लाइफस्टाइल डेस्क.होलिका दहन के बाद होली पर्व की शुरुआत होती है। पूजा होती है, लोग होलिका की परिक्रमा करते हैं, एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। ये तो हुई पारम्परिक होली। लेकिन क्या कभी माॅर्डन होली खेली है? इसमें पूजा भी होती है और रंग भी खेला जाता है। फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि इसे मनाने का तरीक़ा थोड़ा अलग होता है। या यूं कहें कि आज के ज़माने के कुछ नए तौर-तरीक़े इसमें घुल-मिल चुके हैं। आइए, दोनों तरह से होली मनाते हैं…
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हर घर में होली की तैयारी एक हफ़्ते पहले से शुरू हो जाती है। पूजा के लिए पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, गेंहूं की बालियां आदि के साथ गोबर से बनी ढाल और अन्य खिलौने मुख्य सामग्री होती है। ये खिलौने घर में ही बनाए जाते हैं। घर की महिलाएं गाय का गोबर लेकर इन्हें अपने हाथों से बनाकर धूप में सुखाती हैं। इन्हें बनाने का भी अपना आनंद है।
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होली की परिक्रमा करते हुए गेहूं की बालियों को सेका जाता है। होली की पूजा करके, गुलाल व व्यंजन अर्पित करके, वहां मौजूद लोगों को गुलाल लगाकर… खेलने की शुरुआत की जाती है। ढोलक, झांझ, मंजीरा पर फगुआ, चैता, चौपाल, बेलवरिया गीत गाते हैं।
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आज भी पारम्परिक रूप से लोग होली का जश्न मनाते हैं। पूजा करते हैं और गीत भी गाते हैं। लेकिन इनके साथ कुछ नई परम्पराएं जुड़ गई हैं। क्योंकि होली बुराई ख़त्म करने का त्योहार है, तो कुछ लोग इस दिन होलिका के साथ अपने अंदर की बुराई को ख़त्म करते हैं, सिर्फ़ एक पर्ची के ज़रिए। आप भी एक पर्ची पर अपनी बुराई या कमी लिखकर होलिका के साथ दहन कर सकते हैं।
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पहले हर मोहल्ले में अलग-अलग होली मनाई जाती थी। लेकिन अब सभी लोग मिल-जुलकर एक ही स्थान पर होली मनाते हैं। क्योंकि होली सौहार्द का त्योहार है तो एक-दूसरे की ज़रूरतों का ख्याल भी रखते हैं। अब सबकी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर टेबल पर गोबर के खिलौने, गुलाल, गेहूं की बालियां आदि ज़रूरी सामग्री रख दी जाती है। वहीं से लेकर पूजा कर सकते हैं।