जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से होलिका पर्व मार्च 06/07 विशेष
होलिका पर्व मार्च 06/07 विशेष
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई है इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है होलिका और प्रह्लाद की है। विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया। उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे। अहंकार में आकर उसने जनता पर जुल्म करने आरम्भ कर दिए… यहाँ तक कि उसने लोगो को परमात्मा की जगह अपना नाम जपने का हुकम दे दिया।
कुछ समय बाद हिरण्यकश्यप के घर में एक बेटे का जन्म हुआ. उसका नाम प्रह्लाद रखा गया प्रह्लाद कुछ बड़ा हुआ तो, उसको पाठशाला में पढने के लिए भेजा गया पाठशाला के गुरु ने प्रह्लाद को हिरण्यकश्यप का नाम जपने की शिक्षा दी पर प्रह्लाद हिरण्यकश्यप के स्थान पर भगवान विष्णु का नाम जपता था वह भगवान विष्णु को हिरण्यकश्यप से बड़ा समझता था।
गुरु ने प्रह्लाद की हिरण्यकश्यप से शिकायत कर दी हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बुला कर पूछा कि वह उसका नाम जपने के जगह पर विष्णु का नाम क्यों जपता है प्रह्लाद ने उत्तर दिया, “ईश्वर सर्व शक्तिमान है, उसने ही सारी सृष्टि को रचा है.” अपने पुत्र का उत्तर सुनकर हिरण्यकश्यप को गुस्सा आ गया उसको खतरा पैदा हो गया कि कही बाकि जनता भी प्रह्लाद की बात ना मानने लगे उसने आदेश दिया कहा, “मैं ही सबसे अधिक शक्तिशाली हूं, मुझे कोई नहीं मर सकता मैं तुझे अब खत्म कर सकता हूँ” उसकी आवाज सुनकर प्रह्लाद की माता भी वहां आ गई उसने हिरण्यकश्यप का विनती करते हुए कहा, “आप इसको ना मारो, मैं इसे समझाने का यतन करती हूं” वे प्रह्लाद को अपने पास बिठाकर कहने लगी, “तेरे पिता जी इस धरती पर सबसे शक्तिशाली है उनको अमर रहने का वर मिला हुआ है इनकी बात मान ले ”प्रहलद बोला, “माता जी मैं मानता हूं कि मेरे पिता जी बहुत ताकतवर है पर सबसे अधिक बलवान भगवान विष्णु हैं जिसने हम सभी को बनाया है पिता जो को भी उसने ही बनाया है प्रह्लाद का ये उत्तर सुन कर उसकी मां बेबस हो गयी प्रहलद अपने विश्वास पर आडिग था ये देख हिरण्यकश्यप को और गुस्सा आ गया उसने अपने सिपाहियों को हुकम दिया कि वो प्रह्लाद को सागर में डूबा कर मार दें सिपाही प्रह्लाद को सागर में फेंकने के लिए ले गये और पहाड़ से सागर में फैंक दिया लेकिन भगवान के चमत्कार से सागर की एक लहर ने प्रह्लाद को किनारे पर फैंक दिया सिपाहियों ने प्रह्लाद को फिर सागर में फेंका… प्रह्लाद फिर बहार आ गया सिपाहियों ने आकर हिरण्यकश्यप को बताया फिर हिरण्यकश्यप बोला उसको किसी ऊंचे पर्वत से नीचे फेंक कर मार दो सिपाहियों ने प्रह्लाद को जैसे ही पर्वत से फेंका प्रह्लाद एक घने वृक्ष पर गिरा जिस कारण उसको कोई चोट नहीं लगी हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को एक पागल हाथी के आगे फैंका तो जो हाथी उसको अपने पैरों के नीचे कुचल दे पर हाथी ने प्रह्लाद को कुछ नहीं कहा लगता था जैसे सारी कुदरत प्रह्लाद की मदद कर रही हो।
हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था होलिका अपने भाई हिरण्यकश्यप की परेशानी दूर करना चाहती थी होलिका को वरदान था कि उसको आग जला नहीं सकती उसने अपने भाई को कहा कि वो प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठ जाएगी वरदान के कारण वो खुद आग में जलने से बच जाएगी पर प्रह्लाद जल जायेगा लेकिन हुआ इसका उलट और आग में होलिका जल गयी पर प्रह्लाद बच गया होलिका ने जब वरदान में मिली शक्ति का दुरूपयोग किया, तो वो वरदान उसके लिए श्राप बन गया रंगों वाली होली (धुलंडी) के एक दिन पूर्व होलिका दहन होता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है, परंतु यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का दहन बिहार की धरती पर हुआ था। जनश्रुति के मुताबिक तभी से प्रतिवर्ष होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत हुई।
मान्यता है कि बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में ही वह जगह है, जहां होलिका भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर दहकती आग के बीच बैठी थी।इसी दौरान भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था, जिन्होंने हिरण्यकश्यप का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सिकलीगढ़ में हिरण्यकश्य का किला था।यहीं भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए एक खंभे से भगवान नरसिंह अवतार लिए थे। भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी यहां मौजूद है। कहा जाता है कि इसे कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया। यह स्तंभ झुक तो गया, पर टूटा नहीं।
अन्य कथा के अनुसार
वैदिक काल में इस होली के पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा जाता था। पुराणों के अनुसार ऐसी भी मान्यता है कि जब भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से होली का प्रचलन हुआ। होलिका दहन की रात्रि को तंत्र साधना की दृष्टि से हमारे शास्त्रों में महत्वपूर्ण माना गया है | और यह रात्रि तंत्र साधना व लक्ष्मी प्राप्ति के साथ खुद पर किये गए तंत्र मंत्र के प्रतिरक्षण हेतु सबसे उपयुक्त मानी गई है|
तंत्र शास्त्र के अनुसार होली के दिन कुछ खास उपाय करने से मनचाहा काम हो जाता है। तंत्र क्रियाओं की प्रमुख चार रात्रियों में से एक रात ये भी है।
मान्यता है कि होलिका दहन के समय उसकी उठती हुई लौ से कई संकेत मिलते हैं। होलिका की अग्नि की लौ का पूर्व दिशा ओर उठना कल्याणकारी होता है, दक्षिण की ओर पशु पीड़ा, पश्चिम की ओर सामान्य और उत्तर की ओर लौ उठने से बारिश होने की संभावना रहती है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को प्रदोषकाल में दहन किया जाता है।
होलिका दहन में आहुतियाँ देना बहुत ही जरुरी माना गया है, होलिका में कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर. आदि की आहुति दी जाती है है|
सावधानी
होलिका दहन की रात्रि तंत्र साधना की रात्रि होने के कारण इस रात्रि आपको कुछ सावधानियां रखनी चाहियें
सफेद खाद्य पदार्थो के सेवन से बचें होलिका दहन वाले दिन टोने-टोटके के लिए सफेद खाद्य पदार्थों का उपयोग किया जाता है। इसलिए इस दिन सफेद खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिये।
सिर को ढक कर रखें उतार और टोटके का प्रयोग सिर पर जल्दी होता है, इसलिए सिर को टोपी आदि से ढके रहें।
कपड़ों का विशेष ध्यान रखें टोने-टोटके में व्यक्ति के कपड़ों का प्रयोग किया जाता है, इसलिए अपने कपड़ों का ध्यान रखें।
विशेष होली पर पूरे दिन अपनी जेब में काले कपड़े में बांधकर काले तिल रखें। रात को जलती होली में उन्हें डाल दें। यदि पहले से ही कोई टोटका होगा तो वह भी खत्म हो जाएगा।
होलिका दहन पूजा विधि
हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन, जिसे होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, करना चाहिये। होली से ठीक एक माह पूर्व अर्थात् माघ पूर्णिमा को ‘एरंड’ या गूलर वृक्ष की टहनी को गाँव के बाहर किसी स्थान पर गाड़ दिया जाता है, और उस पर लकड़ियाँ, सूखे उपले, खर-पतवार आदि चारों से एकत्र किया जाता है।
पूजन करते समय आपका मुख उत्तर या पूर्व दिशा में हो। सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में सही मुहर्त पर अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी जाती है। अग्नि प्रज्ज्वलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है। यह डंडा भक्त प्रहलाद का प्रतीक है।
इसके पश्चात नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित करें।
इसी प्रकार भक्त प्रह्लाद को स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित करें।
होलिका धहन से पहले होलिका के चारो तरफ तीन या सात परिक्रमा करे और साथ में कच्चे सूत को लपेटे।
होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
“अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम:”
इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रुप में करना चाहिए।
इसके पश्चात् हाथ में असद, फूल, सुपारी, पैसा लेकर पूजन कर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दें और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल तथा गूलरी की माला पहनाएं। विधि पंचोपचार की हो तो सबसे अच्छी है। पूजा में सप्तधान्य की पूजा की जाती है जो की गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर। होलिका के समय गेंहू एवं चने की नयी फसले आने लग जाती है अत: इन्हे भी पूजन में विशेष स्थान दिया जाता है।
होलिका की लपटों से इसे सेक कर घर के सदस्य खाते है और धन धन और समृधि की विनती की जाती है।
होलिका दहन शुभ मुहूर्त
भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा है जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को बल्कि शहर और देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता है। किसी-किसी साल भद्रा पूँछ प्रदोष के बाद और मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता है। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष और भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।
निर्णय सिंधु के भी मतानुसार होलिका दहन भद्रा रहित प्रदोष काल व्यापिनी – फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है।
इस वर्ष पूर्णिमा केवल पहले दिन 6 मार्च को ही प्रदोष व्यापिनी है। 6 मार्च को प्रदोषकाल सायं 06:25 से 08:55 मिनट तक रहेगा यह भद्रा से व्याप्त है। और भद्रा निशीथ (अर्द्धरात्रि) से आगे जाकर प्रातः 05:14 पर समाप्त होगी। अगले दिन पूर्णिमा साढे तीन प्रहर से अधिक व्याप्त होने पर भी प्रतिपदा का मान पूर्णिमा के कुलमान से कम होने के कारण भारत में जहां 6 मार्च के दिन सूर्यास्त सायं 06 बजकर 10 मिनट से पहले होगा वहा होलिका दहन 6 मार्च के ही दिन अन्यथा स्मृतिसार शास्त्रानुसार दूसरे दिन यानि 7 मार्च को करना शास्त्र सम्मत है।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ 06 मार्च को सायं 04:16 बजे से।
पूर्णिमा तिथि समाप्त 07 मार्च को सायं 06:07 बजे।
होलिका दहन मुहूर्त
जिन स्थानों पर सूर्यास्त 6 मार्च सायं 6 बजकर 10 मिनट से पहले होगा वहां होलिका दहन भद्रा पूँछ रात्रि 12:45 से मार्च रात्रि 02:02 मिनट तक करना श्रेष्ठ रहेगा।
जिन स्थानों पर सूर्यास्त 6 मार्च सायं 6 बजकर 10 मिनट के बाद होगा वहां होलिका दहन 7 मार्च सायं 06:17 से रात्रि 08:45 तक करना शुभ रहेगा।
रंगवाली होली (धुलण्डी) 08 मार्च बुधवार।