जयपुर (महेश शर्मा).रणथंभौर में कुछ सालों में लगातार बाघों का बढ़ता कुनबा ही अब एक सिरदर्द की वजह बन गया है। देश-दुनिया के लोगों, वाइल्ड लाइफ प्रेमियों के लिए आकर्षण का बिंदु बने इस वन्यजीव के सुरक्षित जीवन के लिए वन विभाग अनुकूल कॉरिडोर, उपयुक्त हैबिटॉट और नए घर की तलाश नहीं कर पा रहा, जिससे इनमें संघर्ष बढ़ रहा है। बुधवार रात एक जवान नर बाघ की मौत इसी का परिणाम है।
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असल चिंता अब उन बाघों को लेकर है, जिनको जंगल में दूसरे ताकतवर बाघों द्वारा खदेड़ा जा रहा है और इसके चलते ये बाघ अब जंगल से बाहर की बस्ती और गांवों के आसपास मंडरा रहे हैं। इससे लोगों को बाघों से और बाघों को लोगों से खतरा बढ़ रहा है। पिछले कुछ महीने में की गई गहन पड़ताल और तैयार रिपोर्ट में 20 से ज्यादा ऐसे बाघों की जानकारी सामने आई है, जो जंगल से बाहर आसपास के एरिया में लगातार घूम रहे हैं। स्थानीय अफसर इसे दोनों ओर से खतरे की घंटी मान रहे हैं, क्योंकि बाघ जब-जब अपनी घर छोड़कर लोगों की ओर आता है तो आपसी संघर्ष में किसी एक की जान का खतरा तय है।
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टी-97, 95, 66, 110, 23, 42, 114, 62, 13, 47, 69, 75, 80, 85, 96, 98, 99, 100, 101, 48, 79, 83 आदि बाघ रणथंभौर टाइगर रिजर्व के बाहर के एरिया कुंडेरा, तालड़ा, रोपट, खंडार, फलोदी, इंद्रगढ़ के बाहरी एरिया में दिखाई पड़े हैं।
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रणथंभौर के स्थानीय अफसर ‘मेन-एनिमल कनफ्लिक्ट’ को देखते हुए ऐसे बाघों की रिपोर्ट तैयार कर रहा है। असली चैलेंज मौजूदा हालात के बदलने को लेकर है, जिसकी जिम्मेदारी विभाग और सरकार पर है। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ बाघों को सरिस्का, मुकंदरा भेजा जा सकता है। सरिस्का टाइगर फाउंडेशन के संरक्षक दिनेश दुर्रानी के मुताबिक सरिस्का में बाघों के लिए पहले से मांग चली आ रही है। यह निर्णय पिछली सरकार में टलता रहा।
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सालभर पहले का वह खौफनाक दृश्य वन विभाग, बाघ प्रेमी और लोग भुलाए नहीं भूलते जब एक लोकप्रिय बाघ टी-28 रणथंभौर के जंगल से बाहर निकल एक गांव तक चला गया था। इसके बाद भयानक अफरा-तफरी और भगदड़ मच गई। विभाग ने बाघ को रेस्क्यू कर बचाने के प्रयास किए, लेकिन इसमें काफी देरी हो गई और नतीजा बाघ की मौत। इसी तरह दो अन्य बाघों की जहर देकर मौत हो गई, जिसके हालात पर राज उलझे रहे। ये सब घटनाएं बाघ और लोगों में एक-दूसरे को लेकर फैले डर की वजह से है। विशेषज्ञों का मानना है कि जल्द ही पेरीफेरी में घूम रहे बाघों का ठिकाना नहीं तलाशा गया तो ऐसी घटनाएं होंगी।
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विभाग को सोचना चाहिए कि या तो इनके लिए नए अनुकूल हैबिटॉट तैयार करें या फिर पेरीफेरी में घूम रहे नर बाघों को दूसरे टाइगर रिजर्व में छोड़ा जाए, ताकि जवान बाघों का आपसी संघर्ष कम हो और दूसरे को जगह मिले। रणथंभौर के आसपास ऐसे कॉरिडोर विकसित होने चाहिए, जहां बाघ आसपास के जंगलों से आ जा सके। अनुकूल हैबिटॉट के लिए अफसर काम शुरू कर रहे हैं, जिन्हें बल मिलना चाहिए। -धीरेंद्र गोधा, वाइल्ड लाइफर
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- आपसी संघर्ष में बाघ टी-85 की मौत हुई है। हां, यह भी सही है कि कुछ बाघ जंगल की पेरीफेरी में घूम रहे हैं। उनकी पहचान कर रहे हैं। बाघों के साथ ही लोगों का उनसे आपसी संघर्ष न हो इसके लिए इस विषय पर समाधान के प्रयास कर रहे हैं।-मनोज पाराशर, फील्ड डायरेक्टर और मुकेश सैनी, डीएफओ
- कुछ बाघ जंगल से बाहर निकल जाते है, लेकिन कई बाघों को भीतर जगह नहीं मिल रही तो उनके लिए हम प्लान तैयार करेंगे। जल्द पूरे मामले की रिपोर्ट लेकर आवश्यक कार्रवाई करेंगे। – सुखराम विश्नोई, वनमंत्री