खेल डेस्क. एशिया कप में भारत की खिताबी जीत तारीफ के योग्य है। लेकिन, टूर्नामेंट में प्रदर्शन खिलाड़ियों और टीम के बारे में कई सवाल भी खड़े करता है। वर्ल्ड कप सिर्फ नौ महीने दूर है और ऐसे में ये सवाल चयनकर्ताओं के साथ-साथ कप्तान विराट कोहली और कोच रवि शास्त्री के लिए विचार का विषय हो सकते हैं।
फाइनल में सामने आई समस्याएं: फाइनल मुकाबले से वे समस्याएं और उलझन सामने आई हैं, जिनसे इन लोगों को रूबरू होना है। मैच काफी रोमांचक था और भारत ने बेहद करीबी मुकाबले में जीत हासिल की। लिटन दास के शतक के बावजूद बांग्लादेश को 222 रन पर समेटने के बाद भारत की बल्लेबाजी में कई खामियां दिखीं। टीम को जीत के लिए लंगड़ाते हुए केदार जाधव की जरूरत पड़ी जो पहले रिटायर्ड हर्ट होकर पवेलियन लौट चुके थे।
पाकिस्तान के खिलाफ मिली सबसे आसान जीत: वैसे तो भारतीय टीम टूर्नामेंट में अजेय रही, लेकिन फाइनल कोई इकलौता मैच नहीं था जिसमें टीम को संघर्ष करना पड़ा। हाॉन्कॉन्ग ने लीग मैच में हालत खराब कर दी थी और साथ ही सुपर-4 के मुकाबले में अफगानिस्तान ने टाई पर मजबूर किया। भारत को सबसे आसान जीत उस पाकिस्तान के खिलाफ मिली जिसे टूर्नामेंट से पहले सबसे कठिन प्रतिद्वंद्वी बताया जा रहा था।
चैम्पियंस ट्रॉफी का बदला लिया: पाकिस्तान से भारत के दो मुकाबले हुए और दोनों में ही भारतीय टीम एकतरफा अंदाज में जीती। यह पिछले साल चैंपियंस ट्रॉफी में मिली हार का अच्छा बदला था। इससे एक सवाल यह उठता है कि क्या भारत का सारा ध्यान पाकिस्तान को हराने पर ही था? अन्य टीमों के खिलाफ प्रदर्शन में गिरावट क्यों आई?
मिडिल ऑर्डर में समस्या: दूसरा पहलू यह है कि टीमों की रैंकिंग कुछ भी हो उनके बीच अंतर लगातार कम हो रहा है। जिस तरह श्रीलंका की टीम पहले ही राउंड से बाहर हुई और पाकिस्तान की टीम फाइनल में नहीं पहुंच सकी उससे इस बात की पुष्टि होती है। एक तीसरा पहलू भी है। वह है वर्ल्ड कप के नजरिए से भारत की तैयारी। भारत का मिडिल ऑर्डर लगातार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है। इस समस्या को सुलझाना चयनकर्ताओं के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द हो सकता है।
मनीष और कार्तिक ने मौके का फायदा नहीं उठाया: केदार जाधव ने अपनी बल्लेबाजी से ज्यादा गेंदबाजी से प्रभावित किया। हाल तक सीमित ओवर की क्रिकेट में भारत की बल्लेबाजी का अहम हिस्सा माने जा रहे मनीष पांडे को एक मैच में मौका मिला और उसमें प्रदर्शन को वे खुद भूल जाना चाहेंगे। दिनेश कार्तिक को पूरे मौके मिले लेकिन उनका प्रदर्शन ऐसा नहीं रहा जिस आधार पर वे टीम में विशुद्ध बल्लेबाज के रूप में खेल सके। लोकेश राहुल बल्लेबाजी क्रम में नीचे खेल सकते हैं लेकिन, उन्हें सिर्फ ओपनर माना जा रहा है। लिहाजा उन्हें सीमित मौका मिला।
धोनी ने मध्यक्रम को कमजोर किया: सबसे ज्यादा नजरें महेंद्र सिंह धोनी पर थी। वे विकेट के पीछे शानदार थे। उन्होंने मेंटर और सलाहकार की भूमिका भी बखूबी निभाई। लेकिन, बल्ले के साथ उनकी विफलता ने मिडिल ऑर्डर को और भी कमजोर कर दिया है। इसका समाधान क्या हो सकता है?
नए खिलाड़ियों को मौका देना चाहिए: एक उपाय है कि वेस्टइंडीज के खिलाफ अगले सप्ताह से शुरू हो रही टेस्ट और वनडे सीरीज में अलग और युवा खिलाड़ियों को आजमाया जाए। जाधव, कार्तिक और पांडे की जगह क्यों न पृथ्वी शॉ मयंक अग्रवाल या अन्य को क्यों न आजमाया जाए। वनडे में मैं धवन और धोनी को बरकरार रखूंगा क्योंकि वर्ल्ड कप में उनका खेलना लगभग तय है। इसलिए वर्ल्ड कप से पहले इन्हें और मौके मिलने चाहिए।
लाल और सफेद गेंद के स्पेशलिस्ट चुने जाएं: टेस्ट में लोकेश राहुल के साथ किसी नए ओपनर को मौका मिलना चाहिए। एशिया कप का प्रदर्शन शिखर धवन की इंग्लैंड में विफलता को नहीं ढक सकता है। शायद अब समय आ गया है जब लाल और सफेद गेंद के स्पेशलिस्ट चुने जाएं। इसी तरह गेंदबाजी में भी प्रयोग की गुंजाइश है। इंग्लैंड में इशांत, शमी और बुमराह के ऊपर वर्कलोड को देखते हुए उन्हें आराम दिया जा सकता है। देश में कई बेहतरीन युवा तेज गेंदबाज हैं। उनमें से एक खलील अहमद को हमने एशिया कप में देखा है।
वेस्टइंडीज से सीरीज अहम: प्रयोग का मतलब यह नहीं है कि अच्छे प्रदर्शन को किनारे रख दिया जाए। जीत हमेशा मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। चयनकर्ताओं के सामने असली चुनौती ऐसे खिलाड़ियों का मिश्रण चुनना है जो न सिर्फ जीत दिलाएं बल्कि भविष्य के लिए दिशा भी प्रदान कर सकें। इस तरह वेस्टइंडीज के खिलाफ जो सीरीज महत्वहीन मानी जा रही थी, अब भारतीय क्रिकेट के लिए बेहद अहम हो गई है।
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