सोनभद्र/घोरावल(अनुराग पांडेय)आज सोमवार को पड़ने वाली शिवरात्रि से आठ दिनों का लगेगा मेला।
शिवद्वार धाम अपने अद्भुत व अद्वितीय शिव शक्ति की प्रतिमा के लिए जाना जाता है।हालांकि मुख्य मंदिर की स्थापना सत्तद्वारी नामक गांव के मुख्य मार्ग पर स्थापित है।गुप्त काशी अथवा द्वितीय काशी के नाम से प्रसिद्ध यह स्थल अपने ऐतिहासिक विरासत के लिए भी जाना जाता है।
इस क्षेत्र में दर्जनों गांवों में अद्भुत मूर्तियों व पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियां कम आकर्षण नही रखती हैं।पूरे शिवद्वार क्षेत्र के आस पास के इलाके में प्राचीन मंदिरों के अवशेष व मुर्तिया आज भी अपने ऐतिहासिकता के वैज्ञानिक प्रमाणीकरण की राह तक रहीं है।यही नही यह क्षेत्र प्राचीन के साथ ही मध्य कालीन समय से आज भी उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश का व्यापारिक मार्ग भी रहा है।
द्वितीय काशी शिवद्वार धाम में बसन्त पंचमी पर मेले का आयोजन होता है इसके अलावा शिवरात्रि पर लगने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं।श्रावण मास को लेकर माह भर चलने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं।मुख्य मंदिर में काले बहुमूल्य अष्टधातु पत्थर पर बनी यह शिव शक्ति की प्रतिमा श्रद्धा के साथ ही अद्भुत आकर्षण का केंद्र भी है।
हालांकि इस मूर्ति का वैज्ञानिक प्रामाणिकरण नही हो पाया है जिसके कारण कुछ इतिहासकार इस मूर्ति को आठवीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के मध्य की बताते हैं।
बताया जाता है कि शिव व शक्ति की संयुक्त यह प्रतिमा 1905 ई में खेत में हल चलाते समय मोती महतो नामक व्यक्ति को मिली थी।जब वह खेत मे हल चला रहा था।हल के फाल मूर्ति के ऊपरी भाग में लगने के कारण उसमें से दूध की धारा फुट गयी थी।खेत की खुदाई के उपरांत एक अद्भुत शिव शक्ति की प्रतिमा मिली जिसकी स्थापना उन्होंने सत्तद्वारी गांव में मुख्य सड़क के बगल में ग्राम समाज की भूमि में एक छोटे से शिवालय का निर्माण करा कर किया गया।हो सकता है जहां यह मूर्ति मिली वहां किसी समय एक समृद्ध मन्दिर रहा हो।
समयोपरान्त सन 1942 ई में पुनः मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर सत्तद्वारी गांव के एक जमींदार परिवार की बहुरिया अविनास कुँवरी ने अपने पति की याद में कराया था।समय बिता और सन 1985 ई में जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी विष्णु देवानंद ने शिव शक्ति की प्रतिमा का विधिवत प्राण प्रतिष्ठा कर मूर्ति की स्थापना करायी।मूर्ति की विशिष्टता के चलते देखी गयी मूर्तियों में अपना अलग स्थान रखती है।साथ ही जीवन्त प्रतिमा श्रद्धालुओं को बरबस आकर्षित करती है।
इसके अलावा सैकड़ो मूर्तियां आज भी इस क्षेत्र में जीवंत मौजूद हैं।शिवद्वार धाम में जलाभिषेक का क्रम करीब तीन दशक से अधिक समय से चल रही है।यहाँ 70 किमी दूर मिर्जापुर जनपद के बरिया घाट से गंगा जल व विजयगढ़ दुर्ग के रामसरोवर तालाब जल लेकर करीब अस्सी किमी की यात्रा कर जलाभिषेक को श्रद्धालु पहुचते हैं।यहाँ जलाभिषेक का अपना अलग महत्व है जिसे काशी से अलग नही मानते।बसन्त पंचमी शिवरात्रि पर यहाँ मेले का आयोजन होता है।अब सोमवार से यहां आठ दिनों का मेला लगेगा।जिसमें लाखों श्रद्धालु दर्शन पूजन करेंगे।