का निर्माण कराया गया।

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