आरएलडी से बड़ा दल है निषाद पार्टी फिर भी गठबंधन में सहयोगी की बजाय माना समर्थक
लखनऊ। टिकट बटवारे को लेकर इन दिनों खासकर युपीए, एनडीए और सपा बसपा गठबंधन की निगाह में पूर्वी उत्तर प्रदेश है। ऐसे में शुक्रवार को सपा बसपा गठबंधन से अलग होकर निषाद पार्टी ने उन्हें तगड़ा झटका दे दिया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय निषाद ने कहा कि अखिलेश माया के गठबंधन में मेरा और समर्थकों का दम घुटने लगा था। बीते उप चुनाव में गोरखपुर की सीट निषाद पार्टी ने निकाली तो उसका श्रेय सपा मुखिया अखिलेश यादव ने लिया। जब गठबंधन में हिस्सेदारी की बात आई तो उन्होंने निषाद पार्टी को दल की बजाय समर्थक मानते हुए खुद अपनी विरासत लेकर मायावती के सामने नतमस्तक हो गए। इसी कारण इस दल से किनारा करना पड़ा।
डॉ निषाद का कहना है कि जब उप चुनाव में सपा ने निषाद पार्टी के दम पर गोरखपुर की सीट निकाली तो उनके हौसले आसमान छू रहे थे। खुद उन्होंने भी माना कि निषाद पार्टी के साथ माझी, केवट, निषाद, कश्यप ,धीमर समेत 17 उप जातियां साथ हैं। जब सपा बसपा गठबंधन में निषाद पार्टी के हिस्सेदारी की बात आई तो उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल को गठबंधन का हिस्सा माना लेकिन हमारी पार्टी को सपा का हिस्सा मानकर समर्थक करार दे दिया।बात सीटों की आई तो वह हर कदम बसपा मुखिया मायावती से पूछकर चल रहे हैं।
अखिलेश यादव ने खुद की 37 सीटें भी मायावती के चरणों में रखकर टिकट का फैसला ले रहे हैं।उन्हें अपने दल के वजूद का महत्व इसलिए नहीं मालूम है क्योंकि राजनीतिक विरासत मुलायम सिंह यादव से मिल गई, वह उसे खुद ही नहीं संभाल पा रहे हैं। इसी कारण सपा में अंदरखाने कलह चरम पर है। दूसरी तरफ निषाद पार्टी के समर्थक लगातार दबाव बनाए हुए हैं कि जहां पार्टी का वजूद नहीं नज़र आ रहा है वहां टिके रहना नासमझी साबित होगी। ऐसे में इस गठबंधन में रहने की बजाय अकेले लड़ना बेहतर समझ में आया क्योंकि अपने दल का वजूद तो बचाया जा सकता है। हालांकि एक बड़े दल से हिस्सेदारी के लिये बातचीत चल रही है। परिणाम जल्द ही सामने होगा।