लाइफस्टाइल डेस्क. जापान में शादीशुदा जोड़े को एक ही सरनेम रखना होगा। सोमवार को टोक्यो की कोर्ट ने अलग सरनेम रखने की मांग करने वाली याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि शादीशुदा जोड़े का एक सरनेम होने का कानून संवैधानिक है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई दंपती अलग सरनेम रखना भी चाहे तो उन्हें पहले तलाक लेना होगा।
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सॉफ्टवेयर फर्म साइबोझू के सीईओ योशिहिशा ओनो समेत 3 अन्य लोगों ने पिछले साल पति या पत्नी के सरनेम का उपयोग करने के लिए मजबूर करने पर मुकदमा दायर किया था। उनका कहना था कि सरनेम बदलने के लिए दस्तावेजों पर नाम बदलने की प्रक्रिया काफी पेचीदा है। केवल विदेशियों से शादी के मामले में इसमें छूट दी गई है। शेष सभी के लिए यह कानून भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक हैं।
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ओनो का कहना है कि शादी के बाद वह पत्नी के सरनेम निशिहाता को बनाए रखना चाहता है, लेकिन बिजनेस में वह अपने सरनेम को जारी रखना चाहता है। लेकिन कानून इसकी मंजूरी नहीं देता। इसलिए उन्हें 15 लाख रुपए की मानसिक क्षतिपूर्ति दी जाए।
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देश की महिलाओं को शादी के बाद अपने पति का सरनेम ही लगाना होगा। इस मामले में संविधान विशेषज्ञ मासाओमी तकानोरी का कहना है कि ‘पति-पत्नी को अलग-अलग सरनेम रखने की अनुमति देने से सामाजिक व्यवस्था बिगड़ सकती है।’ वहीं पक्ष में खड़ी महिलाओं का कहना है कि पिछली सदी के कानून में बदलाव का वक्त आ गया है।
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जापान में बड़ी संख्या में महिलाएं भी एक सरनेम रखे जाने के खिलाफ हैं। वे शादी के बाद अपना सरनेम नहीं बदलना चाहती हैं। उनका मानना है कि इससे समाज में उनका सम्मान घटता है। वे अपनी पहचान खो देती हैं। कानून बदलने की मांग को लेकर यहां की 5 महिलाएं 2015 में सुप्रीम कोर्ट में भी गई थीं। कोर्ट ने कहा था कि देश का संविधान लैंगिक समानता को लेकर प्रतिबद्ध है।
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जापान में 1896 से लागू कानून कहता है कि शादी के बाद पति-पत्नी एक ही सरनेम रखेंगे, जो मैरिज रजिस्टर में दर्ज होगा। लेकिन इस बात का उल्लेख नहीं है कि यह किसका होगा। जापान में 96% महिलाएं पति का सरनेम लगाती हैं। वर्तमान कानून के चलते यहां नौकरी-पेशा करने वाली महिलाओं को खासी परेशानी होती है। जापान में नौकरी और कानूनी उपयोग के लिए बचपन का सरनेम काम आता है, जबकि सरकारी दस्तावेजों में शादी के बाद वाला नाम।