सारदा घोटाला: सीबीआई की पूछताछ को टालती रही बंगाल पुलिस, दूसरे राज्यों में धीमी जांच पर भी सवाल

[ad_1]


पश्चिम बंगाल पुलिस से टकराव के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने मेघालय के शिलॉन्ग में कोलकाता पुलिस कमिश्नर से पूछताछ की है। सीबीआई उनसे सारदा चिटफंड घोटाले में पूछताछ करना चाह रही थी। जानिए आखिर क्यों पश्चिम बंगाल पुलिस नहीं कर रही थी इस मामले में सहयोग और इस मामले में कितनी सही या गलत है सीबीआई

यह है विवाद :सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) के 5 सदस्यों को बीते रविवार पश्चिम बंगाल पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। ये पांचों सीबीआई की उन 40 लोगों की टीम में शामिल थे, जो कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने उनके घर जा पहुंची थी। ढाई घंटे थाने में बैठाए रखने के बाद, इन्हें छोड़ दिया गया, लेकिन राज्य की मुखिया ममता बनर्जी अपनी पुलिस के पक्ष में धरने पर बैठ गईं। साथ में कमिश्नर भी थे। चंद घंटों के घटनाक्रम ने देश में संवैधानिक संकट का मुद्दा गरमा दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प.बंगाल के जलपाईगुड़ी में हुई रैली में ममता पर संवैधानिक संकट पैदा करने का आरोप लगाया है। दूसरी ओर ममता, उनकी पार्टी और कई विपक्षी दल इसे केंद्र द्वारा सीबीआई का दुरुपयोग बताते नजर आए।

क्या यह संवैधानिक संकट की स्थिति थी? :राज्य पुलिस द्वारा केन्द्रीय एजेंसी सीबीआई के अधिकारियों को हिरासत में लेना और केन्द्रीय गृह मंत्री द्वारा राज्यपाल से गोपनीय रिपोर्ट मंगवाना संवैधानिक संकट का एक उदाहरण है। वहीं मुख्यमंत्री का पुलिस अधिकारी के पक्ष में सार्वजनिक तौर पर अनशन पर बैठना भी संघीय व्यवस्था की विफलता को दर्शाता है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई के जवाब में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री द्वारा अधिकारियों को राज्य सम्मान देने की घोषणा से भी केन्द्र-राज्य संबंधों में तनातनी दिखती है। यानी इस मामले में टकराव से संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था, जो सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद खत्म नहीं हुआ। लेकिन इसे अनुच्छेद-356 के तहत संवैधानिक व्यवस्था की विफलता नहीं कहा जा सकता। यानी स्थिति राष्ट्रपति शासन लगाने जैसी नहीं मानी जा सकती।

पुलिस पर और भी आरोप :केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश अर्जी में प. बंगाल के डीजीपी और कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर वर्दी में राजनीतिक अनशन में शामिल होने का आरोप भी लगाया गया है।

राज्य की यह है दलील :ममता के पक्ष का कहना है कि सीबीआई के पास कोई वारंट नहीं था। दूसरी दलील है कि राज्य सरकार ने बिना इजाजत सीबीआई को हस्तक्षेप करने पर रोक लगा रखी है।

सीबीआई को प.बंगाल में तफ्तीश का अधिकार है या नहीं? :सीबीआई दरअसल दिल्ली पुलिस इस्टैब्लिशमेंट एक्ट-1946 के तहत काम करती है। इसके तहत राज्यों ने सीबीआई को अपने क्षेत्र में जांच के अधिकार दिए हैं। मगर सीबीआई को केन्द्र सरकार की कठपुतली बताते हुए कई राज्य समय-समय पर विरोध भी करते रहे हैं। इसी सिलसिले में पश्चिम बंगाल ने 16 नवंबर 2018 को आदेश जारी कर राज्य में जांच के लिए सीबीआई को दी गई सहमति और मान्यता रद्द कर दी। इसके बाद सीबीआई को पश्चिम बंगाल में किसी मामले की जांच के लिए सरकार की अनुमति लेनी जरूरी हो गई। मगर यह आदेश पुराने मामलों में नहीं लागू हो सकता। यानी चिटफंड मामले में पुलिस कमिश्नर से पूछताछ या जांच के लिए सीबीआई को राज्य की सहमति या अनुमति की आवश्यकता नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि सीबीआई द्वारा सारदा और अन्य चिटफंड घोटालों की जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2014 से की जा रही है। कोर्ट ने अनेक आदेशों में राज्य सरकार और राज्य पुलिस को सीबीआई के साथ सहयोग करने के लिए कहा है।

प.बंगाल के अलावा सीबीआई को यहां भी अनुमति जरूरी :

1 आंध्रप्रदेशनवंबर 2018 चंद्रबाबू नायडू सरकार ने राज्य में सीबीआई को जांच के लिए दी गई शक्तियां वापस ले ली हैं। यहां रोक बंगाल से पहले लगा दी गई।

2 छत्तीसगढ़जनवरी 2019राज्य में सीबीआई को सरकार की अनुमति बिना तफ्तीश से रोका जा चुका है। एेसा करने वाला यह देश का तीसरा राज्य है।

विवाद की यह है वजह :इस विवाद की जड़ देश के सबसे बड़े आर्थिक घोटालों में शामिल सारदा चिटफंट घोटाला है। ज्यादा रिटर्न देने के बहाने सारदा ग्रुप ने 2000 के दशक की शुरुआत से अप्रैल 2013 तक 17 लाख जमाकर्ताओं से 2500 करोड़ रुपए से ज्यादा जुटाए थे। मगर 2009 में पता चला कि ग्रुप सेबी और कंपनी कानूनों का उल्लंघन कर रहा है। लोगों के बीच अपनी छवि साफ रखने के लिए 239 निजी कंपनियों वाले इस ग्रुप ने कोलकाता के फुटबाॅल क्लब मोहन बागान और ईस्ट बंगाल में निवेश कर रखा था। जनवरी 2013 में सामने आया कि वह नए निवेशकों से पैसा लेकर पुराने निवेशकों को भुगतान कर रहा है, निवेश से होने वाली आय से नहीं। उस वर्ष अप्रैल आते-आते ज्यादा रिटर्न देने वाली यह स्कीम चरमरा गई। पश्चिम बंगाल सहित असम, ओडिशा तथा त्रिपुरा के लाखों लोगों का पैसा इसमें फंस गया। अप्रैल 2013 में सारदा ग्रुप के एमडी सुदिप्ता सेन तथा अन्य अधिकारियों को कश्मीर से गिरफ्तार कर लिया गया। इसी बीच ममता बनर्जी सरकार ने मामले की जांच के लिए स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम का गठन कर दिया। साथ में योजना में पैसा लगाने वाले छोटे निवेशकों के लिए भी 500 करोड़ रुपए का रिलीफ फंड जारी कर दिया।

तृणमूल पर क्यों उठे सवाल? :पश्चिम बंगाल की ममता सरकार पर इस चिटफंड ग्रुप के चेयरमैन सुदिप्ता सेन से करीबी के आरोप लगते रहे हैं। दरअसल सेन ने तब तृणमूल के सांसद रहे कुणाल घोष को उस मीडिया ग्रुप का सीईओ नियुक्त किया था, जिसमें सारदा ने 988 करोड़ रुपए निवेश कर रखे थे। घोष को 16 लाख रुपए प्रति माह सैलेरी दी जा रही थी। इसके अलावा तृणमूल के एक और तत्कालीन सांसद सृंजॉय बोस भी कंपनी के मीडिया से जुड़े कामकाज में शामिल थे। वहीं तब के ट्रांसपोर्ट मंत्री मदान मित्रा कंपनी के कर्मचारी संघ के प्रमुख हुआ करते थे। बाद में सीबीआई ने सृंजॉय बोस, मदान मित्रा तथा कुणाल घोष को गिरफ्तार भी किया।

कांग्रेस-भाजपा नेताओं पर भी कंपनी से जुड़े होने के आरोप :आरोप यह भी लगते रहे कि कंपनी के संबंध कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह तथा असम के भाजपा नेता हेमंत बिस्वसरमा (जो पहले कांग्रेस में थे) से भी रहे। इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने फरवरी 2015 में बिस्वसरमा की पत्नी रिंकी से पूछताछ भी की। सारदा ग्रुप ने रिंकी के टीवी चैनल को विज्ञापन के लिए पैसा दिया था। कभी ममता के करीबी रहे मुकुल रॉय (जो अब बीजेपी के साथ हैं) से भी पूछताछ की गई। हालांकि अब असम व अन्य राज्यों में सीबीआई की जांच की रफ्तार पश्चिम बंगाल से धीमी है। इस पर भी सवाल उठाए जाने लगे हैं।

कोलकाता कमिश्नर से सीबीआई क्यों करना चाह रही है पूछताछ? :कमिश्नर राजीव कुमार उस एसआईटी के प्रमुख हुआ करते थे, जो 2013 में पश्चिम बंगाल सरकार ने सारदा घोटाले की जांच के लिए गठित की थी। उन्होंने एक साल तक मामले की जांच की। मगर मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सारदा घोटाले से जुड़े सारे मामले सीबीआई को सौंप दिए, क्योंकि घोटाला अलग-अलग राज्यों से जुड़ा था। सीबीआई के अनुसार, एसआईटी ने उन्हें सुदिप्ता सेन की एक डायरी नहीं सौंपी है, जिसमें कई प्रभावशाली लोगों से पैसों के लेन-देन का जिक्र है। इसके अलावा एसआईटी के पास लोगों से पूछताछ की रिपोर्ट, कुछ वीडियो, पेन ड्राइव तथा सेन के बैंक से जब्त दस्तावेज हैं। इनमें से कई वस्तुओं को एसआईटी ने अपने रिकॉर्ड में दर्शाया तक नहीं है। इसी शंका में पिछले डेढ़ साल से वह राजीव कुमार सहित एसआईटी के सदस्यों से पूछताछ करने का प्रयास कर रही है। सीबीआई सूत्रों के अनुसार सितंबर 2017 के बाद से सीबीआई ने एसआईटी तथा पश्चिम बंगाल पुलिस से सहयोग के लिए 18 बार संपर्क किया है। सीबीआई के ज्वाॅइंट डायरेक्टर और कोलकाता जोन के इंचार्ज पंकज श्रीवास्तव के अनुसार, सिर्फ राजीव कुमार को अक्टूबर 2017 से अब तक पांच से ज्यादा नोटिस तथा समन भेजे जा चुके हैं। आखिरी समन पर राज्य के डीजीपी ने जवाब दिया कि जो भी सवाल और शंकाएं हैं, उन्हें सीबीआई लिखित में भेजे, हम जवाब देंगे। जरूरत पड़ी तो दोनों के लिए उपयुक्त किसी जगह पर मुलाकात करवाएंगे। हालांकि शनिवार को कोर्ट के आदेश पर शिलॉन्ग में यह मुलाकात हो गई है।

  • सितंबर 2014 में मामले से जुड़े असम के पूर्व डीजीपी
  • शंकर बरुआ आत्महत्या कर चुके हैं। सीबीआई ने उनसे
  • पूछताछ की थी और उनके घर की तलाशी ली थी।

यह हो सकता है आगेजल्द नहीं थमने वाला विवाद :19 फरवरी को यह निर्धारित होगा कि प.बंगाल के डीजीपी, चीफ सेक्रेट्ररी और पुलिस कमिश्नर को अवमानना याचिका में व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने की जरूरत है या नहीं। 20 फरवरी को अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यदि राज्य सरकार या पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्रतिकूल आदेश पारित किया तो भी संवैधानिक संकट गहरा सकता है। पुलिस कमिश्नर से पूछताछ से एक दिन पहले बंगाल पुलिस ने सीबीआई के पूर्व प्रमुख नागेश्वर राव के परिवार की कंपनियों पर छापेमारी की है। कोलकाता पुलिस ने बेहिसाब संपत्ति के पुराने मामले में ये छापे मारे। इससे गतिरोध जारी रहने के संकेत दिख रहे हैं।

Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today


CBI questioned 18 times of attempt, but Bengal police kept trying

[ad_2]
Source link

Translate »