शादी के 7 साल बाद तक पिता नहीं बन पाए थे मुकेश अंबानी, बेटी ईशा ने पहली बार खुलासा करते हुए खुद बताया कि आखिर कैसे हुआ उनका और भाई आकाश का जन्म, अब आम लोग भी इस चीज के जरिए पैदा कर रहे हैं बच्चा

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हेल्थ डेस्क। हाल ही में बिजनेस टायकून मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और नीता अंबानी (Nita Ambani) की बेटी ईशा अंबानी (Isha Ambani) ने अपने जन्म को लेकर बड़ा खुलासा किया है। एक मैगजीन को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि वे और उनके जुड़वां भाई आकाश (Akash Ambani) IVF बेबी हैं। बकौल ईशा, "मेरे पेरेंट्स की शादी के 7 साल बाद हम भाई-बहन का जन्म IVF के जरिए हुआ। आईवीएफ यानी इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (In Vitro Fertilization) ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एग और स्पर्म को शरीर के बाहर यानी लैब में फर्टिलाइज किया जाता है।

यह उन कपल्स के लिए सबसे सुरक्षित और प्रभावी उपचार है जो अपनी इनफर्टिलिटी प्रॉब्लम की वजह से माता-पिता नहीं बन सकते। इसमें प्राय: कपल के ही एग और स्पर्म का यूज किया जाता है। हालांकि जरूरत पड़ने पर डोनर एग या स्पर्म भी यूज किए जा सकते हैं। बोलचाल की भाषा में इसे टेस्ट ट्यूब बेबी टेक्निक भी कहते हैं। जानिए इस टेक्निक के बारे में सबकुछ।

आईवीएफ किन लोगों के लिए यूजफुल है?
– जिन महिलाओं की फैलोपिन ट्यूब ब्लाक होती हैं। फैलोपिन ट्यूब से ही फर्टिलाइज्ड अंडा गर्भाशय में जाता है। ईवीएफ टेकनीक में ट्यूब की जरूरत नहीं होती। लैब में निर्मित भ्रूण को सीधे ही गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है।
– जिन महिलाओं के अंडों की क्वालिटी खराब होती है। ऐसे में उस महिला के बेस्ट अंडे को चुनकर उसे फर्टिलाइज किया जा सकता है या फिर डोनर एग्स भी लिए जा सकते हैं।
– स्पर्म की संख्या कम हो या उनमें मोबेलिटी न हो। स्पर्म में मोबेलिटी नहीं होने से वे अंडे को फर्टिलाइज नहीं कर पाते। ऐसे में बेस्ट स्पर्म का सिलेक्शन करके अंडे को फर्टिलाइज किया जा सकता है। सारे ही स्पर्म खराब होने पर कपल के पास डोनर स्पर्म का ऑप्शन भी होता है।

आईवीएफ से पहले किस बात का ध्यान रखा जाता है?
– महिला के शरीर में विटामिन-डी कमी तो नहीं है। ऐसा होने पर आईवीएफ फेल हो सकती है।
– महिला की थाइराइड रिपोर्ट खराब तो नहीं है। नहीं तो आईवीएफ फेल हो सकती है।
– पति की शुगर आउट ऑफ कंट्रोल तो नहीं है। शुगर ज्यादा होने पर आईवीएफ फेल हो सकती है।
– पति के स्पर्म काउंट बहुत कम या स्पर्म की क्वावालिटी बहुत खराब तो नहीं है। नहीं तो आईवीएफ फेल हो सकती है।
– महिला के गर्भाशय में कोई प्रॉब्लम तो नहीं है। अन्यथा आईवीएफ फेल हो सकती है।

कितनी कारगर है आईवीएफ?
आईवीएफ की सफलता उम्र और फर्टिलिटी प्रॉब्लम पर निर्भर करती है। साल 2010 में की गई एक स्टडी के अनुसार35 साल से कम उम्र की महिलाओं में इसकी सफलता की दर करीब 33 फीसदी थी। लेकिन अब इसकी सफलता की दर करीब 40 फीसदी है। इसका मतलब यह है
कि अगर 100 दंपती आईवीएफ ट्रीटमेंट लेंगे तो उनमें से 40 को बच्चा पहली बार में ही मिल जाएगा। बचे हुए 60 में से कुछ को दूसरी बार ट्राय करने में बच्चा मिल सकता है।

क्या फर्टिलिटी ट्रीटमेंट का आईवीएफ लास्ट ऑप्शन होता है?
नहीं। लेकिन यह बेस्ट ऑप्शन है। यह प्योर सांइटिफिक है। इसकी सक्सेस रेट अन्य ट्रीटमेंट की तुलना में कहीं ज्यादा है। यह सबसे सुरक्षित भी है। इसमें फर्टिलाइजेशन की केवल प्रोसेस लैब में होती है। भ्रूण का पूरा विकास मां के पेट में होता है। इससे महिला को मां बनने की वही फीलिंग होती है, जो नैचुरल तरीके से मां बनने में होती है।

क्या आईवीएफ से पैदा हुआ बच्चा नॉर्मल होता है?
आईवीएफ टेकनीक द्वारा पैदा बच्चे उसी तरह होते हैं, जैसे कि सामान्य प्रेग्नेंसी के जरिए पैदा होते हैं। अब तक पूरी दुनिया में 5 करोड़ से भी ज्यादा बच्चे आईवीएफ के जरिए पैदा हो चुके हैं।

भ्रूण का गर्भाशय में ट्रांसफर कब किया जा सकता है?
अंडों को महिला के शरीर से निकालने के 5 दिनों के भीतर भ्रूण को गर्भाशय में ट्रांसफर करना होता है। पांचवें दिन पर जो भ्रूण बनता है, उस स्टेज को ब्लास्टोसिस्ट (Blastocyst)कहते हैं। इस स्टेज में भ्रूण सबसे बेहतर स्थिति में होता है। तब भ्रूण के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए अगर कोई और कॉप्लिकेशन नहीं होता है तो आईवीएफ टेकनीक में भ्रूण पांचवें दिन ही ट्र्रांसफर किया जाता है।

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